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गुरुवार, 27 जून 2024

काव्य कलिका : "मैं बादल बन जाऊं"

                   ● "मैं बादल बन जाऊं"


कितना अच्छा हो मैं बादल बन जाऊं
धरा समग्र पर बरस उसकी प्यास बुझाऊं

इत उत बरस, हर जन मन हर्ष लुभाऊं 
प्यासे नैनन पर उलझे बैनन पर खुशी लाऊं 

बाग बहारन पर, पर्वत पहाड़न पर जाऊं
सूखे दरियन पर अवरुद्ध झरनन पर बलि जाऊं 

समय पर आऊं अमृत जल बरसा सबै हंसाऊं 
कितना अच्छा हो... मैं बादल बन जाऊं

✍🏻रामG 
राम मोहन गुप्त 'अमर'

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