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शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

माघ में कल्पवास करने से प्राप्त होता है प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने साहस : जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती

प्रयागराज। माघमेला शंकराचार्य शिविर में अपने  परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज जब मंचासीन हुए तो सामने शंकर भगवान् स्वरुप स्वामीश्री के दर्शनार्थ भक्तों की भारी भीड़ पंडाल में उपस्थित थी। प्रयाग में माघ माहात्म्य पर अपने भक्तों के लिए श्रीमुख से कथा शुरू ही की थी की अचानक से युवा छात्र छात्राओं का करीब 100 सदस्यीय दल मंच के सामने आ खड़ा हुआ। स्थिति समझ कर महाराज जी ने उनकी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए स्वतंत्रता प्रदान की तो विभिन्न विषयों से जुड़े प्रश्नों की झड़ी लग गयी। 
महाराजश्री उनकी धर्म ,सनातन संस्कृति और गौ संसद से जुड़े प्रश्नों को सुन आश्चर्य चकित थे। आम तौर पर धैर्य धारण रखने वाले स्वामीश्री युवाओं के कौतूहल पर मुस्कुरा उठे और एक-एक कर उन सभी की जिज्ञासाओं का समाधान करते रहे। समाज शास्त्र की विद्द्यार्थी आराध्या ने जब पूछा कि विद्यार्थी जीवन के कौन से धर्म उसे दृढ़ संकल्पित करते हैं जिससे वो जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं? सीएमपी डिग्री कॉलेज के आदित्य राज ने अपने प्रश्न कर्म सिद्धान्त पर महाराजश्री के उत्तर पर हर्ष व्यक्त करते हुए बताया कि अपने धर्म का पालन करते हुए कैसे मनुष्य कर्म से मोक्ष तक की यात्रा सरलता से पूर्ण कर सकता है,' इसे जान कर अब वो अवसाद से जूझते अपनी उम्र के छात्र छात्राओं को मौत के मुंह में जाने से बचा सकता है। सुनील यादव और पवन ने महाराज श्री के प्रारब्ध और जीवन पर दिए ज्ञान को अपने आज के अनुभव की सत्यता से जोड़ कर इनकी आदि कालीन व्याख्या पर आश्चर्य व्यक्त किया। विद्यार्थियों के साथ पधारे उनके गुरुजन अनंत सिंह और जितेंद शर्मा भी जगतगुरु के ज्ञान मीमांसा की प्रत्यक्ष अनुभूति से चकित दिखे। शंकराचार्य स्वामीश्री के तेज और ज्ञान के प्रकाश से प्रभावित युवा पीढ़ी के मानक आज शिविर से  लौटते हुए संतुष्ट और संकल्पित दिखे जो निश्चित ही सनातन धर्म के प्रति उनके आदर्शों को पुष्पित पल्लवित करेगी।इस अवसर पर अपने विशेष संदेश में परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज ने कहा कि प्रयाग में माघ का महात्म्य बहुत ही विशिष्ट है। माघ मास में संगम तट पर कल्पवास करने वालों को जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने साहस भी माघ में कल्पवास करने से प्राप्त होता है। तीर्थराज की यह भूमि विपरीत परिस्थितियों में भी सहज और संतुलित रहने का सबक कल्पवासियों को सिखाती है। प्रकृति के साथ कैसे तालमेल बना कर चलना चाहिए इसका अद्भुत उदाहरण यहां देखा जा सकता है। बुजुर्ग से बुजुर्ग जन भी कल्पवास में युवाओं की भांति सक्रिय दिखाई देते हैं। यह सक्रियता वयोवृद्धों में भी नवीन उत्साह का संचार करती है और उन्हें धर्म कार्य में संलग्न होने के लिए प्रेरित करती रहती है। यही नहीं जो लोग सिर्फ भ्रमण करने के लिए ही इस परम पवित्र क्षेत्र में आते हैं उन्हें भी प्रकृति की सकारात्मकता की अनुभूति होती है। यह अनुभूति उन्हें भी सद् मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। माघ महीने में कल्पवास का विधान प्राचीन भारतीय संस्कृति का वह अध्याय है जिसे आक्रांताओं द्वारा किए गए अनेकानेक कुत्सित प्रयास भी समाप्त नहीं कर सके। जब तक धर्मप्राण जनमानस अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ धर्मकार्य के लिए समर्पित रहेगा तब तक इस अध्याय को विस्तार मिलता रहेगा। परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज मौनी अमावस्या के दिव्य स्नान के ही मेलाक्षेत्र से अपनी आगे की यात्रा को प्रस्थान करेंगे।

● ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य ने त्रिवेणी संगम में किया मौन स्नान

