( अनिल कुमार श्रीवास्तव)
वो खामोश अदृश्य दुश्मन... जिसे हमने पीछे छोड़ दिया था, फिर लौट आया है। इस बार न ठंडी हवाओं के साथ, न कोहरे की ओट से, बल्कि तपती दोपहर, जलती सड़कों और गर्म लू के बीच उसने फिर से दस्तक दी है। नाम है उसका—JN.1। भारत में 19 मई तक 93 सक्रिय मामले सामने आ चुके हैं। संख्या भले छोटी लगे, पर इसके पीछे छुपा डर बहुत बड़ा है।
अब तक हमने देखा था कोविड सर्दी के मौसम में ज्यादा सक्रिय रहता है। पर इस बार ये वायरस गर्मी की धूप में भी अपनी परछाई फैला चुका है। बुखार अब पसीने में भी तपने लगा है। गला बैठा-बैठा सूखने लगा है। बंद नाक, सूखी खांसी, टूटते शरीर, और सिरदर्द की टीसें ये सब अब गर्मियों के हिस्से हो चुके हैं। किसी को स्वाद नहीं आ रहा, किसी को अपनी ही साँस भारी लग रही है। यह सिर्फ एक बीमारी नहीं, फिर से लौटती वह अनकही बेचैनी है, जिसने कभी शहरों को वीरान कर दिया था, दरवाज़ों को बंद कर दिया था और रिश्तों को दूरी में बदल दिया था।
इस बार भी सबसे पहले निशाने पर हैं हमारे बुज़ुर्ग वो जो अब भी बच्चों के माथे पर हाथ रखकर बुखार को पहचान लेते हैं। कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग, कैंसर या HIV से जूझते मरीज, और वो जिनके फेफड़े पहले से ही थक चुके हैं इनके लिए JN.1 एक सीधी चुनौती बनकर सामने आया है।
सिंगापुर, हांगकांग, चीन... कोरोना की आहट फिर से अंतरराष्ट्रीय सीमाएं पार कर रही है। टीवी स्क्रीन पर फिर वही लाल बुलेटिन झलकने लगे हैं। बिग बॉस 18 की अभिनेत्री शिल्पा शिरोडकर और आईपीएल के स्टार ट्रैविस हेड भी इसकी चपेट में आ चुके हैं। नामचीन चेहरे भी अब वायरस के निशाने पर हैं फिर हम आप तो आम इंसान हैं।
मास्क अब सिर्फ एक कपड़ा नहीं, ज़िन्दगी की परत है। भीड़भाड़ अब शोर नहीं, खतरा है। हाथों की सफाई अब केवल आदत नहीं, ज़िम्मेदारी है। और हर हल्का लक्षण हर छींक, हर जुकाम अब चेतावनी है।
अगर किसी को बुखार है, सिर भारी लग रहा है, स्वाद गायब है या थकावट असामान्य है तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। JN.1 का इलाज भले वही पुराना है, पर उसकी चाल नई है। कोरोना एक बार फिर आया है। वह न डरा रहा है, न चीख रहा है बस चुपचाप भीतर दाखिल हो रहा है। इस बार शायद वो उतना घातक न हो, लेकिन उसकी उपस्थिति एक संकेत है कि हम कभी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हुए। कुलमिलाकर हमारे भीतर की सावधानी ही अब हमारी सबसे बड़ी ढाल है।
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