बुंदेलखंड में दिवाली के अगले दिन दिवारी नृत्य की परंपरा है...लक्ष्मी पूजा के अगले दिन यह गोवर्धन पूजा पर मौन परमा से जुड़ी है।
इस साल दीवाली पर पन्ना ट्रिप पर हमें भी इसे जगह जगह देखने का अवसर मिला..पूरे रास्ते मौनियो की टोलियां उत्साह से भरी गीत और नृत्य करती हुई दिखाई दीं..
चरवाहों का भेष रखे ये कालिंजर किले में भी उत्सव मना रहे थे..
रिजॉर्ट में भी हम देर रात तक इनके ढोल और वाद्य यंत्रों की आवाज सुनते रहे..!
मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे तब उनकी सारी गायें खो जाती हैं वो दुखी होकर मौन हो जाते हैं ..
जब ग्वाले सारी गाएं ढूंढकर लाते हैं तब श्रीकृष्ण जी अपना वृत तोड़ते हैं.. तब से ये परम्परा चली आ रही। इस दिन पूरे बुंदेलखंड में मौनिया नृत्य की टोलियां 12-12 गांव भ्रमण करते हैं... इसमें दिवारी गीत शामिल होते हैं।
इसे दिवारी नृत्य भी कहते हैं।
ये आसपास के मंदिरों में जाकर दर्शन कर घर वापस आते हैं।
मौनी पहले साल 5 मोर पंख लेते हैं फिर हर साल 5 जोड़ते जाते हैं..12 साल तक वृत रखने के बाद मुट्ठे में 60 मोर पंख लेकर मथुरा या वृंदावन में यमुना तट पर पूजन कर वृत तोड़ते हैं।इन बारह साल ये मांस मछली शराब जैसी कई बुरी चीजों से बहुत रहते हैं।
ये अपने खेलो का खूब अभ्यास भी करते हैं। रमेश पाल जी की अगुआई में बांदा की टीम 2005 में गणतंत्र दिवस की परेड में भी इस कला का प्रदर्शन कर राष्ट्रपति कलाम जी से सम्मानित हुई थी ।
साभार फेसबुक पोस्ट सन्तोष मिश्रा ( इटौंज़ा)
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