● हिन्दी भाषा की राष्ट्रीय व वैश्विक स्वीकार्यता की के प्रति समर्पित एक अनूठा अभियान
(आनन्द उपाध्याय)
भारत के गौरवपूर्ण साहित्य एवं गरिमामयी सांस्कृतिक चेतना को वैश्विक मंच पर वांछित प्रतिष्ठा दिलाने के साथ ही देश में हिन्दी भाषा की मौजूदा व्यवहारिक स्वीकार्यता व प्रचार प्रसार के दृष्टिगत "राष्ट्रभाषा" का संवैधानिक अधिकार मुहैया कराने के सार्थक उद्देश्य से 15 जुलाई 2020 को गठित "हिन्दी साहित्य भारती (अंतर्राष्ट्रीय)" का स्वरूप सीमित समयावधि में ही भारत के सभी राज्यों सहित समस्त केंद्र शासित प्रदेशों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 35 विभिन्न राष्ट्रों तक विस्तारित होना नितान्त सुखद और आशाजनक उपलब्धि के रूप में परिलक्षित है। 2021 में नई दिल्ली में तथा 2022 में उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में सफल अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन कर अनवरत हर माह और पखवाड़े में कभी प्रत्यक्ष तो कभी तरंग माध्यम (ऑनलाईन) से अपने सुनिश्चित विविध आयामों यथा-"राष्ट्र वन्दन एवं अतीत का अभिनन्दन" के अन्तर्गत ऐसे महान हिन्दी भाषा व अन्य भाषा के साहित्यकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व का स्मरण किए जाने का पुनीत कार्य किया जा रहा है। वहीं "राष्ट्र वंदन तथा वर्तमान का अभिनन्दन" के जरिए ऐसे मौजूदा साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व का विवेचन किया जाता रहा है जो सामाजिक चेतना तथा राष्ट्रीय बोध युक्त साहित्य सृजन कर रहे हैं।
"पत्र लेखन अभियान" के तहत भारत में हिन्दी भाषा को औपचारिक रूप से राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा दिलाने के पुरजोर आग्रह के निमित्त महामहिम राष्ट्रपति के नाम ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार से अनुरोध पत्र लेखन का गहन अभियान संचालित है। हर्ष का विषय है कि इस अभियान में बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता प्रदान करने वाले देश-विदेश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्राध्यापक, शिक्षाविद, चिकित्सक, प्रशासनिक अधिकारी, राजनेतागण, शिक्षार्थी, पत्रकार, कलाकार व आम नागरिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। "राष्ट्र वन्दन" और "कवि अभिनन्दन" जैसे नियमित आयोजन के माध्यम से देश के विशेषकर हिन्दी भाषा के कवियों को उनकी रचनाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु राष्ट्रीय ही नहीं वरन् अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान किया जा रहा है। समसामयिक विषयों पर प्रबुद्ध संगोष्ठी के नियमित आयोजन के दौरान खासकर गैर हिन्दी भाषी राज्यों और विदेशों में हिन्दी भाषा की सहज-सरल शैली में स्वीकार्यता तथा ग्राह्यता हेतु प्रोत्साहित करने का समर्पित सद्कार्य सतत् किया जा रहा है।
इद॔ न मम, इदं राष्ट्राय" तथा "माता भूमि: पुत्रोहम् पृथिव्या:" की उदात्त भावना को अंगीकृत कर हिन्दी भाषा में साहित्य रचना करने वाले देश विदेश के साहित्यकारों को प्रेरित करने के लिए पुरस्कार व समुचित प्रशिक्षण संवाद आयोजित कर हिन्दी भाषा के व्यापक प्रसार का बीड़ा उठाया गया है।
हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य तथा हिन्दी के साहित्यकारों के उन्नयन के लिए राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेमीनार, गोष्ठियां, परिसंवाद, कवि सम्मेलन इत्यादि का आयोजन करने का प्रयास कर हिन्दी की स्वीकार्यता हेतु उत्प्रेरक सदृश्य सद्कार्य जारी है। हिन्दी के शिक्षकों, शोधार्थियों, समालोचकों, अनुवादकों को हिन्दी साहित्य भारती के साथ जोड़कर देश विदेश के बौद्धिक परिदृश्य को सार्थक व सकारात्मक दिशा में उन्मुख करना भी इसका मूल उद्देश्य है। भारत को बौद्धिक आत्मनिर्भरता का भान कराना महति अपरिहार्य आवश्यकता है। भारतीय वांग्मय व भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का समुचित प्रसार जरूरी है। वैश्विक मंच भी स्वीकार करने लगा है कि विश्व शान्ति तथा सद्भाव भारतीय दर्शन के अनुकरण के माध्यम से ही व्यवहारिक रूप से संभव है। विभिन्न राज्यो में संचालित हिन्दी अथवा भारतीय भाषाओं के विकास के निमित्त संस्थानों एवं भारत सरकार के स्तर से चलाए जा रहे संस्थानों व संगठनों की भी सहभागिता प्राप्त कर सम्मिलित प्रयासों को भी फलीभूत करना लक्ष्य है। नवीन शिक्षा नीति की आड़ लेकर कतिपय दक्षिणी राज्यों में राज्य की भाषा के अतिरिक्त दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी शामिल कर हिन्दी भाषा को हटाने या हतोत्साहित करने के कथित राजनीतिक कुचक्र के विरूद्ध सक्रिय सद्प्रयास कर हिन्दी के संरक्षण सहित हिन्दी भाषा के शिक्षण से जुड़े शिक्षकों के रोजगार की संरक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। भारत की अनेक समाप्त होने के कगार, पर जा पहुंचीं भाषाओं व बोलियों को बचाने के लिए भी सरकार व संस्थाओं का प्रभावी हस्तक्षेप सुनिश्चित किए जाने हेतु गहन जतन तथा संवाद स्थापित करने का सतत् प्रयास हिन्दी साहित्य भारती के तहत जारी है। सीमित समयान्तराल पर सम्पूर्ण देश और लगभग तीन दर्जन देशों में हिन्दी साहित्य भारती ने अपना विस्तार कर अप्रत्याशित उपलब्धि हासिल की है।