🔘 "लौटा दे कोई फिर से"
काश!
लौट आते फिर
गुजरे दिन पुराने वो
बिताए
थे कभी हमनें
पल-छिन सुहाने जो
बिंदास
बातें, रातें-दिन
जिंदगानी वो मस्ती की
चिंता
न खैर-ख्वाह,
चाहत दौलत न हस्ती की
बेहिचक
घूमना-फिरना,
लड़ना-झगड़ना, मनाना भी
काश!
लौटा देता कोई
फिर से दिन-जमाना वो ही।
✍🏻रामG
राम मोहन गुप्त 'अमर'
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