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शनिवार, 25 मई 2024

रचना : "खुल कर कह दो न" - राम मोहन गुप्त


है चाहता कौन.!
खोना घर का चिराग
मां बाप के लिए
होती है सब कुछ ही औलाद।

खातिर उसकी ही
अपना जीवन खपा देते हैं
मां बाप बिना देखे
दिन रात, सुख चैन गंवा देते हैं।

माना कि होती हैं 
कुछ चाहतें उनकी अपनी भी
होते हैं कम ही कराते 
जो पूरी, संतान के बिन चाहे ही

पर हां, सच है चाहते
कि आस औलाद की हो पूरी
जी तोड़ करते कोशिश
भले ही सामने हो कई मजबूरी

वास्ते संतान की खुशी
सब कुछ लुटाने को रहते तैयार
गर चाहिए कुछ भी तो 
खुल कर कभी बोल भी दो यार

अनकहे भला कौन,कैसे!
इच्छाएं मन की जान पाता है
मां बाप से क्या छिपाना
जिनसे जन्म-जीवन का नाता है

कुछ ऐसा वैसा करने से
खुल कर कह देना ही अच्छा है
सुनेंगे-समझेंगे जरूर, कि 
उनके लिए सब कुछ ही बच्चा है

✍🏻रामG 
राम मोहन गुप्त 'अमर'

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(जो आज कल अनचाहा हो रहा है उसी के परिप्रेक्ष्य में चिंतन-मनन हित सृजित)

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