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शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

पूर्वांचल के मशहूर चोचकपुर स्थित मौनी बाबा धाम का मेला शुरू

करंडा क्षेत्र के चोचकपुर में गंगा नदी के किनारे स्थित मौनी बाबा धाम एक तपोभूमि व सिद्ध स्थल है। इसी तपोभूमि पर मौनी बाबा ने जागृत अवस्था में समाधि ली थी। बाद में चमत्कारिक रूप से वो पुनः जीवित अवस्था में देखे गए थे और फिर कार्तिक पूर्णिमा को उन्होंने दोबारा समाधि ली। इसी चमत्कार के चलते ये धाम बेहद जागृत धाम माना जाता है और यहां गाजीपुर ही नहीं बल्कि कई जिलों व प्रदेशों से श्रद्धालु जुटते हैं। पूर्वांचल में मौनी बाबा मेला ददरी मेले के बाद सबसे मशहूर मेला था। ये करीब एक सप्ताह तक चलता था, जिसमें गाजीपुर सहित दूर दराज के जनपदों से दुकानदार, सर्कस, नौटंकी, जादूगर, झूला आदि लेकर लोग आते थे। मथुरा तथा दरभंगा के कलाकार भी नौटंकी करते थे। लकड़ी की दुकानें एक पखवारे तक लगी रहती थी। जिला पंचायत द्वारा बिजली, पानी, सुरक्षा व्यवस्था सहित दर्जनों सरकारी विभाग भी जमे रहते थे। मौनी बाबा धाम के महंथ सत्यानन्द यति महाराज ने बताया जिला पंचायत अध्यक्ष द्वारा तीन वर्ष से दुकानदारों तथा अन्य लोगों को निःशुल्क जमीन उपलब्ध कराने सहित बिजली, पानी, सुरक्षा व अन्य सुविधाओं के उपलब्ध कराने से दुकानें प्रति वर्ष बढ़ रही हैं। साथ ही मंदिर का जीर्णोद्धार कराने का कार्य मंदिर समिति व दानदाताओं के माध्यम से चल रहा है। इस धाम के बारे में एक रोचक कथा भी जनसमुदाय में प्रचलित है। जिसके अनुसार, मौनी बाबा जखनियां क्षेत्र के कनुवान गांव के गोसाई परिवार में पैदा हुए थे। धार्मिक प्रवृति वाले मौनी बाबा कनुवान से नित्य गंगा स्नान करने के लिए चोचकपुर घाट पर आते थे। कहा जाता है कि गंगा पार चंदौली के मेढ़वा गांव की रहने वाली एक ग्वालिन नित्य गंगा पार करके दूध बेचने के लिए आती थी। एक दिन देर होने के कारण कोई नाव नहीं मिली तो वो परेशान होकर बाबा के चरणों में गिर पड़ी। जिसके बाद बाबा ने कहा कि मेरे पीछे चलती आओ और ऐसा कहकर मौनी बाबा गंगा नदी के जल पर चलने लगे और उनका अनुसरण करके ग्वालिन भी उनके पीछे पानी पर ही चलने लगी। गंगा पार करने के बाद बाबा ने कहा कि इस बात की चर्चा किसी से न करना, वरना तुम पत्थर बन जाओगी। जब देररात में ग्वालिन घर आई तो परिजन संदेह करके उसे मारने पीटने लगे। जिसके अगले दिन महिला अपने परिजनों को लेकर बाबा के पास आयी और पूरी बात को अपने परिजनों को बता दिया और कहा जाता है कि इस चमत्कार को बताते ही वो पत्थर की बन गई। कहा जाता है कि मंदिर के पास ही उक्त ग्वालिन की समाधि बनायी गयी है, जिसे अहिरिनियां माई के नाम से भी लोग पूजते हैं।

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