1500 वर्षों पहले हुए पराभव से पुनरुद्भव की गाथा...
आज कल अधिकांश लोग शायद यह भी नहीं जानते हैं कि भारतीय इतिहास में तक्षशिला शिक्षण संस्थान का विनाश, बर्बर आक्रांताओं और धार्मिक उन्माद से प्रेरित हमलावरों द्वारा रची गई सबसे दु:खद घटनाओं में से एक था। 5वीं शताब्दी में हूणों के आक्रमण ने इस महान विश्वविद्यालय को गंभीर क्षति पहुंचाई थी। उसके पश्चात सामूहिक प्रयासों से इसे कुछ हद तक पुनर्स्थापित किया भी गया लेकिन 11वीं शताब्दी में महमूद ग़ज़नवी ने इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसके बाद विश्वविद्या का यह केंद्र कभी भी अपने मूल स्वरूप में वापस नहीं लौट सका और इतिहास के पन्नों में एक स्मृति मात्र बनकर रह गया।
पिछले एक हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तक्षशिला की आत्मा मानो भारत के जनमानस से यह प्रश्न पूछ रही थी कि उसकी आख़िर वह कौन सी ग़लती थी कि जिसके लिए न केवल उसे पुनर्स्थापित करने का ही कोई प्रयास किया गया और न ही किसी के द्वारा उसके विषय में सोचने की आवश्यकता महसूस की गई। इस प्रकार धीरे-धीरे उसे भारतीय इतिहास की स्मृतियों से लगभग मिटा दिया गया।
खैर, अब उत्तर प्रदेश से इस संबंध में एक प्रसन्नता का समाचार आया है। गत 09 अक्टूबर, 2025 को उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग ने ‘तक्षशिला विश्वविद्यापीठ’ गुरुकुल के प्राथमिक शिक्षण प्रकल्प को अपनी सैद्धांतिक अनुमति प्रदान की है। यह सिर्फ एक सरकारी स्वीकृति ही नहीं है बल्कि यह देश की प्राचीन गुरुकुलीय परंपरा को नए स्वरूप में फिर से स्थापित करने की दिशा में बड़ी उपलब्धि भी है। यद्यपि अभी इस नवीन संस्थान का आकार अत्यंत ही लघु है लेकिन वैचारिक बीज के स्थापन की दृष्टि से इसे छोटा प्रयास मानना सही नहीं होगा।
इस यात्रा की शुरुआत तब हुई जब उत्तराखंड में हिंगलाज मानव सेवा संस्थान न्यास की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘प्रोजेक्ट तक्षशिला’ को धरातल पर उतारने की संभावनाएं ढूंढ रहे आचार्य श्रीवृत्त को, परियोजना के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष एड० राहुल तिवारी ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर नगर में गुरुकुल को स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया। तत्पश्चात 24 जून, 2022 को आचार्य श्रीवृत्त के लखीमपुर पहुंचने के साथ ही यह परियोजना धरातल पर उतर गई। प्रारंभ में गुरुकुल को स्थापित करने की राह में कई प्रकार की चुनौतियां भी आईं, लेकिन टीम तक्षशिला के स्वयंसेवकों की जीवटता ने हार नहीं मानी। शनैः-शनैः गुरुकुल बड़ा आकार लेता गया और कार्ययोजना के क्रियान्वयन के 479वें दिन- 15 अक्टूबर, 2023 को टीम तक्षशिला ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक (अवध) श्री कौशल जी की अध्यक्षता में गुरुकुल का भूमिपूजन व शिलान्यास सम्पन्न किया।
गत 09 मार्च, 2024 को धर्मनगरी हरिद्वार में प्रोजेक्ट तक्षशिला की उत्तराखंड कार्यकारिणी के प्रमुख डॉ० कमलेश काण्डपाल की अध्यक्षता में तक्षशिला परियोजना की षष्ठम् राष्ट्रीय बैठक संपन्न हुई। इस बैठक में देश भर से आए 50 से अधिक विद्वानों और समाजसेवियों ने तक्षशिला विश्वविद्यापीठ गुरुकुल की पुनर्स्थापना करने का दृढ़ संकल्प लेते हुए मां गंगा के तट पर शंखनाद किया। इसके पश्चात पूर्वनिर्धारित योजनानुसार, कार्ययोजना के क्रियान्वयन के ठीक 1000वें दिन- 19 मार्च 2025 को आचार्य श्रीवृत्त के नेतृत्व में टीम तक्षशिला ने तक्षशिला विद्यापीठ के नव-निर्मित भवन के प्रथम खण्ड को स्थापित कर उसका लोकार्पण किया गया। विद्यापीठ के भवन निर्माण एवं स्थापन की प्रक्रिया में देश के प्रख्यात सिविल अभियंता इं० रवि सिंह एवं वास्तुकार आशुतोष सिंह का अभूतपूर्व योगदान रहा। उनके मार्गदर्शन में यह प्रोजेक्ट तय समय से पहले अपने लक्ष्य को पूर्ण कर सका।
