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बुधवार, 22 जनवरी 2025

महाकुम्भनगर : रुद्राक्ष वाले बाबा सिर पर सवा लाख रुद्राक्ष, 45 किलो वजन

महाकुम्भ नगर प्रयागराज उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ महाकुंभ सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि ये एक ऐसा मंच है जहां आस्था, परंपरा और आधुनिकता का अनोखा मिलाजुला रूप देखने को मिलता है। यहां लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के साथ जुटते हैं। हालांकि, इस बार महाकुंभ का माहौल उन बाबाओं के कारण और भी दिलचस्प हो गया है जो अपनी जीवनशैली और व्यक्तित्व से सभी का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। 144 साल बाद संगम के तट पर लगे महाकुंभ में नागा साधु, हठयोगी, खड़ेश्वरी बाबा, रुद्राक्षधारी बाबा और भी तमाम तरह के साधुओं का यहां डेरा है। इनमें से कई दशकों से अलग-अलग साधना और हठयोग में लीन हैं। ऐसे ही एक बाबा कई वर्षों से अपने सिर पर 45 किलो रुद्राक्ष धारण किये हुए हैं। बिंदास बोल ने रुद्राक्ष वाले बाबा से एक्सक्लूसिव बात की और उनके जीवन की हर पहलू को जानने की कोशिश की। उनका बचपन हो, चाहे उनकी तपस्या।सिर पर ढाई लाख छोटे-बड़े और दुनिया के हर किस्म के रुद्राक्ष धारण करने वाले गीतानंद का जन्म 1987 में पंजाब के कोट का पुरवा गांव में हुआ था। इस जन्म के पीछे भी एक कहानी है। असल में गीतानंद के माता-पिता को शादी के करीब 5 साल तक कोई संतान नहीं हुई। आसपास इलाज करवाया, लेकिन फायदा नहीं हुआ। उस वक्त गांव में श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के संन्यासी आया करते थे। गीतानंद का परिवार भी गुरुओं की कथा सुनने जाता था। परिवार ने एक बाबा को अपना गुरु बना लिया, उनसे दीक्षा ली। एक साल बाद गीतानंद के माता-पिता को पहली संतान हुई। इसके बाद दूसरी संतान के रूप में गीतानंद का जन्म हुआ। गीतानंद के जन्म के 2 साल बाद एक और बच्चे का जन्म हुआ।
गुरु ने आशीर्वाद देते हुए माता-पिता से कहा था कि एक संतान तुम्हें हमें देनी होगी। अपने वचन को याद रखते हुए माता-पिता ने ढाई साल के गीतानंद को अपने गुरु को दे दिया। गुरु को देते वक्त उन्हें पीड़ा थी, लेकिन इस बात का संतोष भी था कि उनके पास दो और संतानें हैं।गीतानंद बताते हैं कि गुरुजी घर से हमें लेकर चले आए। मुझे किसी चीज की कोई जानकारी नहीं थी। संस्कृत स्कूल से पढ़ाई शुरू हुई। सबको पूजा-पाठ करते देखता, तो उसी में मन लगता। 12-13 साल का हुआ तो हरिद्वार में मेरा संन्यास कार्यक्रम हुआ और मैं संन्यासी बन गया। हालांकि उसके बाद भी पढ़ाई जारी रही। 10वीं तक की पढ़ाई के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया।गीतानंद श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के नागा संन्यासी हैं, लेकिन वह नागा 12 साल की उम्र में नहीं बने। उस वक्त वह संन्यासी बने। जब 18 साल की उम्र पूरी हुई, तब नागा बनने से जुड़ा धार्मिक कार्यक्रम करना पड़ा। जब कोई संत नागा बनता है तब उसे सबसे पहले अपने परिवार के लोगों का श्राद्ध करना होता है, फिर अपना श्राद्ध। इसके बाद तपस्या शुरू होती है। इसके बाद एक गुरु विशेष अंग की नस खींच देते हैं। यहीं से संत नागा संन्यासी हो जाते हैं।गीतानंद अपने सिर पर रुद्राक्ष धारण करके चलते हैं। हमने पूछा कि यह कितने हैं और इनका वजन कितना होगा? वह इसके पीछे की कहानी बताते हैं।
महाराज जी कहते हैं कि सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने का संकल्प था। हमारे जो भक्त हैं वह देते गए। अब ये सवा दो लाख रुद्राक्ष हो गए हैं। इनका वजन 45 किलो हो गया है। हर दिन 12 घंटे इसे सिर पर रखते हैं। सुबह 5 बजे स्नान करने के बाद इस मुकुट को पूरे विधि-विधान से सिर पर रख लिया जाता है। शाम को 5 बजे मंत्रोच्चारण के साथ इसे नीचे रखा जाता है।गीतानंद ने इस हठयोग तपस्या को प्रयागराज में 2019 के अर्धकुंभ में शुरू किया था। 12 साल की तपस्या है, जिसके 6 साल पूरे हो गए हैं। अगले 6 साल तक वह ऐसे ही सिर पर 45 किलो रुद्राक्ष रखे रहेंगे।
जब उनसे पूछा गया कि ऐसा हठयोग करने की उन्होंने क्यों ठानी? तो उन्होंने बताया कि मैं भगवान को प्रसन्न करने के लिए और अपने सनातन धर्म की रक्षा के लिए ये हठयोग कर रहा हूं। हम ऐसा करके भगवान शंकर को मना रहे हैं। इसके लिए हमलोग कठिन से कठिन तपस्या करते हैं। ये हठयोगी ढाई साल की उम्र से साधु हैं।हमने पूछा कि क्या इसके बाद भी कोई तपस्या करने की सोच रखी है? वह कहते हैं कि यह मेरी आखिरी तपस्या है। सब प्रभु की कृपा से होता है। इसके बाद गीतानंद गिरि अपनी पुरानी तपस्याओं के बारे में बताते हैं। हमने उनसे मौजूदा कुंभ को लेकर बात की। वह कहते हैं कि इस साल व्यवस्थाओं में बहुत बदलाव दिख रहा है। इस बार जो टेंट लगे हैं, उनकी क्वालिटी बढ़िया है। पहले के कुंभ में इस तरह की व्यवस्था नहीं होती थी। महाकुंभ में व्यवस्था अद्भुत है। सरकार हर बात का ख्याल रख रही है। जहां तक तपस्या का सवाल है तपस्या जारी रहेगी।

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