इज़राइल एक छोटा देश होते हुए भी आज पूरी दुनिया में स्वाभिमान, आत्मरक्षा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक माना जाता है। इज़राइल की धरती पर भारतीय सैनिकों, विशेषकर राजस्थान के राजपूतों की वीरता का उल्लेख प्रथम विश्वयुद्ध (1917–18) की घटनाओं से जुड़ा है।उस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था और ब्रिटिश सेना में बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक शामिल थे। 1917–18 में गाज़ा, हैफा और जेरूसलम जैसे मोर्चों पर भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों ने अद्वितीय साहस का परिचय दिया। इनमें सबसे उल्लेखनीय भूमिका जोधपुर लांसर्स की रही, जिसमें राजस्थान के शूरवीर राजपूत सवार थे।23 सितम्बर 1918 की “बैटल ऑफ हैफा” विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस युद्ध में जोधपुर लांसर्स के राजपूतों ने घोड़ों पर सवार होकर दुश्मनों की मशीनगनों और तोपों का सामना किया तथा अदम्य साहस दिखाते हुए हैफा शहर को आज़ाद कराया। इस लड़ाई में कई राजपूत सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, जिनके बलिदान ने भारतीय शौर्य को अमर कर दिया।हैफा (इज़राइल का प्रमुख बंदरगाह शहर) की स्वतंत्रता में राजस्थान के राजपूतों का योगदान इतना महत्वपूर्ण था कि इज़राइल आज भी हर वर्ष 23 सितम्बर को “हैफा डे” के रूप में उनकी वीरता को नमन करता है। वहाँ स्थापित “इंडियन सोल्जर्स मेमोरियल” इन राजपूत योद्धाओं के साहस और बलिदान की गवाही देता है।राजस्थान के राजपूतों ने इज़राइल की धरती पर यह संदेश दिया कि आत्मसम्मान, साहस और कर्तव्यपालन सर्वोपरि हैं। यही कारण है कि उनकी गाथा न केवल इज़राइल में सम्मान के साथ याद की जाती है, बल्कि भावी पीढ़ियों को भी प्रेरणा देने के लिए पढ़ाया जाएगा ।
शनिवार, 4 अक्टूबर 2025
वीरता का इतिहास इजराइल में पढ़ाया जाएगा
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