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शनिवार, 13 दिसंबर 2025

भारत की पंचायतों के लिए यह समय नवाचार और उद्यमियों की तरह सोचने का है

भारत की पंचायतों के लिए यह समय नवाचार और उद्यमियों की तरह सोचने का है

लेखक:  श्री सुशील कुमार लोहानी, रंजन घोष, भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय में अपर सचिव

1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ, ग्राम पंचायतों (जीपी) को जमीनी स्तर पर स्व-शासन के एक नए युग का सूत्रपात करने के लिए सशक्त बनाया गया। आशा थी कि वे वित्तीय रूप से सशक्त, राजनीतिक रूप से जिम्मेदार और नवोन्मेषी होंगे। हालांकि, तब से काफी प्रगति हुई है, लेकिन यह विज़न अब भी केवल आधा ही पूरा हुआ है। अनुच्छेद 243एच के तहत अपना राजस्व जुटाने का संवैधानिक अधिकार होने के बावजूद, अधिकांश ग्राम पंचायतें अब भी वित्तीय दृष्टि से राज्य और केंद्र सरकारों के हस्तांतरणों पर निर्भर हैं। पंचायती राज मंत्रालय (एमओपीआर) के नवीनतम आंकड़ों और राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त और नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के 2025 के अध्ययन के अनुसार, स्व-संसाधन राजस्व (ओएसआर) पंचायत वित्त में केवल 6–7% का ही योगदान देता है। शेष 93-94% अब भी अनुदानों से आते हैं। यह निर्भरता पंचायतों के स्थानीय पहलों को कमजोर कर रही है। वे आत्मनिर्भर स्थानीय शासनके बजाय सरकार की योजनाओं को लागू करने वाली एजेंसी बन गए हैं। इसे बदलने का समय आ गया है, केवल टैक्स नियमों की समीक्षा ही नहीं की जानी चाहिए, बल्कि पंचायतों को उद्यमशील मानसिकता भी अपनानी चाहिए।

यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि वित्तीय नियंत्रण के बिना, ग्राम पंचायतें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार योजना नहीं बना सकतीं या प्राथमिकता तय नहीं कर सकतीं। एनआईपीएफपी की रिपोर्ट बताती है कि जहाँ संपत्ति कर, उपयोगकर्ता शुल्क, या सामुदायिक संपत्ति के माध्यम से आर्थिक संभावनाएँ मौजूद हैं, वहां भी – नवाचार, डिजिटल प्रणाली और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी कार्य-प्रदर्शन को सीमित करती है। केरल, कर्नाटक और गोवा जैसे राज्यों का प्रति व्यक्ति ओएसआर अधिक है (क्रमशः ₹286, ₹148, और ₹1,635)। इनमें डिजिटल तरीके से टैक्स संग्रह और सामुदायिक भागीदारी भी है। दूसरी ओर, झारखंड, बिहार और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों का ओएसआर संग्रह लगभग नगण्य है। जैसा कि जोसेफ शुम्पेटर ने कहा है, उद्यमिता रचनात्मक परिवर्तन के बारे में है। पंचायतों के लिए, इसका मतलब है - निष्क्रिय संग्रह से सक्रिय सृजन की ओर बढ़ना। उन्हें स्वयं का फिर से आकलन करने, स्थानीय संपत्तियों से आय कमाने, सेवाओं को कुशलतापूर्वक प्रदान करने और आय को विकास में पुनः निवेश करने के तरीकों को खोजने की आवश्यकता है।

आईआईएम, अहमदाबाद (आईआईएम-ए) ने ओएसआर  के संदर्भ में उद्यमिता की सर्वोत्तम प्रथाओं का दस्तावेज तैयार किया, इस दौरान कई सकारात्मक तथ्य सामने आए। उदाहरण के लिए, गुजरात के धरमज में, ग्राम पंचायत का वार्षिक बजट ₹5 करोड़ है, जिसकी आधी धनराशि स्थानीय रूप से प्राप्त आय से आती है। परती जमीन को बहुउद्देशीय पार्क में पुनर्विकसित करके, संपत्ति और जल टैक्स को डिजिटल रूप से एकत्र करके और अपने एनआरआई प्रवासियों के योगदान का लाभ उठाकर, इस गांव ने ₹2.5 करोड़ से अधिक का आरक्षित कोष तैयार कर लिया है। उत्तराखंड के सिरासु में, ग्राम पंचायत अपने दर्शनीय स्थलों में विवाह-पूर्व फोटो शूट के लिए नाममात्र शुल्क लेकर सालाना ₹15–20 लाख कमाती है। उन्होंने इसका उपयोग सौर प्रकाश और सड़कों के वित्तपोषण के लिए किया है। ओडिशा के मुकुंदपुरपटन में, ग्राम पंचायत की आय 2006 में ₹93,000 से बढ़कर 2018 में ₹36.78 लाख हो गई, जो मंदिर किराए, बाजार पट्टे और जिओ-टैग की गयी संपत्तियों के माध्यम से प्राप्त हुई। इन (और कई अन्य) ग्राम पंचायनों ने राज्य निधियों का इंतजार नहीं किया, बल्कि वे वित्तीय रूप से व्यावहारिक संस्थाओं में बदल गयीं।

