प्रयागराज। इन दिनों भगवान शिव का प्रिय मास सावन चल रहा है। बाबा भोले के इस प्रिय महीने में उनके भक्त उन्हें मनाने में लगे हैं। इस महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हर साल शिव के प्रिय सांपों के पूजन का त्योहार नाग पंचमी मनाया जाता है। नाग देवता की कृपा और कालसर्प दोष को समाप्त करने के लिए इस दिन नाग देवता की विशेष पूजा की जाती है। शिव की नगरी में एक ऐसा ही एक विशेष मंदिर स्थित है, जो जैतपुरा थाना क्षेत्र के जैतपुरा और रसूलपुरा बड़ीबाजार मार्ग पर स्थित है जिसे लोग नागकुआं मोहल्ला भी कहते हैं।यहां नाग पंचमी के दिन केवल दर्शन मात्र से कालसर्प दोष की समाप्ति हो जाती है। यह नागकुआ मोहल्ला हिंदू मुस्लिम का मिश्रित आबादी क्षेत्र है। और यहां पर हिंदू मुसलमान मिलकर नाग पंचमी का त्यौहार और मेला बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं। नाग पंचमी के एक दिन पहले ही यहां नाग कुआं में झूला चरखी के साथ पूरा मेला सज जाता है जो तीन दिनों तक रहता है।भगवान शिव की नगरी काशी जो शाश्वत धर्मनगरी है, वह अलग-अलग धार्मिक रहस्यों से भरी हुई है। बनारस के जैतपुरा थाना क्षेत्र में नागकुआँ नामक स्थान पर एक कुआं है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी अथाह गहराई पाताल और नागलोक तक जाती है व इस कुएं का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। इसे 'करकोटक नाग तीर्थ' के नाम से जाना जाता है। इस नाग कुंड को नाग लोक का दरवाजा बताया जाता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिव नगरी काशी में नाग कुंड के अंदर ही एक कुआं है, जहां एक प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है। इस शिवलिंग को 'नागेश' के नाम से जाना जाता है। यह शिवलिंग साल भर पानी में डूबा रहता है और नाग पंचमी के पहले कुंड का पानी निकाल कर शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो यहां पर आज भी नाग निवास करते हैं।
देश का सबसे प्रमुख कुंड है जैतपुरा का नाग कुंड जिसे नाग कुआं भी कहा जाता है.बनारस में स्थित इस नाग कुंड का विशेष स्थान है। जिस नगरी में स्वयं महादेव विराजमान हैं, वहां का नाग कुंड अनोखा फल देने वाला माना जाता है। कालसर्प योग से मुक्ति के लिए देश में तीन ऐसे कुंड हैं, जहां पर दर्शन करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है। तीनों कुंड में जैतपुरा का कुंड ही मुख्य नाग कुंड है। नाग पंचमी के पहले कुंड का जल निकाल कर सफाई की जाती है फिर शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसके बाद नाग कुंड को फिर से पानी से भरा जाता है। एक ओर जहां नाग कुंड के दर्शन मात्र से ही कालसर्प योग से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही साथ जीवन में आने वाली सारी बाधाएं खत्म हो जाती है।सर्प दंश के भय से मुक्ति दिलाने वाले व कुंडली से कालसर्प दोष को दूर करने वाले इस कुंड की स्थापना काशी के इस तीर्थ पर शेष अवतार नागवंश के महर्षि पतंजलि ने तीन हजार वर्ष पहले कराई थी और इसी स्थान पर महर्षि पतंजलि ने पतंजलि सूत्र तथा व्याकरणाचार्य पाणिनी ने महाभाष्य की रचना की थी।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव के गले का हार नाग वासुकी हैं। वहीं जगत के पालनहार भगवान विष्णु भी नाग की शय्या पर शयन करते हैं। इसके अलावा विष्णु की शय्या बनें शेषनाग पृथ्वी का भार भी संभालते हैं। मान्यता है कि नाग भले ही विष से भरे हों लेकिन वह लोक कल्याण का कार्य अनंत काल से करते आ रहे है। इन्हीं नाग देव को मनाने के लिए नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है, जिससे नाग का भय न हो और साथ ही हमारी कुंडली में अगर कालसर्प दोष हो तो वह उसे समाप्त करें।हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल नाग पंचमी सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है, जो इस बार 21 अगस्त, दिन सोमवार को मनाई जाएगी। इस बार नाग पंचमी पर्व 21 अगस्त की रात्रि 12:21 बजे शुरू होगी और 22 अगस्त, मंगलवार को रात्रि 02:00 बजे पर समाप्त होगी। हिंदू धर्म के अनुसार, यह त्योहार सूर्योदय की तिथि में मनाए जाते हैं तो इस आधार पर नाग पंचमी 21 अगस्त को मनाई जाएगी।
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