नई दिल्ली। जब राष्ट्र के हृदय में शौर्य की लहरें उठती हैं और आकाश में पराक्रम की गूंज सुनाई देती है, तब शब्द नहीं, संकल्प बोलते हैं। आज, ऑपरेशन 'सिंदूर' की सफलता के उपरांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए न केवल सैन्य विजय की तारीफ की, बल्कि एक भावनात्मक, गर्वपूर्ण और सशक्त भारत की चेतना को भी स्वर दिया।
अपने शांत किंतु दृढ़ स्वर में प्रधानमंत्री ने कहा, हम सभी ने देश की क्षमता और धैर्य को देखा है। यह वाक्य मात्र एक भाव नहीं था, यह करोड़ों भारतीयों की निःशब्द प्रार्थनाओं, सशस्त्र बलों की रात्रि जागरणों और वैज्ञानिकों की अथक तपस्या का प्रतिबिंब था। प्रधानमंत्री ने ससम्मान उन वीर योद्धाओं, खुफिया अधिकारियों और वैज्ञानिकों को नमन किया, जिनकी अदृश्य परिश्रम से यह विजय संभव हुई। उन्होंने कहा जब भारतीय मिसाइलों और ड्रोनों ने पाकिस्तान में उन ठिकानों पर हमला किया, तो न केवल आतंकवादी संगठनों की इमारतें हिल गईं, बल्कि उनके हौसले भी डगमगा गए। ये शब्द मात्र सैन्य कार्रवाई का विवरण नहीं थे, बल्कि उन माताओं की लोरी का उत्तर थे, जिन्होंने अपने बेटों को तिरंगे में लपेट कर देश को सौंपा था। प्रधानमंत्री ने बहावलपुर और मुरीदके जैसे अड्डों को वैश्विक आतंकवाद के विश्वविद्यालय बताया और याद दिलाया कि विश्व के तमाम क्रूर आतंकी हमलों की जड़ें कहीं न कहीं इन्हीं स्थलों से जुड़ी रहीं हैं। यह वक्तव्य केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि भारत की बदलती रणनीति का उद्घोष था।
बताते चलेंआज सुबह ही जब डीजीएमओ और एयर ऑपरेशन्स के अधिकारियों ने मीडिया के समक्ष ऑपरेशन की विस्तृत जानकारी दी, तो यह स्पष्ट हो गया कि भारत की लड़ाई किसी राष्ट्र से नहीं, अपितु मानवता के शत्रु आतंकवाद और उसके संरक्षकों से है। प्रधानमंत्री ने अंत में एक ऐसा वाक्य कहा, जो आने वाले युगों के लिए पत्थर पर उकेरी गई इबारत बन जाएगा पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते हैं। शांति का मार्ग भी शक्ति से होकर जाता है। यह संबोधन मात्र एक भाषण नहीं था यह भारत के आत्मविश्वास की घोषणा थी, और एक ऐसे युग की शुरुआत जिसमें भारत न तो अन्याय सहेगा, न चुप रहेगा।
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