इफ्फी ओटीटी जूरी ने आजादी, विविधतापूर्ण सामग्री और कहानी कहने के प्रतिभाशाली नवीन युग को रेखांकित किया
56वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव-आईएफएफआई में भारत में तेज़ी से विकसित हो रहे और कथ्य गतिशीलता को प्रतिबिंबित करने वाले ओटीटी संवर्ग के इंडियन पैनोरमा वेब सीरीज़ जूरी ने आज गोवा में मीडिया को संबोधित किया। जूरी अध्यक्ष भारतबाला ने सदस्यों शेखर दास, मुंजाल श्रॉफ और राजेश्वरी सचदेव के साथ डिजिटल कथाओं की विस्तारित दुनिया और भारत की रचनात्मक संस्कृति को नए सिरे से आकार देने के ओटीटी प्लेटफॉर्म की प्रभावशीलता की चर्चा की। उन्होंने समकालीन कथ्य प्रस्तुत करने के बदलते व्याकरण ही नहीं, देश भर में दर्शकों की विविधतापूर्ण मौलिक सामग्री और सीमाओं से परे पहुंच गई सामग्री के प्रति बढ़ती रुचि को रेखांकित किया।
ओटीटी प्लेटफॉर्मों द्वारा लाए बड़े बदलाव की चर्चा करते हुए, भारतबाला ने इसे ऐसा माध्यम बताया जिसने कहानियों को फ़ॉर्मूले और रूढ़िवादिता के बंधनों से मुक्त बना दिया है। उन्होंने कहा कि जहां कई सामाजिक नाटक और क्षेत्रीय कथाएं कभी सिनेमाघरों से गायब सी हो गई थीं, वहीं ओटीटी प्लेटफॉर्मों ने उन्हें नई ऊर्जा के साथ फिर से जीवित कर दिया है। भारतबाला ने कहा कि भारत एक महाद्वीप जितना ही विविधता से भरा है। उन्होंने कहा कि ओवर-द-टॉप हमें अपने पड़ोसियों, स्थानीय परिवेश और तात्कालिक समाज की वो कहानियां सुनाने का मौका देता है जो अन्यथा कभी सामने नहीं आतीं। यह प्रारूप नई प्रतिभाओं को उभरने और नए प्रयोग का भी अवसर देता है जो अच्छे अभिनेता-अभिनेत्रियों को जमीनी स्तर की रचनात्मकता से उभरकर मुख्यधारा की सिनेमा में पहुंचने का मौका देता है।
श्री भारतबाला ने स्ट्रीमिंग के दौर में भारतीय कहानियों की वैश्विक पहुंच का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब दृश्य श्रव्य सामग्री अमेज़न या नेटफ्लिक्स पर डाले जाते हैं, तो वह वैश्विक बन जाता है। उन्होंने कहा कि हमें अपने कथ्य सृजनकारों को कला निखारने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उनकी कहानियां लोगों से जुड़ी और प्रामाणिक होने के साथ ही सार्वभौमिक रुप से प्रभावकारी बनी रहे। परंपरा से अलग इंजीनियरों से लेकर स्व-शिक्षित फिल्मकारों तक सृजनशीलता में नए लगे लोगों से उन्होंने कहानी कहने में भावनात्मक बारीकियों और संवेदनशीलता पर फिर से जोर देने का आह्वान किया।
दिग्गज फिल्मकार शेखर दास ने डिजिटल रचनाकारों की कलात्मक दायित्वों की चर्चा की। । ओटीटी को सिनेमा का रोमांचकारी विस्तार बताते हुए, उन्होंने कहा कि यह प्रारूप जटिल सामाजिक वास्तविकताओं की गहन खोज संभव बनाता है। उन्होंने वेब सीरीज़ों में गहराई, विविधता और समकालीन भारत के ईमानदार चित्रण की सराहना करते हुए कहा कि यह कला समाज के संघर्षों को दर्शाती है। उन्होंने आठ-एपिसोड वाली सीरीज़ देखने की तुलना आठ स्वतंत्र फिल्मों के अनुभव से की, और लंबे प्रारूप की कहानी दिखलाने के प्रयास और सिनेमाई जुझारूपन का उल्लेख किया।
निर्माता-निर्देशक मुंजाल श्रॉफ ने ओटीटी क्रांति को दृश्यश्रव्य सामग्री वितरण का लोकतांत्रिकरण बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रारूप में प्रशासकीय हस्तक्षेप कम होने और दर्शकों की पसंद बढ़ने के साथ, दर्शक अब स्टारडम की बजाय ईमानदारी को अधिक महत्व दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को विभिन्न शैलियों में साहसपूर्ण प्रयोग करते देखना ताज़गी भरा है। ओटीटी और यूट्यूब की बदौलत, फिल्मकारों के लिए बॉक्स ऑफिस के फ़ॉर्मूले या टेलीविज़न की पाबंदियों की चिंता किए बिना अब अपरंपरागत कहानियां कहने की स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा कि कंटेंट के उपभोग का प्रतिमान नाटकीय रूप से बदल गया है, दर्शक समझ-बूझकर विविधतापूर्ण और चुनौतीपूर्ण सामग्री देखना चाहते हैं।
अभिनेत्री राजेश्वरी सचदेव ने दर्शकों और उनके स्क्रीन के बीच के गहरे संबंधों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि कहानियां अब मोबाइल के रूप में हमारे हाथों में आ गईं हैं साथ ही नए नज़रिए से इन्हें देखने की चाहत भी बढ़ी है। उन्होंने जेल जीवन पर आधारित एक वेब सीरिज का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे कभी वर्जित रहे विषयों को अब ईमानदारी और मानवीय तरीके से पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये कहानियां पहले बड़े पर्दे पर नहीं आ पाती थीं, लेकिन आज ये उत्सुकता और संवेदना के साथ प्रस्तुत की जा रही हैं और देखी जा रही हैं।
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