“प्रेरणादायक आलेख — शिक्षा और समाज की सोच पर आधारित” अनूप सिंह की कलम ✍️ से..
“पढ़ाई करो वरना बड़े बाबू का बेटा बन जाओगे!”
कभी एक जमाना था जब माता-पिता बच्चों को कहते थे —
“पढ़ाई करो, नहीं तो चौकीदार बन जाओगे!”
अब कहते हैं —
“पढ़ाई करो, नहीं तो बड़े बाबू का बेटा बन जाओगे!”
क्योंकि आज के युग में डिग्रियाँ नहीं, तुलना चाहिए।
और अगर आप के पास डिग्री भी है और नौकरी भी — लेकिन बड़े बाबू का बेटा अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है — तो आप अभी भी असफल हैं।
शिक्षा का उद्देश्य क्या था?
ज्ञान अर्जित करना?
जीवन को समझना?
समाज को दिशा देना?
बिलकुल नहीं!
आजकल शिक्षा का उद्देश्य है —
“रिज़ल्ट में बड़े बाबू के बेटे को पछाड़ना!”
एक बार मोहल्ले की आंटी ने अपने बेटे से कहा
“बेटा, पड़ोस वाली राधिका तो डॉक्टर बन गई, तू क्या करेगा?”
बेटे ने तपाक से जवाब दिया —
“माँ, मैं मरीज बन जाऊँगा — पेशा वही, खर्चा कम!”
आजकल तो बच्चा स्कूल जाता है, लेकिन पढ़ाई कम किताबें और फीस का वजन ज़्यादा उठाता है।
शिक्षक पढ़ाते नहीं, व्हाट्सएप ग्रुप पर नोट्स डालते हैं।
बच्चा होमवर्क करता नहीं, ChatGPT से करवाता है ….!
और माता-पिता पूछते हैं —
“तेरे मार्क्स कम क्यों आए?”
बच्चा जवाब देता है —
"बड़े बाबू के बेटे ने कापी पे जवाब लिखा था, मैंने दिल पे लिखा !”
असल बात ये है कि शिक्षा को हमने एक प्रतियोगिता बना दिया है।
ज्ञान की दौड़ नहीं, अंकों की लड़ाई।
बच्चा पूछना चाहता है —
“मुझे ये सब क्यों पढ़ना है?”
पर जवाब में मिलता है —
“क्योंकि ये सिलेबस में है!”
कभी किसी ने सिखाया कि ईमानदारी क्या होती है?
संवेदनशीलता कैसे आती है?
समाज के लिए सोच कैसे विकसित होती है?
इंसानियत क्या होती है?
असफलताओं से शिक्षा लेके कैसे आगे बढ़ें?
शायद नहीं…
अब ज़रा ध्यान दीजिए:
रामायण के राम ने शिक्षा से संयम सीखा।
महाभारत के अर्जुन ने शिक्षा से लक्ष्य साधा।
चाणक्य ने शिक्षा से राष्ट्र को नीति दी।
और हमने?
इस प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा से
सपनों को पूरा करने के लिए
बैंक की EMI ली!
तो चलिए — अब भी समय है।
शिक्षा को मार्कशीट से बाहर निकालिए।
ज्ञान को अंकों से मत तौलिए।
और सबसे ज़रूरी —
बड़े बाबू के बेटे को जीवन से निकालिए।
क्योंकि…
“असली पढ़ाई वो है जो इंसान को इंसान बनाए, मशीन नहीं।”
अगर आलेख अच्छा लगे शेयर और कॉमेंट करें, इन बातों से तक़लीफ पहुँची हो तो हमें खरी खोटी सुना लें लेकिन टेंशन मत लें क्योंकि
टेंशन देने को है..लेने का नहीं, फिर मिलेंगे तब तक के लिए नमस्कार
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