लखीमपुर खीरी। तराई की मिट्टी आज एक दर्द, एक टीस, एक अनसुनी पुकार को आवाज दे रही है “हर धड़कन जरूरी है… हमें चाहिए हार्ट का डॉक्टर।” यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की चीख है, जिनकी सांसें समय से पहले थम गईं; जिनके अपनों की धड़कनें इसलिए रुक गईं क्योंकि जिले में एक भी स्थायी कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है।
पिछले कई दशकों से लखीमपुर खीरी तथा आसपास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कार्डियोलॉजी विभाग का नाम तक नहीं, ओपीडी नहीं, आईसीयू नहीं, कोई संबंधित लैब नहीं और विशेषज्ञ डॉक्टर तो बिल्कुल नहीं। दिल का दौरा पड़ने पर मरीजों को 100–150 किमी दूर लखनऊ या शाहजहाँपुर ले जाने की विवशता, एम्बुलेंसों की भारी कमी, और गरीब परिवारों के पास महंगे निजी अस्पताल का खर्च न होने के कारण हर साल अनगिनत जिंदगियां बुझ जाती हैं। कई घर शोक और असहायता की अंधेरी रातों में डूब जाते हैं। जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा बार-बार भेजे गए प्रस्ताव कागजों में दबकर रह जाते हैं, जबकि प्रदेश में 400 से अधिक कार्डियोलॉजिस्ट के पद खाली पड़े हैं। व्यवस्था की यह उदासीनता अब क्रूरता में बदलती दिख रही है।
ऐसे समय में पत्रकार सुरक्षा परिषद फाउंडेशन के जिला अध्यक्ष मुजीबुर रहमान ने हिम्मत की मशाल जलाते हुए यह जनांदोलन खड़ा किया है “हर धड़कन जरूरी है, हमको चाहिए हार्ट का डॉक्टर, लखीमपुर खीरी” यह मुहिम सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि जीवन का अधिकार बन चुकी है।
यह केवल लखीमपुर की लड़ाई नहीं, पूरे तराई क्षेत्र बहराइच, श्रावस्ती, पीलीभीत और खीरी सभी की साझा जंग है। मुहिम अब दस्तक नहीं, दहाड़ बननी चाहिए।इसके लिए जनप्रतिनिधियों सांसद, विधायक, मंत्रियों को लिखित मांग-पत्र सौंपना, उसकी रसीद लेना और जनता की आवाज को विधानसभा से लोकसभा तक पहुंचाना आवश्यक है।
लखीमपुर की जनता वर्षों से स्वास्थ्य की इस मूलभूत सुविधा के लिए तरस रही है; अब मौन रहने का समय बीत चुका है। मुजीबुर रहमान और उनकी टीम द्वारा शुरू की गई यह पहल निस्संदेह सराहनीय, आवश्यक और समय की मांग है। हर उस परिवार की ओर से यह लड़ाई है, जिसने अपना प्रियजन खोया… हर उस दिल की ओर से, जो अभी धड़क रहा है… और हर उस दिल की ओर से भी, जो कल धड़कने वाला है। क्योंकि सच यही है जब अस्पताल में ‘दिल’ का डॉक्टर नहीं होगा, तो दिल कैसे धड़केगा?
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