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मंगलवार, 25 नवंबर 2025

व्यापार करने में सुगमता के नाम पर गुलामी की दस्तक! है श्रम संहिताओं का क्रियान्वयन


मेडिकल सेल्स रिप्रेजेंटेटिव यूनियन UPMSRA का तीखा प्रतिवाद,

 24–26 नवंबर तक काला दिवस,

 26 नवंबर को प्रतिवाद, अवज्ञा दिवस का राष्ट्रव्यापी आह्वान

लखीमपुर। देश की मेहनतकश आबादी के गुस्से और तीव्र आपत्तियों को धता बताते हुए केंद्र सरकार ने 21 नवंबर 2025 को चार विवादित श्रम संहिताओं को अधिसूचित कर दिया, ऐसी संहिताएँ, जिन्हें श्रम सुधार और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस के हौवे के साथ आगे बढ़ाया गया, लेकिन जिनकी परतें खोलने पर उजागर होता है आधुनिक गुलामी, कॉरपोरेट मुनाफाखोरी और कामगारों के संवैधानिक अधिकारों का सुनियोजित क्षरण।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कार्यरत मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव एवं सेल्स रिप्रेजेंटेटिव की एकमात्र ट्रेड यूनियन UPMSRA, तथा राष्ट्रीय फेडरेशन FMRAI, इन संहिताओं को सरकार की मज़दूर विरोधी मानसिकता का सबसे कठोर रूप बताते हुए सड़कों पर संघर्ष का बिगुल फूंक चुके हैं। सरकार ने न सिर्फ 1976 का ऐतिहासिक सेल्स प्रमोशन एम्प्लॉईज (कंडीशन्स ऑफ सर्विस) एक्ट खत्म कर दिया, बल्कि कुल 29 लेबर कानूनों को समेटकर ऐसे ढांचे में बदल दिया है जिसमें नियोक्ता निर्बाध शक्तियों से लैस होंगे और श्रमिक अनिश्चितता, विवशता और शोषण की गिरफ्त में कैद। फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट, जो रोजगार को अस्थायी, असुरक्षित और हटाए जा सकने योग्य बनाता है। हड़ताल को अपराध की श्रेणी में डालना, जो लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा प्रहार है। यूनियनों का कहना है कि सरकार एक ऐसा श्रम बाज़ार निर्मित करना चाहती है जहाँ मजदूरों का बोलना, विरोध करना, या अपना हक़ मांगना भी अपराध माना जाएगा। UPMSRA ने ऐलान किया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सभी सेल्स प्रमोशन एम्प्लॉईज़ 24 से 26 नवंबर 2025 तक “काला दिवस” मनाएँगे। इस दौरान सरकार की मजदूर-विरोधी संहिताओं के खिलाफ विरोध दर्ज कराया जाएगा। प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिला मजिस्ट्रेटों के माध्यम से भेजे जाएंगे। UPMSRA ने स्पष्ट किया है कि श्रम संहिताओं को वापस लिए बिना वे किसी भी कीमत पर पीछे हटने वाले नहीं हैं। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, स्वतंत्र औद्योगिक फेडरेशनों और संयुक्त किसान मोर्चा ने साझा रूप से घोषणा की है कि 26 नवंबर 2025 को राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद और अवज्ञा दिवस मनाया जाएगा। यह दिन सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि मजदूर–किसान एकता के ऐतिहासिक प्रतिरोध का प्रतीक बनने जा रहा है। UPMSRA और FMRAI ने देश के सभी कामगारों, किसानों, युवाओं और नागरिकों से अपील की है कि वे इस संघर्ष का हिस्सा बनें।
उनका कहना है कि यह लड़ाई केवल मेडिकल या सेल्स प्रतिनिधियों की नहीं, बल्कि देश के हर श्रमिक, हर मेहनतकश परिवार, हर नागरिक की जीविका और भविष्य की लड़ाई है।
कुलमिलाकर श्रम संहिताओं का लागू होना एक निर्णायक मोड़ है जहाँ सवाल सिर्फ रोजगार का नहीं, बल्कि लोकतंत्र, अधिकारों और मानव गरिमा के भविष्य का है। मजदूरों, कर्मचारियों और किसानों के संयुक्त प्रतिवाद ने सत्ता के गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। आने वाले दिन तय करेंगे कि यह संघर्ष किस दिशा में देश को ले जाएगा, समानता की ओर या गुलामी की ओर।

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