लेखक: लाइफस्टाइल कोच, अनूप सिंह...✍️
जब भी ‘माहमारी’ शब्द सुनाई देता है, हमारे दिमाग में एक खतरनाक, जानलेवा वायरस या तेजी से फैलने वाली बीमारी की छवि उभरती है। पर क्या आपने कभी यह सोचा है कि एक ऐसा दुश्मन भी हमारे बीच पनप रहा है जो न शोर करता है, न आक्रामक दिखता है, लेकिन धीरे-धीरे शरीर, समाज और संसाधनों को चुपचाप खोखला करता जा रहा है? यह है – मोटापा, एक मौन महामारी (Silent Epidemic)।
🔘 भारत में मोटापा: आंकड़ों की चेतावनी
एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य शोध पत्रिका The Lancet की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत में 45 करोड़ से अधिक वयस्क मोटापे से ग्रस्त हो सकते हैं। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं, बल्कि आने वाले समय की एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य चुनौती है।
आज भारत दो विपरीत दिशाओं में बढ़ रहा है – एक ओर कुपोषण, दूसरी ओर अत्यधिक पोषण यानी ओवरन्यूट्रिशन। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी भयावह रूप ले चुकी है।
🔘 कैसे बनती है यह महामारी मौन?
मोटापा कोई एक दिन में नहीं होता। यह आदतों, खानपान, नींद, तनाव और गतिहीन जीवनशैली का संगठित परिणाम होता है। यह इतने धीमे और ‘सामान्य’ ढंग से शरीर में बसता है कि हम इसे पहचान ही नहीं पाते – और जब तक पहचानते हैं, तब तक यह हृदय रोग, मधुमेह, थायरॉयड, घुटनों की समस्या, यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का द्वार खोल चुका होता है।
🔘 सामाजिक स्वीकृति और अनदेखी
हमारे समाज में "थोड़ा मोटा होना तो सेहतमंद होने की निशानी है" जैसी बातें आम हैं। लेकिन अब विज्ञान कहता है – अधिक चर्बी मतलब अंदरूनी सूजन और मेटाबोलिक असंतुलन।
इसके अलावा बॉडी-शेमिंग और फैशन-फिटनेस की अतिरेक सोच ने भी लोगों को या तो अति सतर्क बना दिया है या बिल्कुल उदासीन। यही सामाजिक भ्रम इस मौन महामारी को बल देता है।
🔘 बदलती जीवनशैली की भूमिका
पैदल चलने की आदत खत्म हो गई है, अब हर कोना गाड़ी से तय होता है।
पहले भोजन बनता था घर पर, अब आता है पैकेट में।
पहले बच्चे खेलते थे गली में, अब टिके हैं स्क्रीन पर।
नींद कम, तनाव ज़्यादा और शरीर पर ध्यान नगण्य।
इन सबका जोड़ है – मोटापा।
🔘 शारीरिक ही नहीं, मानसिक महामारी भी
मोटापा आत्मविश्वास, रिश्तों, सामाजिक व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। शरीर में जब हार्मोनल असंतुलन आता है, तो मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन, अवसाद (depression) और आत्मग्लानि जन्म लेते हैं।
🔘 मोटापा: राष्ट्र की उत्पादकता पर असर
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, मोटापा केवल व्यक्ति की नहीं, बल्कि राष्ट्र की उत्पादकता की समस्या है। जब लोग मोटापे से जुड़ी बीमारियों में फँसते हैं तो वे कार्य क्षमता खोने लगते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बढ़ता है, और संसाधनों की मांग अनावश्यक रूप से बढ़ जाती है।
🔘 समाधान की शुरुआत – जागरूकता और इच्छा शक्ति से
इस महामारी का इलाज कोई इंजेक्शन नहीं, बल्कि संयम, संतुलन और सतत प्रयास है।
चलना शुरू करें – हर दिन कम से कम 30 मिनट।
🔘 खाना समझदारी से खाएं : मात्रा, समय और सामग्री का ध्यान रखें।
सोना और जागना तय समय पर हो।
🔘 तनाव पर नियंत्रण रखें : योग, ध्यान और संवाद से।
🔘 स्क्रीन टाइम सीमित करें और शरीर को सक्रिय रखें।
🔘 अब नहीं जागे तो देर हो जाएगी
🔘 मोटापा न कोई बीमारी है, न कोई फैशन , यह एक चेतावनी है।
और यह चेतावनी अब नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती।
अगर हम अभी भी नहीं जागे, तो आने वाले वर्षों में स्वस्थ भारत का सपना, बीमार शरीरों में कैद हो जाएगा।
इसलिए आइए, एक सशक्त, सजग और स्वस्थ समाज की ओर बढ़ने का संकल्प लें, अभी, इसी क्षण से।
🔘 क्या आप जानते हैं?
भारत में हर तीसरा शहरी वयस्क BMI के अनुसार मोटापे या अधिक वजन की श्रेणी में आता है।
🩺 विशेषज्ञ की सलाह (Doctor’s Tip)
“मोटापा कोई सौंदर्य दोष नहीं, बल्कि एक मेडिकल कंडीशन है। इसे लेकर शर्म नहीं, समझ और समाधान की ज़रूरत है।”
🔘 डॉ. प्रिया सक्सेना (स्त्री रोग विशेषज्ञ)
अगले लेख में पढ़ें: "मोटापे के मुख्य कारण, खानपान से तनाव तक"
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