लखीमपुर-खीरी की उर्वर साहित्य-भूमि ने अनेक प्रतिभाओं को जन्म दिया है, परन्तु उनमें एक नाम ऐसा है, जिसने अपनी लघुकथाओं के तेजस्वी तीर से न केवल समाज की विसंगतियों को भेदा है, बल्कि पाठकों के हृदय तक सीधी राह बनाई है सुरेश सौरभ।
फेसबुक पर उनकी चर्चित लघुकथा “तीर” को 6 लाख से अधिक पाठकों ने सराहा यह संख्या नहीं, साहित्य की उस शक्ति का प्रमाण है, जो समाज की आंखें खोलने का सामर्थ्य रखती है। नकल की जड़ें जमा चुकी शिक्षा व्यवस्था पर उनका सहज, तीखा और सार्थक कटाक्ष पाठक को झकझोर देता है। यही कारण है कि भीगे मन के द्वार, पापी, आर्द्रता जैसी लघुकथाएँ देश भर में पाठकोन्मुख संवाद का हिस्सा बनी हुई हैं।
03 जून 1979 को जन्मे सुरेश कुमार, जिन्हें साहित्य जगत सुरेश सौरभ के नाम से जानता है, स्व. केवल राम एवं स्व. कमला देवी के संस्कारों में पले-बढ़े। बचपन में ही संवेदनाओं की धारा इतनी प्रखर थी कि चौदह वर्ष की अल्पायु में ही लेखन की यात्रा आरम्भ कर दी और यह यात्रा आज भी सतत् गतिमान है। बी.ए. (संस्कृत), बी.कॉम., एम.ए. (हिन्दी) तथा यूजीसी-नेट (हिन्दी) जैसे मील के पत्थरों ने उनके साहित्यिक गवेषणात्मक व्यक्तित्व को और अधिक पैना किया। भाषा, भाव और बिम्ब तीनों पर उनकी पकड़ आज उन्हें समकालीन लेखन की अग्रपंक्ति में खड़ा करती है। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं दैनिक जागरण, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, हरिभूमि, हिन्दुस्तान, प्रभात ख़बर, पाखी, कथाबिंब, पंजाब केसरी, ट्रिब्यून आदि में उनकी सैकड़ों लघुकथाएँ, व्यंग्य-लेख, बाल-कथाएँ, कविताएँ और समीक्षाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में एक कवयित्री की प्रेमकथा, नोटबंदी, तीस-पैंतीस, वर्चुअल रैली, बेरंग (लघुकथा संग्रह), अमिताभ हमारे बाप (हास्य-व्यंग्य), नंदू सुधर गया, पक्की दोस्ती (बाल कहानी संग्रह), भीगते सावन (कहानी संग्रह) आदि हैं। पाठक विचार, व्यंग्य, संवेदना और समाज के जीवंत रूपों का अद्भुत संगम पाते हैं। संपादन कौशल भी कम उल्लेखनीय नहीं 100 कवि, 51 कवि, काव्य मंजरी, खीरी जनपद के कवि, तालाबंदी, गुलाबी गलियां, पावन तट पर जैसी कई पुस्तकों में उनका साहित्यिक श्रम झलकता है। भारतीय साहित्य विश्वकोश में उनकी इकतालीस लघुकथाओं का शामिल होना किसी भी साहित्यकार के लिए विशिष्ट उपलब्धि है। अनेक रचनाओं पर लघु फिल्मों का निर्माण हुआ है। सोशल मीडिया व यूट्यूब पर उनके व्यंग्य-लेख और लघुकथाएँ धूम मचाए हुए हैं। उनकी कुछ कृतियाँ अंग्रेज़ी, उड़िया और पंजाबी में अनूदित होकर अन्तरभाषीय संवाद को समृद्ध कर रही हैं। साहसिक लेखन, नवोन्मेषी दृष्टि और सामाजिक मुद्दों पर उनकी प्रतिबद्धता के चलते उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रताप नारायण मिश्र युवा सम्मान, लक्ष्य लेखिनी सम्मान, सौजन्या सम्मान, परिवर्तन फाउंडेशन सम्मान आदि प्रमुख हैं। आज वे एक निजी महाविद्यालय में अध्यापन करते हुए स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं। लखीमपुर के निर्मल नगर में उनका सृजन-घर बसता है जहाँ हर दिन शब्द जन्म लेते हैं, विचार आकार पाते हैं और समाज को दिशा देने वाली लघुकथाएँ रची जाती हैं। सुरेश सौरभ केवल एक साहित्यकार नहीं, समाज के सजग प्रहरी हैं। उनकी लेखनी में सहजता का सौंदर्य, कथ्य का प्रखरत्व, और संवेदना की वह आर्द्रता है जो पाठक के भीतर परिवर्तन का बीज बो देती है। उनकी लघुकथाएँ तीर की तरह चलती हैं पर निशाना कहीं गहरे दिल के भीतर साध जाती हैं।
सच में सुरेश सौरभ जी एक कुशल विद्वान लघुकथाकार, कहानीकार, साहित्यकार हैं
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