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गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

प्रयागराज / आराधना महोत्सव में व्यास रामानंददास बोले सनातन धर्म का अर्थ है प्राणि मात्र के प्रति करुणा दया

‘‘आराधना-महोत्सव’’
सनातन धर्म का अर्थ है प्राणि मात्र के प्रति करुणा दया और 
सबको स्वतंत्रतापूर्वक जीने का अधिकार- व्यास रामानंददास

प्रयागराज श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में अलोपीबाग स्थित भगवान आदिशंकराचार्य मंदिर में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद सरस्वती सभागार में आयोजित नौ-दिवसीय आराधना महोत्सव में बोलते हुये कथा व्यास जगद्गुरू रामानंदाचार्य श्री रामानंददास जी महाराज, श्रीरामकुंज अयोध्या ने अपने कथा में ‘सनातन’ के नाम, अर्थ और अस्तित्व के सम्बन्ध में विस्तार से व्याख्या करते हुये बताया कि ‘सनातन’ शब्द का अर्थ वास्तव में ‘अनादि’ और ‘अनन्त’ है। जैसे-भगवान अनादि और नित्य है वैसे ही सनातन धर्म अनादि और नित्य है। संसार के जितने भी धर्म हैं सनातन धर्म के पश्चात् मानव निर्मित है। सनातन धर्म का कभी अन्त और नाश नहीं होता। 
सनातन धर्म के धार्मिक स्वरूप की व्याख्या करते हुये पूज्य व्यास जी ने बताया कि महाभारत के श्रीकृष्ण सहस्त्र नाम में कृष्ण जी का नाम ही ‘सनातन’ है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तुनिरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभागभवेत्’ ही सनातन धर्म का डिमडिम घोष है। इसलिए सभी प्राणी सनातनी हैं। सनातन धर्म ही सबका मूल है। सनातन धर्म में युग के अनुसार परिभाषाएं बदलती रहती हैं। व्यास जी ने बताया कि जहाँ सतयुग में ‘सत्यम् वद्’ अर्थात सत्य बोलो वेदाज्ञा थी वहीं त्रेता युग में ‘सत्यम् ब्रूयात्’ अर्थात् सत्य बोलना चाहिए, मा ब्रूयात् सत्यं अप्रियम्। द्वापर युग में सत्य की परिभाषा ही बदल गयी। भगवान वेदव्यास ने कहा है कि गऊ व ब्राह्मण की हिंसा में अनित झूठ बोलकर उनकी रक्षा कर देनी चाहिए। कलियुग में तो सत्य और असत्य की सम्पूर्ण परिभाषाओं को ही बदल दिया गया है और कहने लगे कि एक असत्य को 10 बार बोल देने से वही असत्य सत्य हो जाता है। 
जगद्गुरु रामानंददास जी व्यास ने कहा अपने स्वरूप में सनातन धर्म राजनैतिक झंझावातों के प्रभाव से प्रभावित होने पर भी सुरक्षित रहा। यद् किंचित उसमें परिवर्तन आया है। इस प्रकार सनातन धर्म अनादि धर्म है, अनन्त भी है, परन्तु काल के प्रभाव से कुछ विचारों का विनिमय किया गया है किन्तु धर्म सुरक्षित रहा। 
श्रीमद्भागवत कथा के प्रारम्भ में पूज्य श्रीमद्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने ज्योतिष्पीठ शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद सरस्वती एवं शंकराचार्य विष्णुदेवानंद सरस्वती जी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण एवं आरती किया। पूज्य शंकराचार्य जी ने घोषित किया कि 22 दिसम्बर को श्रीमद्ज्योतिष्पीठोद्धारक जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी की जयंती एवं श्री राधा माधव पाटोत्सव पूजन कार्यक्रम 11 बजे से भगवान शंकराचार्य मंदिर में होगा। 26 दिसम्बर तक आराधना महोत्सव कार्यक्रम में प्रतिदिन निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार प्रातः 7 से 9 बजे तक प्यारे मोहन जी के द्वारा श्री रामायण नवान्ह पारायण, 2 बजे से सायं 5 बजे तक श्रीमद्भागवत कथा, इसके बाद पूज्य शंकराचार्य जी का प्रवचन/आशीर्वाद कार्यक्रम होता है। सायं 7 से 9 बजे तक रूद्राभिषेक एवं 8 से 11 बजे तक प्यारे मोहन जी की मण्डली द्वारा मनभावनी रास लीला का आयोजन होगा।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दंडी संन्यासी विनोदनंद जी सरस्वती, पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, जयपुर के सीताराम शर्मा, सिंगरौर पंजाब के प्रधान जी, वेदप्रकाश शर्मा, स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, ब्रह्मदत्तपुरी जी, आचार्य विपिन जी, आचार्य मनीष जी, आचार्य अभिषेक मिश्र जी, जितेन्द्र जी, रिषु मिश्रा, आचार्य भगवानदास, आचार्य रामनारायण, आचार्य ओमनारायण आदि सहित बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित रहे।

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