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गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

चाइनीज़ मांझा : पतंग की नहीं, मौत की डोर !

🔘 संरक्षक दैनिक जन जागरण: अनूप सिंह की कलम से...✍️


"जिंदगी बचाने का कानून बनाओ—चाइनीज़ मांझा को अपराध घोषित करो।"
"हर डोर में मौत छिपी है—अब और आलस्य नहीं, सरकार करे सख्त प्रतिबंध!"

पतंग उड़ाना अब खेल नहीं रहा…
यह एक जानलेवा चुप्पी का प्रतीक बन चुका है।
चाइनीज़ मांझा ने इस सांस्कृतिक परंपरा को हिंसा का रंग दे दिया है।

यह मांझा अब सिर्फ पतंग नहीं काटता,
यह जिंदगियां काटता है, गर्दनें चीरता है, नन्हे पंखों को हमेशा के लिए बंद कर देता है।

*जहाँ इंसान हारता है, वहाँ पक्षी मरते हैं*

हम अक्सर तब जागते हैं जब कोई इंसानी जान जाती है—लेकिन क्या आपने कभी आकाश में सन्नाटे को महसूस किया है?

वो रंग-बिरंगे पक्षी, जो कभी खुले आकाश में उड़ते थे, अब गायब होते जा रहे हैं।

चाइनीज़ मांझा हवा में उड़ते पक्षियों की गर्दन काट देता है।

पंख में फंसकर उनकी उड़ान छिन जाती है।

घायल पक्षी तड़प-तड़पकर मरते हैं—अक्सर बिना किसी को बताए।

एक खेल, जो हवा में होना चाहिए था,
अब खून और मौत की गंध फैला रहा है।

*पशु-पक्षियों के शरीर पर घाव और सड़न*

० कटी हुई डोरें पेड़ों पर, बिजली के तारों में और गलियों में उलझी रहती हैं।
० आवारा पशु इनके बीच फंस जाते हैं—गले, पैरों में गहरे जख्म हो जाते हैं।
० समय पर इलाज न मिले तो घाव सड़ जाते हैं, और धीरे-धीरे मौत हो जाती है।
० एक मांझा—जो दिखता नहीं, लेकिन काटता है, मारता है, और मिटा देता है।

अभिभावकों से अपील: खेल के नाम पर खून ना बहाएं

अगर आपके बच्चे पतंग उड़ा रहे हैं, तो ध्यान दें— क्या उनके हाथ में चाइनीज़ मांझा तो नहीं? एक धारदार मांझा किसी अनजान राहगीर की, किसी मासूम पक्षी की या किसी निरीह जानवर की जान ले सकता है।
आपका बच्चा पतंग काटने में गर्व महसूस करता है,
पर शायद वह यह नहीं जानता कि उसने किसकी गर्दन काट दी है।

सरकार की चुप्पी—संवेदनहीनता की मिसाल

जिस तरह सरकार अवैध शराब के खिलाफ कानूनी ढांचा बना चुकी है, वैसे ही चाइनीज़ मांझा के खिलाफ अब तक क्यों कोई ठोस, सख्त और प्रभावी कानून नहीं बना?

बैन कर देना काफी नहीं है।
चेतावनी देकर मुक्ति पा लेना अपराध है।
जब तक निर्माण, बिक्री और उपयोग को अपराध नहीं माना जाएगा, यह खूनी डोर यूं ही गले काटती रहेगी।

सख्त संदेश—अब बहुत हुआ

० चाइनीज़ मांझा: निर्माता, विक्रेता और उपयोगकर्ता—तीनों को गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में लाया जाए।
० कड़ी सजा हो।
० ज़मानत न मिले।
० हर ज़िले में निगरानी तंत्र बने।
० अभिभावकों को जागरूक किया जाए।
० स्कूलों, बाजारों और दुकानों में पोस्टर लगाए जाएं।
० हर शहर, हर मोहल्ले में ‘मांझा फ्री ज़ोन’ घोषित हो।

प्रकृति की चीख—क्या हम सुन पा रहे हैं?

हर उस चुप मौत की आवाज़, जो पक्षियों की चीख में दब गई,
हर उस घाव की टीस, जो किसी गऊ के गले में सड़ रही है,
हर उस मां की चीत्कार, जिसने अपने बच्चे को मांझे से कटते देखा…

क्या हम उसे सुन पा रहे हैं?

अगर नहीं,
तो अगली मौत से पहले सुनना और जागना जरूरी है।

अब फैसला आपका है...
० क्या हम पतंग के शौक में जानें गंवाते रहेंगे? या 
० अब चुप्पी तोड़कर सरकार से सख्त कानून की मांग करेंगे?

🔘 एक चेतावनी, एक अपील, एक प्रतिज्ञा

अब यह खूनी मांझा रोका जाएगा।
और यदि नहीं रोका गया, तो अगली मौत की जिम्मेदारी समाज और सरकार दोनों की होगा।
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