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शुक्रवार, 7 जून 2024

हमें शहीदों का सम्मान करते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा-न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र

प्रयागराज। जिंदा है हम, तब यह जज्बात पैदा होगा। तभी शहीदों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी यह बातें न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेश ने पहली आजादी इलाहाबाद 7 जून से 16 जून 1857 की याद में जरा याद करो कुर्बानी पहली आजादी महोत्सव शुक्रवार को क्षेत्रीय अभिलेखाकार (संस्कृति विभाग) एवं भारत भाग्य विधाता के तत्वावधान में खुशरूबाग बरगद के पेड़ के नीचे आजादी के अभिलेख प्रदर्शनी और संगोष्ठी कार्यक्रम में कहीं। न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा जिंदा है हम, तब यह जज्बात पैदा होगा। जब हम दैनिक सामान्य दिनचर्या से ऊपर उठकर हमेशा देश के लिए सोचे ,गरीबों के लिए सोचें, राष्ट्र के बारे में सोचे ,देश की संपदा कैसे सुरक्षित रहे और विकास हो। इंटरनेट की दुनिया से बाहर निकल कर देश के बच्चों को किताबी दुनिया की ओर बढ़ना होगा। तभी बलिदान का कर्तव्य और देश सेवा व्यर्थ नहीं जाएगा। शायरी के माध्यम से कहा शहीदों को याद कर हम वास्तव में जिंदा है नहीं तो मुर्दे होते। हमें शहीदों के भावनाओं का सम्मान करते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा। कमिश्नर विजय विश्वास पंत ने कहा कि सर्वप्रथम मैं माटी को प्रणाम करता हूँ। अपने पुरखों को नमन करता हूँ। भारत भाग्य विधाता टीम ने वैदिक, मध्य और आधुनिक इतिहास को बेहतर पिरोया है। पौराणिक पहचान को पुनःजीवित कराया हैं। मैं इस मुहिम के साथ हूँ।पूर्वजों को याद कर शहीद परिवारों का मान बढ़ाया है। देश की आजादी में कुर्बानी देने वालों को शहीदवाल में प्रदर्शित कर भारतीय शहीदों को सम्मान बढ़ाने का कार्य किया। शहीदवाल संस्थापक, कार्यक्रम संयोजक वीरेंद्र पाठक ने कहा इलाहाबाद में पहली आजादी की क्रांति में हिंदू और मुस्लिम ने मिलकर की।हमारे पूर्वज  आजादी की लड़ाई में कूदे । उन्होंने कहा पूर्वजों ने पेंशन/भत्ते के लिए आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी। देश को आजाद कराने में कुर्बानी दी। 1857 हमारे पुरखों और अंग्रेजों की लड़ाई थी।गुलामी से मुक्ति और आजादी के लिए हमारे पुरखों ने कुर्बानी दी थी। उस समय अंग्रेजों के शहीद होने पर सम्मान के साथ दफनाया जाता था।मगर भारतीयों का कोई अता पता नहीं होता था।अंग्रेजों ने बाँटो और राज करो की नीति यहीं से शुरू कर भारत में शासन कर रहे थे। इसी के विरुद्ध पूर्वजों ने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। यह जनता ने विद्रोह कर इलाहाबाद  की आजादी पायी थी। दस दिनों तक प्रयागराज आजाद था। यह खुशरूबाग आजादी का मुख्यालय था।भारतीयों ने अपने अधिकारी नियुक्त किया और बकायदा सरकार चलाई थी। कर्नल नील ने प्रयागराज में नरसंहार किया और 17 जून को पूरा इलाहाबाद नेस्तनाबूद कर दिया सारे घरों को आग लगा दी गई, क्रांतिकारियों को मार दिया गया।कोई नहीं बचा था। जीए आशुतोष सण्ड ने पहले आजादी महोत्सव पर कहा कि यह हमारे पुरखों की गौरव गाथा है। 90 साल आजादी के पहले इलाहाबाद आजाद हो गया था।यह क्रांतिकारी का मुख्यालय था। उन्होंने कहा कि खुशरूबाग के बाहर द्वार पर एक बोर्ड हो,जिसमें क्रांतिकारियों के मुख्यालय का भी जिक्र हो। कार्यक्रम का संचालन प्रमोद शुक्ला ने किया।धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण मोहन चौधरी प्रभारी खुशरूबाग ने दिया। इस मौके पर श्रद्धांजलि देने वालों से प्रमुख रूप से शैलेंद्र अवस्थी,अनिल गुप्ता,अनिल पांडे, दिनेश तिवारी, शशिकांत मिश्रा, विनोद, नीरज अग्रवाल, राजकुमार, शैलेंद्र द्विवेदी, अमन श्रीवास्तव, आरव भारद्वाज, मोहम्मद आमिर, मोहम्मद लाइक, कृष्णकांत पाठक, देवेंद्र सिंह, दिव्यांशु मेहता, सुनील मिश्रा, भोला तिवारी, कृष्णजी शुक्ला, सी एल सिंह, याकूब, राकेश मेहरोत्रा, अनिल त्रिपाठी, सुशील तिवारी,राजीव वर्मा,शरद पाण्डेय आदि हजारों लोग उपस्थित रहें।इससे पहले प्रारंभ में चौक नीम के पेड़ के नीचे पुष्पांजलि अर्पित की गई,फिर पुलिस बैंड के साथ खुशरुबाग में प्रभात फेरी निकाली गई।

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