Breaking

मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

“लेखनी की लौ से जलता परोपकार - सनातन चेतना की पुनर्स्थापना” : अनूप सिंह

चित्रांश अनूप सिंह की कलम से…✍️

*जब अन्तर्मन की ध्वनि अंतःकरण से टकराकर सत्य, शील और सद्भाव का स्वर गूंजने लगे, तब ही सच्चे साहित्य, संस्कृति और सनातन मूल्यों का नवजागरण संभव होता है। यही चेतना जब विद्या दायिनी माँ शारदा की कृपा से और श्री चित्रगुप्त भगवान के आशीर्वाद से भी संवलित होती है, तब कलम न केवल शब्दों की स्याही बनती है, बल्कि राष्ट्रप्रेम, परोपकार और सभ्य समाज निर्माण की मशाल भी।

*कायस्थ की लेखनी: ध्वजवाहक धर्म और धर्मिता की कहते हैं, “कायस्थ की कलम, धर्म की कसौटी है।”* जब यह कलम दवात में डूबी हुई हो और वह दवात माँ भारती की माटी से बनी हो, और कलम के अग्रभाग पर उस स्वयं भगवान श्री चित्रगुप्त विराजमान हो तब लेखनी का हर शब्द धर्म, नीति और संस्कृति का ध्वज बनकर फहराता है। यह कलम काग़ज़ पर नहीं, जनमानस की चेतना पर लिखती है, जिसमें केवल अक्षर नहीं, आदर्श अंकित होते हैं।

*धर्म नहीं, जीवन की दशा-दिशा है सनातन*
सनातन कोई संप्रदाय नहीं, अपितु जीवन जीने की वह प्रणाली है जिसमें प्रकृति, परंपरा और परोपकार एकात्म हो जाते हैं। इसका उद्देश्य केवल ईश्वर की उपासना नहीं, अपितु आत्मा के गुणों का अभ्युदय है—विनम्रता, क्षमाशीलता, संयम, और सर्वहित भावना। जब हर हृदय सनातन मूल्यों से ओतप्रोत हो, तभी ‘राष्ट्र’ शब्द ‘धर्मराज्य’ बनता है।

*स्वदेश प्रेम की परिभाषा: भाषा से भावना तक* देशभक्ति कोई नारा नहीं, वह तो वह लौ है जो हर परिस्थिति में राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखती है। वह माँ की लोरी से लेकर पिता के श्रम तक, किसान की मिट्टी से लेकर शिक्षक की चॉक तक, और सैनिक की गोली से लेकर लेखक की कलम तक, हर स्थान पर उपस्थित रहती है। यदि यह भावना हमारी भाषा में, हमारे साहित्य में और हमारे व्यवहार में जीवंत हो जाए—तब हर गली, हर द्वार, हर जन की वाणी ‘वंदे मातरम्’ बन जाएगी।

*साहस, पुरुषार्थ और परिश्रम: जीवन के त्रिकाल सत्य* राष्ट्र के नवनिर्माण के लिए नारे नहीं, निष्कलंक कर्म चाहिए। साहस वह नहीं जो युद्ध में तलवार उठाए, वह है जो सत्य के पथ पर अडिग रहे। पुरुषार्थ वह नहीं जो दूसरों को पछाड़े, वह है जो स्वयं को सुधार ले। परिश्रम वह नहीं जो स्वार्थ में लिप्त हो, वह है जो परमार्थ के लिए हर श्वास अर्पित कर दे।

*सनातन का भविष्य: भारत का गुरुत्व*
जब प्रत्येक व्यक्ति अपने आत्मसम्मान के साथ आचरण करे, जब विनम्रता सादगी का श्रृंगार बने, जब क्षमा शक्ति का परिचायक बने, तब भारत न केवल भूगोल में श्रेष्ठ होगा, बल्कि विचारों में भी विश्वगुरु कहलाएगा। भारत की यह शक्ति उसका GDP नहीं, उसका SPV है – संस्कार, परंपरा और विवेक।

*प्रेरणा:*
यह सब किसी शासनादेश या बाहरी प्रेरणा से नहीं, केवल एक ही शक्ति से संभव है—हरि कृपा व सच्चे संकल्प की लेखनी। यदि हर मन में राष्ट्र के लिए एक दीप जल जाए, तो भारत कोई भूखंड नहीं, अपितु विचारों का प्रकाशपुंज बन जाएगा।

इसलिए हे लेखनी के साधकों, हे विचार के पुजारियों…!

अब वक्त है पुनः कलम उठाने का,
शब्द नहीं, संस्कार लिखने का।
नारे नहीं, चरित्र गढ़ने का,
और एक बार फिर से भारत को
“सत्य की स्याही” में रंग देने का।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Comments