हर राज्य और विदेश के इंगित राष्ट्रों में संगठन का व्यापक संगठनात्मक ढांचा कार्यरत होकर आशातीत परिणाम प्रदर्शित करता परिलक्षित है। जहाँ मार्गदर्शक मंडल में आध्यात्मिक जगत के मूर्धन्यजन का सानिध्य प्राप्त है, वहीं अनेक सेवानिवृत्त राज्यपाल गणों, नामी-गिरामी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, देश के विद्वत प्रबुद्ध वर्ग व साहित्यकारों का शामिल होना भी ऐतिहासिक और उल्लेखनीय उपलब्धि है। देश विदेश के हिन्दी भाषा के लिए हृदय से समर्पित पुरोधाओं की सम्मिलित सक्रिय सहभागिता उत्प्रेरक का काम करती परिलक्षित हो रही है। संविधान में शामिल इंडिया जैसे मौजूदा परिप्रेक्ष्य में असामयिक और अव्यावहारिक हो चुके शब्द को स्थायी रूप से विलुप्त कर चिर प्राचीनकाल से संबोधित किए जाते रहे "भारत" शब्द को ही देश के औपचारिक नामोल्लेख हेतु सर्व स्वीकार्य किए जाने का संकल्प भी हिन्दी साहित्य भारती की मूल भावना में शामिल और समाहित है। आशा की जानी चाहिए कि ऐसे पावन संकल्प को भारत की संसद शीघ्रातिशीघ्र अपनी स्वीकृति हेतु सार्थक पहल करेगी। निश्चित तौर पर कोविड-19 जैसे विषम व भयावह काल में जब समूचा देश ही नहीं वरन् निखिल विश्व किंकर्तव्यविमूढ़ व हतप्रभ होकर ठप्प सा!पड़ता परिलक्षित था उसी संक्रमण काल में नैराश्य के अंधेरे को चीरकर डिजिटल पहल कर वीडियो कालिंग अथवा गूगल मीट्स को आधार बनाकर आपदा में सुअवसर की खोज कर देश विदेश के अनगिनत मनीषियों, प्रबुद्धजनों तथा समर्पित राष्ट्रवादियों व भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के चितेरों, हिन्दी भाषा और भारतीय दर्शन के संवाहकों से अनवरत वार्तालाप व संवाद स्थापित कर अन्ततः 15 जुलाई 2020 को ऐसी ऐतिहासिक पहल औपचारिक रूप से फलीभूत होकर एक पंजीकृत न्यास के अधीन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की पुण्य पावन वीरसू धरा वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की रणस्थली झांसी में अस्तित्व में आई। निश्चित तौर पर सुविख्यात साहित्यकार, कवि, लेखक, संपादक और शत्रुध्न जैसे अनछुए व्यक्तित्व पर अप्रतिम खंडकाव्य के रचयिता, पूर्व शिक्षा तथा कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्री, उत्तर प्रदेश शासन डाक्टर रवीन्द्र शुक्ल का भागीरथ प्रयास उनकी स्वप्निल परिकल्पना को साकार स्वरूप देता हुआ "हिन्दी साहित्य भारती" के रूप में अंकुरित होकर सम्प्रति हिन्दी भाषा की सेवा के देश विदेश में विस्तारित वट-वृक्ष के रूप में पुष्पित पल्लवित होता अभीष्ट के सुनहरे आयाम की ओर त्वरित गति से अग्रसर होता परिलक्षित है। बीते दिनों फिजी देश में आयोजित "विश्व हिन्दी सम्मेलन* के सुअवसर पर भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में हिन्दी साहित्य भारती को भी प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलना हिन्दी भाषा के प्रति समर्पित भाव रखकर कार्य करने की स्वीकारोक्ति का प्रमाण है। संस्था के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में हिन्दी की भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्वीकार्यता को बलवती बनाने हेतु मौलिक रचनात्मक और व्यवहारिक सुझावों से युक्त परिपत्र को प्रस्तुत करने का गौरवपूर्ण अवसर डाक्टर रवीन्द्र शुक्ल को प्राप्त होना भी हिन्दी साहित्य भारती की सार्थकता को परिभाषित करता दृष्टिगत है। अपनी वेवसाइट, एप और पृथक-पृथक सोद्देश्य हेतु निर्मित व्हाटसप समूहों के माध्यम से हिन्दी साहित्य भारती के संकल्प सूत्र "मानव बन जाए जग सारा, यह पावन संकल्प हमारा" की पूर्ति चरितार्थ होती अवलोकनीय है। मानवीय संवेदनाओं से परिपूरित सकारात्मक सोच के बुद्धिजीवियों की एकजुटता से निर्मित रचनात्मक शक्ति वैश्विक चिंतन को भी सकारात्मक बनाने का बूता रखती है। भारतीय सनातन चिंतन धारा ही एकमात्र इस कसौटी पर खरा उतरती है। हालिया जी-20 के नयी दिल्ली सम्मेलन ने भारतीय दर्शन से अनुप्राणित वसुधैव कुटुंबकम् की भावनात्मक सोच को प्रमाणित भी किया है। इसी मूल मंत्र का संवाहक बनकर हिन्दी साहित्य भारती भी रचनात्मक शंखनाद का बीड़ा उठाकर अभीष्ट की ओर उन्मुख है।
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