🔘अपनी लगन व मेहनत के बूते माधवी ने बनाई विशिष्ट पहचान
यदि दिव्यांग व्यक्ति भी अपने मन में कुछ करने की ठान लेता है, तो वह भी जीवन में उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करके समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सकता है।
इस वाक्य को चरितार्थ करते हुए लखीमपुर की माधवी वाजपेई ने दिव्यांगता को मात देते हुए समाज के सामने प्रेरणादाई मिसाल पेश की है।
लखीमपुर के राजीव वाजपेई, अंशू वाजपेई दंपत्ति के घर 2002 में जन्मी माधवी की दिव्यांगता को लेकर शुरू में तो परिजन बेहद परेशान हो गए और तमाम चिकित्सकों से परामर्श के बाद इसे ईश्वरी आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करते हुए बिटिया माधवी के रूप में दुनिया के सामने प्रेरणादाई उदाहरण बनाने की ठानी। कहते हैं दुनिया की पहली गुरु मां होती है और यह दायित्व बखूबी निभाते हुए माधवी की मां अंशू वाजपेई ने उसे तराशना शुरू कर दिया। दुनिया को समझने/समझाने से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए तराशते हुए माता अंशू ने बिटिया माधवी को पेंटिंग, नृत्य, कुकिंग, सिलाई, चित्रकारी आदि क्षेत्रों में विशिष्ट बना दिया। कहते हैं मेहनत व लगन से क्या कुछ नहीं हो सकता। दिव्यांग माधवी वाजपेई ने माता के संबल और कुछ कर गुजरने की प्रतिबद्धता के साथ अपनी लगन व मेहनत के बल पर इन क्षेत्रों में न सिर्फ शीर्ष स्थान संजोया बल्कि क्षेत्रीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान हासिल कर समाज के सामने प्रेरणादाई मिसाल पेश की।