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बुधवार, 2 अप्रैल 2025

प्रयागराज में मां ललिता देवी के पैर छूकर बहती हैं 3 नदियां,

प्रयागराज हस्तागुंली दुई गिरा प्रयागा तरन सुता तट सुन्दर जागा, जेहि भू गिरा अंश अनूपा महाशक्ति भई ललिता रूपा'. प्रयागराज के मीरापुर में मां ललिता की हस्तांगुलिका गिरने के कारण महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का प्रार्दुभाव हुआ.  प्राप्त हो जाता है. मां को शिव प्रिया, त्रिपुर सुन्दरी, राज राजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है. 51 शक्तिपीठों में से मां ललिता देवी का मंदिर प्रयागराज के मीरापुर में स्थित है. यमुना के किनारे बने इस प्राचीन मंदिर में ललिता देवी के 3 स्वरूपों के दर्शन होते हैं. नवरात्र के पांचवें दिन मां के ललिता देवी स्वरूप की पूजा होती है. श्रद्धालु ललिता पंचमी का व्रत रखते हैं. देवी पुराण के अनुसार, सती का हस्तांगुल यानी हाथ की उंगली प्रयागराज के इसी मंदिर में गिरी थी और मां ललिता देवी प्रकट हुईं थीं. ऐसी मान्यता है कि गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां के चरणों को स्पर्श कर बहती हैं. नवरात्र में यहां रोज शतचंडी महायज्ञ होता है, जिसका विशेष महत्व है.प्रयागराज में मां ललिता देवी मंदिर के मुख्य पुजारी शिवमूरत मिश्रा ने बताया कि इस मंदिर का विशेष महात्‍म्‍य है. मान्‍यता है कि पवित्र संगम में स्नान के पश्चात इस महाशक्तिपीठ में दर्शन-पूजन से भक्‍तों की मनोकामना पूरी होती हैं. यही कारण है कि देश–दुनिया से आने वाले सनातनी मां के दर्शन–पूजन को आते हैं. विशेष रूप से दक्षिण भारतीय यहां बहुत आतें हैं. नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की संख्या 3 लाख से पार हो जाती है. देवी पुराण में मां ललिता भवानी का वर्णन मिलता है. प्रयाग में यमुना तट पर सती के हाथ की उंगली गिरने से भगवती ललिता का प्राकट्य हुआ था. ऐसी मान्यता है कि मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता के चरण छूकर बहती हैं. इसलिए मां को प्रयाग की महारानी भी कहा जाता है. शिवमूरत मिश्रा के अनुसार मां ललिता देवी की श्रीयंत्रों से पूजा की जाती है. श्रीयंत्र को यंत्रराज भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि मां ललिता देवी की उपासना और उन्हें खुश करने के लिए महर्षि दत्तात्रेय ने श्रीयंत्र का आविष्कार किया था. शास्त्रों में भी श्रीयंत्र को भगवान शिव और शिवा का रूप माना गया है. इसलिए आज भी माता की पूजा श्रीयंत्र में की जाती है. इसे श्रीचक्र भी कहा जाता है. इसी को ध्यान में रखकर मां ललिता देवी मंदिर के प्राचीन स्वरूप का 2015 से जीर्णोद्धार कार्य शुरू हुआ. अब देवी का दिव्य और भव्य मंदिर श्रीयंत्र के आकार की तरह बनकर तैयार है. इसके निर्माण में पांच करोड़ रुपए का खर्च आया है. मां ललिता देवी मंदिर में संकट मोचन हनुमान मंदिर है और ललितेश्वर महादेव का मंदिर भी है. राम, लक्ष्मण, सीता और नवग्रह की मूर्तियां भी स्थापित हैं. मां के मंदिर की ऊंचाई 108 फीट है. मां ललिता देवी के तीन रूप हैं. पहला सात की बालिका के रूप में त्रिपुर सुंदरी दूसरा 16 साल की आयु में षोडसी और तीसरा मां का युवा स्वरूप मां ललिता त्रिपुर सुंदरी रूप मंदिर में विद्यमान हैं. नवरात्र के पांचवें दिन ललिता पंचमी का व्रत रखा जाता है. इसका विशेष महत्व है. मत्सय पुराण में 108 शक्ति पीठों का वर्णन है, जिसमें मां ललिता देवी मंदिर का जिक्र आता है. मां ललिता को त्रिपुर सुंदरी, षोडशी, कामाक्षी, और राजराजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है. ये दस महाविद्याओं में से एक हैं. देवी ललिता को चंडी का स्थान प्राप्त है. मां ललिता को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है. देवी ललिता को चंडी का स्थान मिला है. इसलिए, इनकी पूजा चंडी पूजा की तरह करनी चाहिए. ललिता जयंती के दिन व्रत रखना चाहिए. त्रिपुर उपनिषद के मुताबिक, मां ललिता ब्रह्मांड की परम शक्ति हैं. मां ललिता को ब्रह्मा, विष्णु, और शिव से ऊपर शासन करने वाली सर्वोच्च चेतना माना गया है. ललिता सहस्रनाम में मां ललिता और राक्षस भंडासुर के बीच हुए युद्ध का वर्णन है. यह युद्ध बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.