फिर भी, इन उदाहरणों की संख्या बहुत कम है, जो आवश्यक बड़े बदलाव लाने के लिए पर्याप्त हो। अधिकतर पंचायतें कहाँ पीछे रह जाती हैं? प्रमुख रूप से इसे राजनीतिक हिचक से जोड़ा जा सकता है, जो मतदाता के विरोध के डर से टैक्स लगाने से पीछे हट जाते हैं। कई ग्राम पंचायतेंअब भी संपत्ति का मूल्यांकन भौतिक रूप से (मैन्युअल) करते हैं, जिसमें खराब रिकॉर्ड और लागू करने की कमजोरप्रक्रिया के कारण मूल्यांकन बहुत कम होता है। उपयोगकर्ता शुल्क शायद ही कभी संशोधित किए जाते हैं। कुछ राज्यों में, शुल्क की अधिकतम सीमा में दशकों से बदलाव नहीं हुआ है। इसके परिणामस्वरूप एक निम्न आय, गतिहीन टैक्स आधार और निर्भरता की संस्कृति बनी हुई है। जैसा कि एनआईपीएफपी की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, वैधानिक वित्तीय सशक्तिकरण का कोई मतलब नहीं है, यदि वास्तविक रूप से संचालन से जुड़ी स्वतंत्रता न हो।

तकनीक धीरे-धीरे स्थिति को बदल रही है। तमिलनाडु का वीपी टैक्स पोर्टल संपत्ति और पेशेवर करों की वास्तविक समय में निगरानी की सुविधा देता है, जबकि झारखंड में पीओएस-सक्षम कर संग्रह ने दक्षता और पारदर्शिता में सुधार किया है। यदि ऐसी प्रणालियों को स्वामित्व के संपत्ति मानचित्रण से जोड़ा जाए, तो पंचायतों के राजस्व आधार का व्यापक रूप से विस्तार हो सकता है। कुछ व्यवहारिक प्रोत्साहन, जैसे समय पर टैक्स देने वालों को सार्वजनिक रूप से मान्यता देना या स्पष्ट परिणाम दिखाना (“आपके टैक्स से इस सड़क का निर्माण हुआ”) स्वैच्छिक अनुपालन भी बढ़ा सकते हैं। जब लोग टैक्स और ठोस सुधारों के बीच संबंध देखते हैं, तो प्रतिरोध कम होगा – और “वित्तीय विश्वास” बढ़ेगा।

ग्राम पंचायत कार्यकर्ताओं के लिए एक विशेष क्षमता निर्माण पहल को शुरू करने में पंचायती राज मंत्रालय की हाल की पहल, जो आईआईएम अहमदाबाद के सहयोग से की गई है, जमीनी स्तर पर ओएसआर की विशाल संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने में महत्वपूर्ण योगदान देगी। राज्यों का समर्थन करने के लिए, मंत्रालय ने एक डिजिटल प्लेटफार्म "समर्थ" भी विकसित किया है, जो पंचायतों के ओएसआर प्रबंधन के लिए डिजिटलीकरण की शुरू-से-अंत तक की प्रक्रिया को सुगम बनाता है। मंत्रालय राज्यों को ओएसआर नियमों को तैयार करने या संशोधित करने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है, ताकि पंचायतें अधिक प्रगतिशील और सशक्त बन सकें। चिन्हित पंचायतों की मदद करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं जिनका राजस्व संग्रह उच्च है या जो विकास केंद्रों के पास उप-शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं, ताकि उनके लिए व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य परियोजनाएं तैयार की जा सकें। हमें उम्मीद हैकि इन स्थानों में सही उद्यमी ऊर्जाएक सकारात्मक आर्थिक चक्र पैदा कर सकती है, जिसके गुणात्मक प्रभाव होंगे।

अब यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि टैक्स दरों और क्षमता में सुधार करना महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल उद्यमशील सोच ही वास्तविक बदलाव ला सकती है। जैसा कि आईआईएम-ए के अध्ययन से पता चलता है, ऐसी ग्राम पंचायतें, जो चक्रीय आर्थिक मॉडल, जैसे बायोगैस और खाद संयंत्र, सौर ऊर्जा की बिक्री, सामुदायिक बाजार और ईको-पर्यटन आदि का उपयोग कर रही हैं, वे वित्तीय रूप से अधिक स्वतंत्र हैं और आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए, पंचायती राज मंत्रालय प्रदर्शन से जुड़े अनुदानों को बढ़ावा दे रहा है जो ओएसआर वृद्धि से जुड़ा है। इसके अलावा, चयनित ग्राम पंचायतों में 'वित्तीय साथी’ (फिस्कल फेलो) की अवधारणा, जो वित्तीय योजना और डिजिटल एकीकरण में मदद कर सकती है, को भी आजमाया जा सकता है। 16वां वित्त आयोग भी – केवल प्रक्रियाओं का पालन करने के बजाय- पंचायतों को प्रोत्साहित कर सकता है, ओएसआरमें वृद्धि करने वालों को पुरस्कृत कर सकता है ।

ग्राम स्वराज का लंबे समय से संजोया गया सपना केवल इस बात से साकार नहीं होगा कि ऊपर से कितना धन आता है, बल्कि इस बात से साकार होगा कि ग्राम पंचायतें स्थानीय स्रोतों का कितने प्रभावी ढंग से उपयोग करती हैं। पंचायतों को लेखाकर्मी की तरह नहीं, बल्कि उद्यमियों की तरह सोचना चाहिए, अवसरों की पहचान करनी चाहिए, जोखिमों का प्रबंधन करना चाहिए और लाभ को समुदाय में पुनर्निवेश करना चाहिए। भारत का ग्रामीण परिवर्तन केवल नई योजनाओं से नहीं होगा – यह तब संभव होगा, जब इसके 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतें आय अर्जित करना सीखेंगीऔर जब स्थानीय शासन देश का सबसे जीवंत उद्यमी इकोसिस्टम बन जाएगा।
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(श्री सुशील कुमार लोहानी एक आईएएस अधिकारी हैं और वर्तमान में भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय में अपर सचिव के रूप में कार्यरत हैं। रंजन घोष आईआईएम-ए के संकाय सदस्य हैं और इसके कृषि प्रबंधन केंद्र के अध्यक्ष हैं।)

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