सोच रहा हूँ मैं
तुम पर कोई गजल लिखूं
पर लिखूं तो क्या लिखूं
कोई शायर तो नहीं मैं।
फिर भी सोचता हूँ मैं
हर अक्षर में पिया की प्यास लिखूं
हर शब्द में मिलन की आस लिखूं
कोई शायर तो नहीं मैं।
कई बार सोचता हूँ मैं
शेर-ओ-शायरी से अनजान
मक्ता मतला से रूबरू नहीं
कोई शायर तो नहीं मैं।
फिर भी सोचता हूँ
तेरे खूबसूरत मन के हों अन्तरे
गजल में तेरी तस्वीर पूरी उतरे
कोई शायर तो नहीं मैं।
सोच रहा हूँ मैं
तुम पर कोई गजल लिखूं
पर लिखूं तो क्या लिखूं
कोई शायर तो नहीं मैं।
© नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान
रामपुर देवरई, बख़्शी का तालाब, लखनऊ
21 फरवरी, 2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Post Comments