उस समय देवताओं ने कह दिया था कि सोते समय यदि आपको कोई मूर्ख बीच में ही जगा देगा, तो वह आपकी दृष्टि पड़ते ही उसी क्षण भस्म हो जाएगा।कालयवन के भस्म होते ही भगवान श्रीकृष्ण मुचुकुंद के समक्ष प्रकट हुए मुचुकुंद ने उनको प्रणाम किया। भगवान् ने उसे बद्रिकाश्रम जाने के लिए कहा। दोनों भाई वापस मथुरा लौट आए। इधर भगवान् श्रीकृष्ण मथुरापुरी में लौट आए। अब तक कालयवन की सेना ने उसे घेर रखा था।अब उन्होंने म्लेच्छों की सेना का संहार किया और उसका सारा धन छीनकर द्वारका को ले चले। जिस समय भगवान् श्रीकृष्ण के आज्ञानुसार मनुष्यों और बैलों पर वह धन ले जाया जाने लगा, उसी समय मगधराज जरासन्ध फिर (अठारहवीं बार) तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर आ धमका। शत्रु-सेना का प्रबल वेग देख कर भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम मनुष्यों की सी लीला करते हुए उसके सामने से बड़ी फुर्ती के साथ भाग निकले।उनके मन में तनिक भी भय न था। फिर भी मानो अत्यन्त भयभीत हो गए हों इस प्रकार का नाट्य करते हुए, वह सब का सब धन वहीं छोड़कर अनेक योजनों तक वे अपने कमलदल के समान सुकोमल चरणों से ही पैदल भागते चले गए। जीवन में शांति के महत्व पर भगवान की यह सबसे अद्भुत लीला थी। जिनका एक केश मात्र ही पूरी पृथ्वी का भार कम करने में सक्षम है वे श्रीकृष्ण नंगे पैर भागे। कृष्ण, कंस के अत्याचार झेल चुके मथुरावासियों के जीवन में अब पूर्ण शांति चाहते थे।
सोमवार, 2 अक्तूबर 2023
धार्मिक / भगवान कृष्ण को क्यों कहते हैं रणछोड़ read more

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