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शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

क्या आप जानते हैं कि सप्तद्वीप कैसे बने? इन्हें किसने बनाया? read more

श्रीमद्भागवत पुराण के पंचम स्कंध में स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत का वर्णन आता है. वे परम भागवत भक्त थे। इनका  विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मतीसे से हुआ। उससे उनके दस पुत्र हुए। उनसे छोटी ऊर्जस्वती नामकी एक कन्या भी हुई ।पुत्रोंके नाम आग्नीध्र, इध्मजिह्व, यज्ञबाहु, महावीर, हिरण्यरेता, घृतपृष्ठ, सवन, मेधातिथि, वीतिहोत्र और कवि थे। ये सब नाम अग्निके भी हैं।इनमें कवि, महावीर और सवन-ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी हुए। इन्होंने बाल्यावस्थासे आत्मविद्याका अभ्यास करते हुए अन्तमें संन्यासाश्रम ही स्वीकार किया।महाराज प्रियव्रतकी दूसरी भार्या से उत्तम, तामस और रैवत-ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वन्तरों के अधिपति हुए।महाराज प्रियव्रत के विषय में निम्नलिखित लोकोक्ति प्रसिद्ध है: प्रियव्रतकृतं कर्म को नु कुर्याद्विनेश्वरम्।यो नेमिनिम्नैरकरोच्छायां घ्नन् सप्त वारिधीन् ॥भूसंस्थानं कृतं येन सरिगिरिवनादिभिः । सीमा च भूतनिर्वृत्यै द्वीपे द्वीपे विभागशः ॥
भौमं दिव्यं मानुषं च महित्वं कर्मयोगजम्।यश्चक्रे निरयौपम्यं पुरुषानुजनप्रियः ॥राजा प्रियव्रतने जो कर्म किये, उन्हें सर्वशक्तिमान् ईश्वरके सिवा और कौन कर सकता है? उन्होंने रात्रिके अन्धकारको मिटानेका प्रयत्न करते हुए अपने रथके पहियोंसे बनी हुई लीकोंसे ही सात समुद्र बना दिये। प्राणियों के सुभीते के लिये (जिससे उनमें परस्पर झगड़ा न हो) द्वीपोंके द्वारा पृथ्वी के विभाग किये और प्रत्येक द्वीपमें अलग-अलग नदी, पर्वत और वन आदिसे उसकी सीमा निश्चित कर दी । वे भगवद्भक्त नारदादिके प्रेमी भक्त थे। उन्होंने पाताल- लोकके, देवलोकके, मर्त्यलोकके तथा कर्म और योग की शक्ति से प्राप्त हुए ऐश्वर्यको भी नरकतुल्य समझा था' ।
एक बार इन्होंने जब यह देखा कि भगवान् सूर्य सुमेरु की परिक्रमा करते हुए लोकालोक पर्यन्त पृथ्वी के जितने भागको आलोकित करते हैं, उसमेंसे आधा ही प्रकाश में रहता है और आधे में अन्धकार छाया रहता है, तो उन्होंने इसे पसंद नहीं किया। तब उन्होंने य संकल्प लेकर कि 'मैं रातको भी दिन बना दूंगा; सूर्य के समान ही वेगवान् एक ज्योतिर्मय रथपर चढ़कर द्वितीय सूर्यकी ही भाँति उनके पीछे-पीछे पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ कर डालीं। भगवान्‌ की उपासना से इनका अलौकिक प्रभाव बहुत बढ़ गया था।उस समय इनके रथ के पहियों से जो लीकें बनीं, वे ही सात समुद्र हुए; उनसे पृथ्वीमें सात द्वीप हो गये।उनके नाम क्रमशः जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौंच, शाक और पुष्कर द्वीप हैं। इनमेंसे पहले-पहलेकी अपेक्षा आगे-आगेके द्वीपका परिमाण | दूना है और ये समुद्रके बाहरी भागमें पृथ्वीके चारों ओर फैले हुए हैं।सात समुद्र क्रमशः खारे जल, ईखके रस, मदिरा, घी, दूध, मट्ठे और मीठे जलसे भरे हुए हैं। ये सातों द्वीपोंकी खाइयोंके समान हैं और परिमाणमें अपने भीतरवाले द्वीपके बराबर हैं। इनमेंसे एक-एक क्रमशः अलग-अलग सातों द्वीपोंको बाहरसे घेरकर स्थित हैं। 

इनका क्रम इस प्रकार समझना चाहिये :

🌿 पहले जम्बूद्वीप हैं, उसके चारों ओर क्षार समुद्र है। 
🌿 वह प्लक्षद्वीप से घिरा हुआ हैं, उसके चारों ओर ईंखके रसका समुद्र है। 
🌿 उसे शाल्मलिद्वीप घेरे हुए हैं, उसके चारों ओर मदिराका समुद्र है। 
🌿 फिर कुशद्वीप है, वह घी के समुद्र से घिरा हुआ है। 
🌿 उसके बाहर क्रौंचद्वीप है, उसके चारों ओर दूधका समुद्र है। 
🌿 फिर शाकद्वीप है, उसे मट्टेका समुद्र घेरे हुए है। 🌿 उसके चारों ओर पुष्करद्वीप है, वह मीठे जलके समुद्रसे घिरा हुआ है।बर्हिष्मतीपति महाराज प्रियव्रतने अपने अनुगत पुत्र आग्नीध्र, इध्मजिह्न, यज्ञबाहु, हिरण्यरेता, घृतपृष्ठ, मेधातिथि और वीतिहोत्रमेंसे क्रमशः एक- एकको उक्त जम्बू आदि द्वीपोंमेंसे एक-एकका राजा बनाया। उन्होंने अपनी कन्या ऊर्जस्वती का विवाह शुक्राचार्यजी से किया; उसी से शुक्रकन्या देवयानी का जन्म हुआ।जिन्होंने भगवच्चरणारविन्दों की रजके प्रभाव से शरीर के भूख-प्यास, शोक-मोह और जरा-मृत्यु - इन छः गुणको अथवा मनके सहित छः इन्द्रियोंको जीत लिया है, उन भगवद्भक्तों का ऐसा पुरुषार्थ होना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है; क्योंकि वर्णबहिष्कृत चाण्डाल आदि नीच योनि का पुरुष भी भगवान् के नाम का केवल एक बार उच्चारण करने से तत्काल संसारबन्धन से मुक्त हो जाता है।

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