लखनऊ।बीते दो दशक के दौरान शिखर से नीचे गिरने वाली बहुजन समाज पार्टी अब केवल अपने कोर वोट बैंक तक सिमट चुकी है। सियासत के शुरुआती दौर में बसपा का आम लोगों से जुड़ाव बेहद अच्छा रहा है,लेकिन सत्ता में आने के बाद बसपा का आम लोगों से जुडा़व ध्वस्त हो गया।कार्यकर्ताओं से भी बसपा पदाधिकारियों का संवाद लगभग ठप हो गया, जिससे कार्यकर्ताओं में निराशा और वोटर अलग होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश में लगभग 22 फीसदी दलित और मुस्लिम 20 प्रतिशत वोटर हैं।दलित वोट बैंक में 55 फीसदी जाटव माने जाते हैं, जिसे बसपा अपना कोर वोट बैंक मानती है। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोट बैंक की बड़ी हिस्सेदारी सफलता दिला चुकी है। बीते कुछ चुनाव से लगातार बसपा का ग्राफ नीचे लुढ़कता रहा है। 2004 के चुनाव में बसपा को 24.67 फीसदी वोट मिले थे।बसपा ने 19 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा को लगभग 27.42 फीसदी वोट मिले थे।बसपा के 20 सांसदों ने जीत हासिल की थी।बसपा का ये सबसे अच्छा प्रदर्शन था। 2014 के चुनाव में बसपा को 19.77 फीसदी वोट ही मिले और कोई भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका। बरहाल इस झटके से उबरने के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ लड़ने का बसपा का फैसला मुफीद साबित हुआ। बसपा के सांसदों की संख्या शून्य से 10 हो गयी। अब हालिया चुनाव बसपा अकेले लड़ने जा रही है।
बुधवार, 13 मार्च 2024
बसपा सिमटी कैडर वोट तक,बाकी छिटके,पिछला प्रदर्शन दोहराना बसपा के लिए नहीं आसान

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