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शुक्रवार, 28 जून 2024

काव्य कलिका : मन की बात - पं0 शिवकुमार शास्त्री

🔘 काव्य कलिका : मन की बात 

वह जीवन क्या, जिस जीवन का, अपना कोई आधार न हो।
कहने को केवल अपने हों, अपनों का जिसमें प्यार न हो।।
हो राग द्वेष छल छिद्र भरी शब्दावलियों की सेतु सरल।
वह मानव क्या, जिसका कोई,अपना स्नेहिल संसार हो।।
वो जीवन क्या जो जीवन भर, यूं फंसा रहे दो पाटों में।
जिसका चलना हो शूलों पर, जिसका सोना हो कांटों में।‌।
सत्कर्मों के फल में जिसको, केवल घाटे ही घाटे हों।
महफ़िल में झूठा हंसना हो,हो रुदन सरल सन्नाटों में।।
वो सांसें भी क्या सांसें हैं,जो चलें किसी की मर्जी से।
अपने पन में वो तन मन क्या, जो घायल हो खुदगर्जी से।।
जिस ओर न जाने का मन हो,पग उधर चलें तो वो पग क्या।
उस पल छिन का क्या करें सरल,जो मिलते हों तो अर्जी से।

🔘 रचयिता--पं शिवकुमार शास्त्री सरल ज्योतिषाचार्य पयागपुर बहराइच

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