श्री ललिता कल्याण समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष अजीत श्रीवास्तव ने बताया कि प्रयागराज में ललिता देवी शक्तिपीठ में नवरात्र के हर दिन देवी का अलग-अलग तरह से फूलों और मेवे से श्रृंगार किया जाता है. मां ललिता देवी की दिन में दो बार मंगला और संध्या आरती होती है. प्रसाद में मां का पसंदीदा भोग खीर,चना और पंचमेवा चढ़ाया जाता है. श्री ललिता कल्याण समिति ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष हरि मोहन वर्मा ने बताया कि प्रयागराज में मुख्य रूप से देवी के तीन स्वरूपों भगवती दुर्गा महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की पूजा होती है. ललिता देवी के एक बार दर्शन से नौ दिन के व्रत के बराबर फल मिलता है. मंदिर में प्रवेश करते ही किसी दिव्य शक्ति की अनुभूति होती है. मंदिर में संकटमोचन हनुमान, श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता व नवग्रह की मूर्तियां हैं. राधा-कृष्ण की मूर्तियां भी यहां पर हैं जिनका दर्शन अलौकिक सुख देता है. हरिमोहन वर्मा के अनुसार देवी सती के 51 शक्तिपीठ की मान्यता है. हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां पर सती के अंग के हिस्से, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए थे. यहां सती की तीन अंगुलियां कटकर गिरी थीं. इसीलिए यहां मां के तीन स्वरूपों की पूजा होती है. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. प्रयागराज में तीन मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है, जिसमें ललितादेवी मंदिर, कल्याणीदेवी और अलोपीदेवी धाम हैं. हरिमोहन वर्मा के अनुसार ललितादेवी मंदिर का निर्माण श्रीयंत्र पर आधारित है. नवरात्र के अलावा माघ और कुंभ मेला के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. यह भी मान्यता है कि मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता के चरण स्पर्श करते बहती हैं जिसके कारण संगम में स्नान के बाद इन शक्तिपीठों के दर्शन का महात्म्य है.मीरापुर मोहल्ले की रहने वाली सुशीला रावत का कहना है कि वह पिछले 30 सालों से मां ललिता देवी के दरबार में माथा टेकने आती हैं .कभी अगर ऐसा हुआ कि वह दो-चार दिन नहीं आ पाती हैं तो मां ललिता देवी उन्हें सपने में आती हैं. अपने दरबार में बुलाती है. उनका कहना है कि हमने आज तक जो कुछ भी मन से मांगा वह मां हमें दिया है. बिना मांगे भी बहुत सारी मुरादें हमारी पूरी की हैं. यहां श्रद्धा भाव से जो कोई श्रद्धालु आता है मां उसकी सारी मुरादें पूरी करती हैं. पेशे से अध्यापक वीरेश कुमार मिश्रा का कहना है कि मैं भी महादेवी के श्री चरणों में ही रहता हूं .उनकी कृपा हम सभी पर बरसती है और हम पिछले कई वर्षों से यहां लगातार दर्शन पूजन के लिए आते हैं. मां सभी का कल्याण करती हैं.मां ललिता देवी मंदिर प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ले में यमुना किनारे स्थित है. मंदिर की प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन से दूरी मात्र 3 किलोमीटर है. जंक्शन उतरने के बाद आप आराम से किसी भी साधन से यहां आ सकते हैं. प्रयागराज एयरपोर्ट से यह दूरी करीब 12 किलोमीटर है. प्रयाग जंक्शन रेलवे स्टेशन से दूरी करीब 10 किलोमीटर है. यहां से भी आपको साधन मिल जाएगा. बाकी प्रयागराज के अन्य रेलवे स्टेशनों से भी मां ललिता देवी की दूरी पांच से 10 किलोमीटर के अंदर ही हैं. सिविल लाइंस बस स्टॉप से मंदिर महज 6 किलोमीटर दूर है.

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