ज्ञात हो कि तक्षशिला विश्वविद्यापीठ गुरुकुल को हिंगलाज मानव सेवा संस्थान की शैक्षिक पहल तक्षशिला परियोजना के अंतर्गत स्थापित किया गया है। यद्यपि इस गुरुकुल में समाज के सभी वर्गों के बालक-बालिकाएं प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं लेकिन सीमित स्थानों को दृष्टिगत रखते हुए वर्तमान समय में गुरुकुल 4 से 7 वर्ष की आयु के ऐसे ज़रूरतमंद छात्रों को प्रवेश में प्राथमिकता प्रदान करता है जिनके या तो माता अथवा / एवं पिता नहीं हैं अथवा जो आर्थिक रूप से अत्यंत ही कमज़ोर परिवारों से संबंध रखते हैं। गुरुकुल ऐसे छात्रों को न केवल पूर्णतःनिःशुल्क शिक्षा ही प्रदान करता है वरन वह उन्हें पाठ्यसामग्री, छात्रावास, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा एवं उनकी आवश्यकताओं की समस्त वस्तुएं भी निःशुल्क प्रदान करता है। गुरुकुल के पाठ्यक्रम में आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ छात्रों के आध्यात्मिक उन्नयन एवं शारीरिक विकास के लिए वैदिक शिक्षा, योग एवं खेल प्रशिक्षण के विभिन्न कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं जो कि छात्रों को उनकी इच्छानुसार एवं योग्यतानुसार उपलब्ध करवाए जाते हैं।
आज तक्षशिला विश्वविद्यापीठ केवल एक विद्यालय ही नहीं बल्कि शिक्षा, संस्कार, समाज और राष्ट्रसेवा का ऐसा संगम बनकर उभरा है जो प्राचीन भारतीय दर्शन और मूल्यों को नवीन एवं आधुनिक जीवनशैली में समाहित कर, समाज के द्वारा, समाज के लिए, समाज के अंश को, समाज को लौटा रहा है। तक्षशिला का यह पुनर्प्राकट्य इस बात का जीवंत उदाहरण है कि यदि सततता, निरंतरता, एकनिष्ठता और लाक्ष्यिक प्रतिबद्धता के साथ कोई संकल्प लिया जाता है तो उसके लिए समर्पित किए गए समस्त उद्यम एवं सहयोग गुणोत्तर रूप से बहुगुणित होकर आशातीत परिणाम प्रदान करते हैं। ऐसे महान संकल्पों का भार वहन करने वाले कर्मयोगियों की जीवटता- भुला दिए गए इतिहास में, मृत हो चुकी चेतनाओं और विस्मृतियों को, फिनिक्स पक्षी की तरह राख के ढेर से उठाकर उन्हें पुनर्जीवित करने की सामर्थ्य रखती है।
आगामी शैक्षणिक सत्र से तक्षशिला विश्वविद्यापीठ अधिक से अधिक छात्रों को प्रवेश प्रदान करने हेतु तैयार है। इस दिशा में कार्य करते हुए विद्यापीठ के महाकुलाधिपति दुर्गा प्रसाद मुखर्जी के निर्देश पर कुलाधिपति आचार्य श्रीवृत्त की अध्यक्षता में प्रति-कुलपति पंकज गोयल, प्रति-कुलपति रणधीर सिंह राठौर, मानद न्यासी अजीत कुमार मिश्रा, विद्या-परिषद् के अध्यक्ष चौधरी अमित बालियान, समन्वयक (प्रशासन) मनीष प्रताप सिंह, समन्वयक (क्रियान्वयन) सीए नलिनी मलिक की सदस्यता में गठित की गयी 7 सदस्यीय न्यासमंडलीय-कार्यकारिणी ने एड० राहुल तिवारी के प्रबंधन एवं राकेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में विद्यापीठ की स्थानीय संस्थागत-कार्यकारिणी का गठन एवं आगामी सत्र से उसके स्थानीय प्रशासक-मण्डल को निर्धारित कर, उसके सदस्यों की सामर्थ्यानुसार दायित्व प्रदान करने का आग्रह किया है। विद्यापीठ के कुल सचिव मनोज श्रीवास्तव को प्रबंध-मण्डल के साथ परामर्श कर समस्त वित्तीय एवं अन्य प्रशासनिक दायित्वों के निर्धारण पर अंतिम निर्णय लेने हेतु अधिकृत किया गया है। मोहन धवन को कुलगुरु प्रभार प्रदान करते हुए अंकित मेहरोत्रा एवं कुलदीप शर्मा को विद्यापीठ के समस्त कार्यों के पर्यवेक्षक एवं स्थानीय कार्यकारिणी द्वारा प्रदान किए गए दायित्वों के भावी धारक के रूप में सुनिश्चित किया गया है।
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