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गुरुवार, 27 जुलाई 2023

घर घर में दुलदुल को दूध जलेबी खिलाकर अक़ीदत का किया इज़हार

प्रयागराज। माहे मोहर्रम की सातवीं को 1836 मे क़ायम किया गया दुलदुल का गश्ती जुलूस पान दरीबा स्थित इमामबाड़ा सफदर अली बेग से भोर में निकाला गया जो पूरे दिन और रात भर विभिन्न इलाक़ों में गश्त करने के उपरान्त प्रातः छै बजे अपने क़दीमी इमामबाड़े पर पहुंच कर सम्पन्न हुआ।शाहगंज स्थित पानदरीबा से लगभग 187 साल से इमामबाड़ा सफदर अली बेग से निकाला जाने वाला दुलदुल का ऐतिहासिक जुलूस इस वर्ष भी अक़ीदत व ऐहतेराम के साथ निकला।शाहगंज ,पत्थर गली ,बरनतला , मिन्हाजपूर नखास कोहना,अहमदगंज ,क़ाज़ी गंज ,बख्शी बाज़ार , ताराबाबू की गली ,अकबरपुर, रौशनबाग़ , सियाहमुर्ग़ , बुड्ढा ताज़िया ,पुराना गुड़िया तालाब , दायरा शाह अजमल ,बैदन टोला ,कोलहन टोला , हसन मंज़िल , रानीमंडी ,धोबी गली ,यादगार हुसैनी गली,बच्चा जी धर्मशाला , डॉ काटजू रोड़ ,कोतवाली ,लोकनाथ चौराहा ,गुड़ मंडी , बहादुरगंज ,अग्रसेन चौराहा , इमाम वज़ीर हुसैन छोटी चक , घंटाघर ,सब्ज़ी मण्डी आदि क्षेत्रों में घर घर गश्त करने के उपरान्त दूसरे दिन भोर में छै बजे अपने क़दीमी इमामबाड़े सफदर अली बेग पर पहुंच कर सम्पन्न हुआ। दुलदुल जुलूस के आयोजक मिर्ज़ा बाबर बेग ,सुहैल ,शमशाद , जहांगीर ,सलीम ,मुन्ना ,माहे आलम ,छोटे बाबू ,मुर्तु़ज़ा अली बेग ,मुज्तबा अली बेग ,रिज़वान ,सादिक़ आदि चौबीस घंटों के दुलदुल के गश्ती जुलूस में सिलसिलेवार एक एक घरों में दुलदुल ले जाने क्रम में सहयोग करते रहे।
इमाम हुसैन के वफादार घोड़े ज़ुलजनाह को घरों में दूध जलेबी व भीगी चने की दाल खिलाकर किया अक़ीदत का  इज़हार सफेद चादर को खूनी रंग से छींटे देकर और गुलाब व चमेली के फूलों से सजा कर घर घर ज़ियारत कराने के साथ अक़ीदतमन्दों ने दुलदुल घोड़े को जहां दूध जलेबी खिलाई तो वहीं कुछ लोगों ने भीगी चने की दाल से भी दुलदुल का किया आदर और सत्कार।मन्नती दुलदुल पर सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परम्परा का निर्वहन करते हुए सुन्नी समुदाय की महिलाएं भी हाथों में कटोरा और बर्तन में दूध जलेबी भिगो कर गलियों में क़तार लगाए खड़ी रहीं और जैसे ही दुलदुल पास पहुंचा भीगी आंखों से बोसा लेकर इस्तेक़बाल किया और दूध जलेबी खिलाई।एक ऐसा नज़ारा भी देखने को मिला जो अपने पुरखों की परम्परा को निभाते हुए डॉ चड्ढा रोड लोकनाथ व गुड़ मंडी में हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले पुरुष व महिलाओं में देखने को मिला ।हिन्दू औरतें व मर्द नंगे पांव महिलाएं सर पर पल्लू डाल कर अपने छोटे छोटे बच्चों को दुलदुल से मस्स (मत्था लगाने) करने और बोसा लेने को बेताब रहीं ।कईयों ने अपने बच्चों को दुलदुल घोड़े के नीचे से निकाल कर मन्नत व मुरादें मांगीं।दो दर्जन अलम के साथ नौहा पढ़ते हुए डॉ मुस्तफा के इमामबाड़े में गया दुलदुल जुलूस
दादा परदादा के समय से चली आ रही परम्परा को निभाते हुए मुरादाबाद से खास सातवीं मोहर्रम के जुलूस में शरीक होने आए इंतेज़ार मेंहदी ने दो दर्जन से अधिक अलम के साए में बरसों पुराना नौहा *इस्लाम के दुश्मन पीते थे दरिया में छलकता था पानी वो चमका अलम वो निकले चचा डॉ मुस्तफा के हाथे से दो दर्जन से अधिक अलम लेकर इमामबाड़ा अली नक़ी जाफरी दायरा शाह अजमल पहुंचे नौजवान दुलदुल को साथ लेकर नौहा पढ़ते हुए निकले दायरा तिराहे पर कुछ देर रुकने के बाद मातमी जुलूस डॉ मुस्तफा तक गया।वहां पहले दुलदुल घोड़े को विश्राम देने के बाद दूसरा घोड़ा सजाया गया।जो रानीमंडी के साथ बाक़ी घरों में ले जाया गया।कोतवाली से बहादुरगंज तक मातमदारों ने किया ज़न्जीरों से मातम रानीमंडी से माहे मोहर्रम की सातवीं पर अन्जुमन हैदरिया , अन्जुमन मज़लूमिया , अन्जुमन अब्बासिया व अन्जुमन आबिदया ने नौहों और मातम की सदाओं के साथ जुलूस निकाला जो कोतवाली पहुंच कर ज़न्जीरी मातम करते हुए लोकनाथ चौराहा , बहादुरगंज बताशा मंडी से मुड़ कर इलाहाबाद डिग्री कालेज होते हुए इमामबाड़ा वज़ीर हैदर छोटी चक तक गया। अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सैय्यद मोहम्मद अस्करी के अनुसार सभी मातमी अन्जुमनों के सदस्यों ने कोतवाली के रास्ते जुलूस के खत्म होने तक तेज़ धार की छूरीयों से लैस ज़ंजीरों से पुश्तज़नी कर अपने आप को लहूलुहान कर लिया। अन्जुमन हैदरिया के नौहाख्वान हसन रिज़वी ,मज़लूमिया के नौहाख्वान राजन व अरशद , अब्बासिया के नौहाख्वान डॉ अबरार व फ़ैज़ जाफरी अन्जुमन आबिदया के नौहाख्वान मिर्ज़ा काज़िम अली आदि ने पुरदर्द नौहा पढ़ा।इसमें गौहर क़ाज़मी , डॉ ज़की ,शेरु भाई ,रज़ा अब्बास ज़ैदी ,भय्यू भाई ,नायाब बलियावी ,नजीब इलाहाबादी ,कौसर अस्करी ,वक़ार हुसैन , मसूद हुसैन ,सैय्यद मोहम्मद अस्करी ,हसन नक़वी ,आसिफ रिज़वी ,इशत आब्दी ,तक़ी आब्दी ,शजीह अब्बास,ज़ामिन हसन आदि शामिल रहे।

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