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शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

धार्मिक / देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल मां, दर्शन- पूजा से श्रद्धालुओं की होती है मुरादें पूरी

मिर्जापुर। उत्तर-प्रदेश के मिर्जापुर जिले की विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर के साथ अष्टभुजा, काली खोह मंदिर तो है ही इसके अलावा कई अन्य पौराणिक स्थान है। विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर के साथ अष्टभुजा, काली खोह मंदिर तो है ही इसके अलावा कई अन्य पौराणिक स्थान है। मां विंध्यवासिनी देवी की दर्शन-पूजा से श्रद्धालुओं की होती है हर मुरादें पूरी!उत्तर-प्रदेश की विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य पतित पावनी गंगा के किनारे पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल। सबसे खास बात यह है कि यहां कुछ किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन किए बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी मानी जाती है। नवरात्र में मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं। काशी विश्वनाथ धाम की तर्ज पर विंध्य कॉरिडोर के निर्माण से भक्तों की संख्या बढ़ गई है।ऐसे में उनके लिए विंध्याचल क्षेत्र धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर के साथ अष्टभुजा और काली खोह मंदिर के अलावा कई अन्य पौराणिक स्थान हैं। यूपी के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्याचल के आसपास ऐसी कई जगहें हैं जो आधुनिकता की ओर भी आकर्षिक करते है। विंध्याचल क्षेत्र से 10 किमी के अंदर मंदिरों, ऐतिहासिक तालाबों, कुंड, पहाड़ के साथ रोपवे भी है। 10 किमी से आगे बढ़ने पर कई जल प्रपात है। जहां विशेष अवसरों पर सैलानियों का तांता लगता है। 
मां विंध्यवासिनी माता दरबार से दो किलोमीटर दूर पर स्थित काली खोह पहाड़ी पर स्थित महाकाली मंदिर है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु त्रिकोण परिक्रमा करने के लिए पहुंचते हैं। मां काली ने रक्तबीज का वध किया। यहां खेचारी मुद्दा में भक्तों को दर्शन देती हैं।मां विंध्यवासिनी माता दरबार से करीब पांच किलोमीटर दूर अष्टभुजा पहाड़ी पर स्थित मां अष्टभुजा देवी भक्तों को दर्शन देती है। कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए देवकी की सातवीं संतान को जमीन पर पटका था, जो योगमाया के रुप में आकर अष्टभुजा पहाड़ पर बस गईं।
मां विंध्यवासिनी दरबार से 10 किलोमीटर दूर अष्टभुजा पहाड़ी इलाके में स्थित मोतिया तालाब सरोवर है। भक्त मां के दर्शन पूजन करने के उपरांत तालाब सरोवर में स्नान कर मुक्तेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन पूजन करते हैं। मान्यता है कि जिसे भी कुत्ता काटता है तो इस तालाब में स्नान करने से रोग मुक्त हो जाता है।मां विंध्यवासिनी मंदिर से करीब सात किलोमीटर दूर अष्टभुजा पहाड़ी पर स्थित सीता कुंड स्थल है। इस कुंड की महिमा है कि जल पीने से मात्र रोग मुक्त हो जाता है। इसका महत्व यह भी है कि मां सीता ने अपने पितरों का यहां पर तर्पण किया था। तब से लेकर आज तक मातृ नवमी तिथि पर इस स्थान पर महिलाएं अपने- अपने पितरों को जल से तर्पण करती है। विंध्याचल मंदिर से करीब छह किलोमीटर दूर अष्टभुजा पहाड़ी पर स्थित भैरव कुंड स्थान है। जहां मां काली, बाबा भैरव का निवास स्थान भी है। इस स्थान पर भी कुंड से हमेशा जल निकलता है। इस जल को लेने दूूर-दूर से लोग आते है। जल कई बीमारियों में उपयोगी है। इस स्थान पर तंत्र-मंत्र यंत्र सिद्धि प्राप्त करने का उत्तम स्थान माना गया है।
विंध्याचल मंदिर से करीब दो किलोमीटर दूर शिवपुर गांव में स्थित रामेश्वरम भगवान का विशाल शिवलिंग है। इस मंदिर में 12 महीना दर्शन पूजन करने के लिए स्थानीय श्रद्धालु पहुंचते हैं। शिवरात्रि एवं पूसी तेरस पर्व पर मेला लगता है। यहां की मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने गंगा की आराधना कर शिवलिंग की स्थापना की थी।विंध्याचल मंदिर से करीब ढाई किलोमीटर दूर राम गया घाट पर स्थित मां तारा देवी का मंदिर है। जो तंत्र मंत्र यंत्र सिद्धि प्राप्त करने का उत्तम स्थल है। गुप्त नवरात्र एवं महानिशा रात बड़ी संख्या में साधक अपनी-अपनी साधना करने के लिए आते हैं।अष्टभुजा और कालीखोह दो स्थानों पर रोपवे है। रोपवे पहाड़ों के बीच अष्टभुजा से काली खोह पहाड़ी के बीच चलता है। एक व्यक्ति का किराया 50 रुपये है। रोपवे का आनंद लेने के लिए काफी संख्या में लोग आते है।

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