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सोमवार, 3 नवंबर 2025

अभिव्यक्ति : सरकारी अस्पताल का बदलता चेहरा, ओयल जिला अस्पताल

रामचंद्र मंगलेश, मितौली खीरी

कभी-कभी जीवन में ऐसे अनुभव मिलते हैं जो न केवल हमारे दृष्टिकोण को बदल देते हैं, बल्कि हमारे भीतर विश्वास, आभार और गर्व की नई ज्योति भी प्रज्वलित कर देते हैं। मेरा जिला अस्पताल ओयल, मोतीपुर से जुड़ा अनुभव ऐसा ही एक प्रेरक अध्याय है जिसने मुझे स्वस्थ भी किया और यह एहसास भी दिलाया कि “सेवा और संवेदना जब एक साथ होती हैं, तो ईश्वर यहीं धरती पर दिखाई देता है।”
कुछ समय पहले मुझे गॉलब्लैडर स्टोन की गंभीर समस्या हुई। दर्द असहनीय था और डॉक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी। मन में संशय था क्या जिला अस्पताल में यह संभव है? क्या सरकारी अस्पताल में वैसी देखभाल मिलेगी जैसी निजी संस्थानों में होती है? लेकिन मेरे एक मित्र ए.पी. सिंह के आग्रह पर मैंने जिला अस्पताल ओयल का रुख किया, और यहीं से मेरे भ्रम के बादल छंटने लगे।
अस्पताल की स्वच्छता, व्यवस्था और स्टाफ का अनुशासन देखकर मन को पहली ही दृष्टि में भरोसा मिला। वहाँ मेरी भेंट हुई ई.एम.ओ. सर्जन डॉ. ललित वर्मा (एमबीबीएस, एमएस) से एक ऐसे चिकित्सक जिनके शांत चेहरे और आत्मविश्वास भरे शब्दों ने मेरी सारी शंकाएँ हर लीं। उन्होंने धैर्यपूर्वक मेरी स्थिति समझाई, उपचार की प्रक्रिया स्पष्ट की और मुझे आश्वस्त किया कि मैं सुरक्षित हाथों में हूँ।
ऑपरेशन का दिन मेरे जीवन का महत्वपूर्ण क्षण था। ऑपरेशन थिएटर की तैयारियों से लेकर सर्जरी टीम की एकाग्रता तक सब कुछ अनुशासन और समर्पण का सुंदर उदाहरण था। डॉ. वर्मा और उनकी सर्जिकल टीम ने अत्यंत कुशलता से यह क्रिटिकल केस सफलतापूर्वक पूरा किया। सच कहूँ तो जिस सहजता और दक्षता से उन्होंने कार्य किया, वह किसी निजी अस्पताल से कम नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक आत्मीय थी।
ऑपरेशन के बाद की देखभाल ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया। आईसीयू में हर नर्स, हर वार्ड बॉय, हर डॉक्टर एक परिवार की तरह मरीजों का ध्यान रख रहा था। दवाओं से लेकर परामर्श तक हर पल में मानवता झलक रही थी। मुझे लगा, यह केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि “सेवा-धर्म” का सजीव रूप है।
उसी दौरान मैंने देखा उसी वार्ड में शिवम् का पित्ताशय ऑपरेशन, मोहम्मद नासिर की किडनी सर्जरी और मोहम्मदी सराय के मशरूफ अली का भी जटिल ऑपरेशन हुआ और सभी मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौटे। मशरूफ अली का कहना था कि उन्होंने पहले निजी अस्पतालों में पैंतालीस हजार रुपए खर्च किए, पर आराम नहीं मिला; जबकि यहाँ, नाममात्र के खर्च में पूर्ण राहत मिली। यह केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि जनविश्वास की पुनर्स्थापना थी।
आज मुझे डिस्चार्ज हुए तीन दिन हुए हैं, और मैं पूरी तरह स्वस्थ हूँ। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो महसूस करता हूँ अगर मैं निजी अस्पताल चला जाता, तो शायद इतना आत्मीय अनुभव कभी न मिलता। यहाँ के डॉक्टर और स्टाफ सिर्फ “इलाज” नहीं करते वे “मरीज को मानव मानकर सेवा करते हैं।”
मेरे लिए यह अनुभव एक गहरी सीख है सरकारी अस्पतालों के प्रति बनी नकारात्मक सोच को बदलने का समय आ गया है। जिला अस्पताल ओयल, मोतीपुर अब केवल इलाज का स्थान नहीं, बल्कि मानवता, संवेदना और समर्पण का प्रतीक बन चुका है। आज मैं गर्व से कह सकता हूँ मुझे गर्व है अपने जिला अस्पताल ओयल पर, जहाँ सेवा ही सबसे बड़ा उपचार है।”

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