● काव्य कलिका :
कौन नहीं चाहता
फिर बचपन में लौट जाना
बगैर सोचें - समझे
हंसना, रोना और मुस्कुराना
कौन नहीं चाहता
बीते खुशगवार पल पाना
मेरा तेरा ताम झाम
छोड़ हमारे की खुशी पाना
कौन नहीं चाहता
बचपन के खेलों का जमाना
दादी नानी के प्रेरक
किस्सों-कहानियों का खजाना
कौन नहीं चाहता
सब कुछ मिल बांट कर खाना
चुलबुली शैतानियां कर
एक-दूजे को छेड़ना-चिढ़ाना
हां, हर मन चाहता
फिर से बचपन में लौट जाना
बेफिक्र हंसना-खेलना
सब कुछ भूला मन की करना
✍🏻 रामG
राम मोहन गुप्त 'अमर'
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश
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