प्रयागराज ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज ने स्नान के बाद पुनः दोहराया रामा गौ माता को राष्ट्र माता बनाने का संकल्प 
-भारतीय धर्म-संस्कृति में कुछ विशिष्ट स्नान पर्व मनाए जाते हैं उनमें मौनी अमावस्या की तिथि पर संगम अथवा गंगा में स्नान करने का बहुत ही बड़ा महात्म्य है: जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती
प्रयागराज में माघ मास का सबसे पौराणिक एवं प्रतिष्ठित पर्व मौनी अमावस्या का स्नान शुक्रवार को हुआ। इस पर्व की महत्ता में आस्था व्यक्त करते हुए इस तिथि पर दुनिया भर से सनातन धर्मियों की ऐतिहासिक भीड़ संगम तट पर जुटी। मान्यता है कि 33 कोटि देवता स्वयं सगंम के जल में स्नान करने तीर्थराज प्रयाग की धरती पर उपस्थित होते हैं।
इसी क्रम में भगवान् शंकर स्वरुप परामाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज् अपने भक्तों और अनुयायियों के साथ त्रिवेणी संगम स्नान को पहुंचे। प्रातः 9 बजे महाराज जी का दिव्य-भव्य जुलूस साधु संतों, मंडलेश्वरों, महामंडलेश्वरों, भक्तों और अनुयायियों के साथ शंकराचार्य शिविर से संगम स्नान के लिए रवाना हुआ। हर तरफ आस्थावानों का हुजूम जगतगुरु की जय, गंगा मैया की जय, गौ माता की जय का उदघोष करता नज़र आ रहा था। पुल संख्या दो से होते हुए जुलूस जब संगम की ओर बढ़ा तो लाखों करोड़ों की भीड़ स्वयं भगवान् शंकर स्वरूप जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी को अपने बीच पाकर अभिभूत दिखी। उनके दर्शन पा कर धन्य महसूस करते लोग फूलों की वर्षा कर शंकराचार्य महाराज के लिए मार्ग देती, जय जयकार करती संग हो चली। जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज विशिष्ट वैदिक मंत्रों के उच्चारण के मध्य गंगा स्नान विधान पूर्ण करने तक मौन ही रहे। जगद्गुरुशंकराचार्य के साथ ही महामंडलेश्वर सहजानंदजी महाराज, स्वामी जगदीशानंद जी महाराज, ब्रह्मचारी श्री परमात्मानंद जी, ब्रह्मचारी स्वामी श्री मुकुंदानंद जी, स्वामी श्रीभगवान् जी, गुजरात के गौधर्मांसद किशोर शास्त्री, ब्रह्मविद्यानंद जी महाराज, संयोजक राम सजीवन शुक्ल, प्रभारी डॉ. शैलेंद्र योगीराज, विनोद शुक्ल, गौ सेवक राम मिलन तिवारी,तीर्थ पुरोहित पण्डित पशुपतिनाथ तिवारी,पण्डित दिवाकर शास्त्री सहित अनेकानेक अनुयायी, संत- पुरोहित, महात्मा और दर्शनार्थी भी पवित्र संगम में डुबकी लगाते हर हर गंगे की जय जयकार करते रहे । स्नान एवं अर्पण-पूजन के पश्चात परामाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज् ने संगम तट से ही समाज और राष्ट्र के समग्र कल्याण के लिए और रामा गौ माता को राष्ट्र माता के रूप में प्रतिष्ठित कराने के लिए माँ गंगा यमुना एवं गुप्त सरस्वती से प्रार्थना की। तत्पश्चात महाराजश्री का जुलूस पूरे दल बल के साथ पुल संख्या एक से होते हुए वापस शंकराचार्य शिविर को प्रस्थान कर गया।परामाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज ने अपने विशेष संदेश में कहा कि भारतीय धर्म-संस्कृति में कुछ विशिष्ट स्नान पर्व मनाए जाते हैं उनमें मौनी अमावस्या की तिथि पर संगम अथवा गंगा में स्नान करने का बहुत ही बड़ा महात्म्य कहा गया है। इस दिन मौन रहकर ईश्वर की आराधना करने से विशेष फल साधक को प्राप्त होता है। इस तिथि पर भगवान शिव और भगवान विष्णु का पूजन करना अत्यंत ही कल्याणकारी माना गया है। सूर्यदेव को अर्घ्य देने से भक्त के जीवन में तेज, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है। गंगा स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल मिलता है। मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखने से भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है साथ ही पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए भी यह विशेष महत्व वाला माना गया है। मौनी अमावस्या पर अगर पूरी तरह से मौन रहा जाए तो अद्भुत स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। जिन लोगों को भी मानसिक समस्या है या भय और वहम की समस्या है उनके लिए मौनी अमावस्या का स्नान महत्वपूर्ण माना गया है। अत: मौनी अमावस्या का स्नान पर्व रोग-शोक से मुक्ति प्रदान करने वाला है।

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