मोहम्मदी कस्वे में सामूहिक विवाह का आयोजन कर की थी बहन की शादी,
अब घोटालों से व्यथित है गोविन्द
वर्ष 1997 में अपनी इकलौती बहन की शादी कर सामूहिक विवाह का आयोजन करके मोहम्मदी कस्वे का नाम करने बाले समाजसेवी कवि गोविन्द गुप्ता आज उन परिस्थितयो को याद कर कहते है कि कन्यादान को महादान कहा जाता है लोग आतुर रहते है कन्या विवाह में सहयोग हेतु
मात्र 23 वर्ष की आयु में जब बहन की शादी की चिंता हुई तो एक और संकल्प था कि बड़े स्थानों पर होने बाले विवाह समारोह को मोहम्मदी कस्वे में आयोजित करने का,
यह संकल्प जब पूरा होने का अवसर आया जब इसे अनुमति दी गई और प्रदेश भर के पदाधिकारियों को सहयोग का निर्देश दिया गया बाथम वैश्य नवयुवक सभा महिला सभा व बाथम वैश्य सभा के संयुक्त तत्वावधान में इस आयोजन हेतु 17 फरवरी 1997 की तिथि तय हुई
कुछ बड़े लोग विरोध में थे कि इतना बड़ा आयोजन यह लोग कैसे करेंगे
पर हमारा सभी ने सहयोग किया और अपनी बहन की शादी भी इसी कार्यक्रम में करके एक मानदंड स्थापित किया,
29 विवाह हुये और मोहम्मदी में कुल 500 से अधिक बेटियों के विवाह इन कार्यक्रमो में हुये जिनमे लोग उपहार आदि देकर खुद को धन्य समझते थे,
पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सामूहिक विवाह के आयोजन की घोषणा के बाद लगा यह आयोजन अब न करके सरकारी लाभ इन्हें दिलाया जाये शुरुवात के प्रथम आयोजन में यह किया भी पर धीरे धीरे कन्याओं के विवाह जैसे आयोजन में घोटालों की खबरों ने विचलित कर दिया कि कैसे लोग इतनी हिम्मत कर लेते है कि कन्यादान महादान का दान हड़प कर पुण्य की जगह पाप के भागीदार बनना चाहते है,
फिलहाल आज पैसा ही महत्व रखता है,
आशा है यह आयोजन निस्वार्थ रूप से आयोजित हो,
कुछ मांग सरकार से है कि इन कार्यक्रमो की तिथि कम से कम 6 माह पूर्व घोषित हो जिससे सही जोड़ो के विवाह हो सकें लोग समय से विवाह तय कर सकें,और उन्हें जानकारी भी रहे ,
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