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शुक्रवार, 28 जून 2024

काव्य कलिका : काश! का आकाश - "लौटा दे कोई फिर से".....

🔘 "लौटा दे कोई फिर से"

काश!
लौट आते फिर 
गुजरे दिन पुराने वो
बिताए
थे कभी हमनें 
पल-छिन सुहाने जो 

बिंदास
बातें, रातें-दिन
जिंदगानी वो मस्ती की
चिंता
न खैर-ख्वाह,
चाहत दौलत न हस्ती की

बेहिचक 
घूमना-फिरना,
लड़ना-झगड़ना, मनाना भी
काश!
लौटा देता कोई 
फिर से दिन-जमाना वो ही।

✍🏻रामG
राम मोहन गुप्त 'अमर'

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