“भोलेनाथ की तरह बनो, दिखावा नहीं, ध्येय रखो।”
“समय-संवाद” आलेख: अनूप सिंह…✍️
कैलाश पर रहते हैं।
पर खुद को कभी “हाईप्रोफाइल” नहीं कहते।
न महलों की दीवारें।
न एयरकंडीशनर की हवा।
बर्फ की चादर ओढ़े हैं।
पर सदा शांत हैं।
उनके पास मेरुगिरि का धनुष है।
उस पर नागराज वासुकि की डोरी।
कभी इन्स्टा स्टोरी नहीं बनाते।
ना ही #powerful लिखते हैं।
फिर भी सर्वशक्तिमान हैं।
श्रीहरि विष्णु तक साथ देते हैं।
अग्निवाण बन जाते हैं।
और ये लोग...
बस दो “followers” क्या बढ़ गए,
भगवान बनने चल पड़ते हैं!
भोलेनाथ – नाम ही काफी है।
कामदेव को भस्म कर दिया।
और खुद?
भस्म को श्रृंगार बना लिया।
फेस क्रीम नहीं, फेस अर्थ है उनके पास।
सब देव उन्हें पूजते हैं।
हम?
बिना कारण दूसरों से पूजा करवाना चाहते हैं।
भोले बाबा ने कभी नहीं कहा,
“मेरी फोटो वायरल करो।”
फिर भी हर दिल में बसे हैं।
वो वृक्षों के सुगंध से प्रसन्न होते हैं।
हम खुशबू वाले स्प्रे ढूंढते हैं।
उनके पास कल्पवृक्ष हैं।
हमारे पास “शॉपिंग एप्स”।
वो संसार के कारण हैं।
फिर भी “भोले” हैं।
हम संसार में हैं,
फिर भी “ज्ञानी” बनने का ढोंग करते हैं।
भोलेनाथ की तरह बनो।
सादा रहो।
प्रभावशाली बनो, दिखावटी नहीं।
उनके जैसा संतुलन लाओ –
संहारक भी, पर करुणामयी भी।
ताकत भी, तपस्या भी।
ध्यान भी, दया भी।
जो खुद को सबसे बड़ा समझता है,
वो कभी भगवान नहीं बन सकता।
जो सबसे छोटा बन जाए,
वो ही शिव बन सकता है।
तो आइए,
भोलेनाथ के चरणों में झुकें।
लेकिन केवल हाथ जोड़कर नहीं,
बल्कि अपने अहंकार को वहीं छोड़कर लौटें।
जय भोलेनाथ।
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