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गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

लखीमपुर की माटी ने फिर रचा इतिहास, यथार्थ दीक्षित बने प्रेरणा की प्रतिमूर्ति

●  विभिन्न समाज सेवियों ने किया यथार्थ को सम्मानित कर ऊर्जित

लखीमपुर। आज की लखीमपुर खीरी की धूप कुछ विशेष थी, उसमें एक बेटे की सफलता की चमक थी, एक परिवार की तपस्या की आभा थी, और एक पूरे जनपद का गर्व समाया था। चयन के पश्चात लखीमपुर आगमन पर शहर के समाज सेवियों सुधीर अग्रवाल, विमल अग्रवाल, राजू अग्रवाल, प्रमोद अग्रवाल, कवि हृदयी समाज सेवी साहित्यकार राममोहन गुप्त "अमर" ने UPSC परीक्षा में 411वीं रैंक हासिल कर राष्ट्रीय पहचान बनाने वाले यथार्थ दीक्षित को मां संकटा देवी मन्दिर की स्नेहशील छाया में विशेष सम्मान से विभूषित किया, और साथ ही उस उजाले को शब्दों में समेटा, जो यथार्थ की आंखों में वर्षों से जलता रहा।

कहते हैं, "जहां चाह होती है, वहां राह बनती है।" कीरत नगर की संकरी गलियों से निकलकर यथार्थ दीक्षित ने इसी कहावत को जीवन का पथ बना लिया। एक साधारण परिवार में जन्मा यह युवक असाधारण सपनों की गठरी लिए निकला, और अपने नाम 'यथार्थ' को कर्म से सार्थक कर दिखाया। डॉन बास्को कॉलेज से इंटरमीडिएट की नींव रखी, प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू कॉलेज से बीटेक की डिग्री लेकर भारत पेट्रोलियम जैसी प्रतिष्ठित संस्था में कदम रखा। किंतु जब आत्मा में देश सेवा की पुकार गूंजे, तो नौकरी की चादर भी बंधन बन जाती है। 2023 में उन्होंने सबकुछ छोड़ वह राह पकड़ी, जहां कांटे अधिक और आराम कम थे, सिविल सेवा की कठिनतम राह। जीवन ने एक और मोड़ लिया जब नवंबर में उनका विवाह हुआ, सपनों को एक नई साझेदारी मिली, और संघर्ष को एक साथी। उसी ऊर्जा के संग उन्होंने UPSC की रणभूमि में प्रवेश किया और विजय पताका फहरा दी। पिता सहकारी बैंक के सेवानिवृत्त प्रबंधक, भाई निजी क्षेत्र में कार्यरत पर यथार्थ ने ठान लिया था कि वह एक नई पहचान बनाएंगे, जहां खुद से बड़ा सपना होगा और देश से बड़ा समर्पण। आज जब उनका नाम भारत की सर्वोच्च सेवाओं की सूची में दर्ज हुआ है, तब केवल एक परिवार नहीं, एक शहर, एक पीढ़ी और न जाने कितने स्वप्नदृष्टा युवाओं की आंखें चमक रही हैं। यह केवल एक रैंक नहीं, यह आस्था की जीत है, यह मेहनत का महाकाव्य है। 

राममोहन गुप्त "अमर" ने गर्वित स्वर में कहा, "यथार्थ जैसे युवाओं में हम देश का भविष्य देखते हैं "साहस, संस्कार और संकल्प" की त्रिवेणी।" वास्तव में, यथार्थ दीक्षित अब केवल एक नाम नहीं, एक प्रेरणा बन चुके हैं. उनके कदमों के निशान अब उस राह के संकेत हैं, जो संघर्ष से शुरू होकर सफलता तक जाती है।

संकटा देवी मंदिर पहुंचने पर यथार्थ ने सर्व प्रथम परिवार सहित माता रानी के पूजन  दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। तदोपरांत यथार्थ दीक्षित, उनकी मां संतोष दीक्षित, पिता विनीत दीक्षित एवं पत्नी डॉ वर्तिका दीक्षित का पुष्पहार, बुके एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान किया किया गया। साहित्यकार राम मोहन गुप्त 'अमर' ने इस अवसर पर "यथार्थ जीवन की चाह" शीर्षक युक्त काव्य मय सम्मान पत्र, मोतियों की माला एवं अपने काव्य संग्रह "स्वप्न हुए साकार" की प्रति प्रदान कर यथार्थ दीक्षित का अभिनंदन किया।

इस अवसर पर सुधीर अग्रवाल, राम मोहन गुप्त, राजू अग्रवाल, प्रमोद अग्रवाल,  विमल अग्रवाल, अनिल अग्रवाल, विजय सहित यथार्थ के सहपाठी रहे आयुष, प्रतीक, सनी, काजल, कोमल, पूजा, रचित आदि सहित दीक्षित परिवार के विभिन्न सदस्य और भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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