हिंदू धर्म की लगभग सभी धार्मिक मान्यताएं, पूजा विधि और देवी-देवताओं पर अर्पित की जाने वाली सामग्रियों का वैज्ञानिक आधार है। हमारी पूजा की कोई भी विधि मात्र एक परंपरा नहीं है। हमारे ऋषियों से अपने ज्ञान चक्षु से यह पता लगा लिया था कि किस विधि से कौन सा विज्ञान जुड़ा हुआ है। चूंकि *प्राचीनकाल में लोग विज्ञान को नहीं समझते थे इसलिए उन्हें प्रत्येक बात को धार्मिक आधार से जोड़कर बताया जाता था और वे उसे खुशी-खुशी आस्था और श्रद्धा-भक्ति के साथ कर लेते थे।
शिवलिंग पर जल और दूध अर्पित करें.हम बात कर रहे हैं शिवलिंग पर जल और दूध अर्पित करने का। शिवलिंग पर जल और दूध अर्पित करने को कई लोग अंधविश्वास और बेकार की बात कहकर नकार देते हैं। वे यह बात इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्हें इसके पीछे के विज्ञान की जानकारी नहीं है। शिवलिंग पर जल अर्पित करने का वैज्ञानिक कारण है। कभी आपने गौर किया है कि शिवलिंग का आकार और दुनिया के तमाम न्यूक्लियर रिएक्टर का आकार एक समान क्यों है दरअसल न्यूक्लियर रिएक्टर शिवलिंग से ही प्रेरित है। यह बात वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं कि दुनिया में जितने भी शिवलिंग हैं उनके आसपास सबसे अधिक न्यूक्लियर सक्रियता पाई जाती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने तो इसे साबित भी करके दिखा दिया है कि किसी पूर्ण सक्रिय शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर के आसपास के वातावरण में एक समान विकिरण और आवेश होता है। यही कारण है कि *शिवलिंग की न्यूक्लियर सक्रियता शांत करने के लिए जल, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि रेडियोधर्मिता को अवशोषित करने वाले पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। ये सब पदार्थ अर्पित करने के लिए जब कोई व्यक्ति शिवलिंग के करीब जाता है तो न्यूक्लियर विकिरण के कारण उस व्यक्ति के मन, मस्तिष्क और शरीर में कुछ विशेष वैज्ञानिक बदलाव आते हैं।
दूसरी बात, शिवलिंग के काले पत्थर से जुड़ी है ?आपने देखा होगा कि अधिकांश शिवलिंग काले पत्थर के होते हैं। इसके पीछे भी गहरा विज्ञान छुपा हुआ है। दरअसल काला रंग इसलिए काला दिखाई देता है क्योंकि वह किसी भी अन्य रंग को परावर्तित नहीं करता है। उसमें सारे रंग जाकर समाहित हो जाते हैं। काला रंग नकारात्मक ऊर्जा को सोखने का काम करता है। यदि किसी व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक मात्रा में है तो वह कई प्रकार के मानसिक और शारीरिक रोगों से ग्रसित रहता है। नकारात्मक ऊर्जा के कारण व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक कार्यकलाप प्रभावित होते हैं। ऐसा व्यक्ति जब काले पत्थर के शिवलिंग के समीप जाता है, उसका स्पर्श करता है तो उसके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा शिवलिंग अवशोषित कर लेता है। इससे व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और वह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ महसूस करने लगता है.सबसे ज्यादा मानसिक शांति शिव मंदिर में मिलती है ? वैसे तो सभी देवी-देवताओं के मंदिरों में उनमें आस्था रखने वाले लोगों को शांति मिलती है, लेकिन वैज्ञानिकों की बात मानें तो *शिव मंदिर में सबसे अधिक मानसिक शांति प्राप्त होती है। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों की मानें तो, उन्होंने मेडिटेशन पर रिसर्च के दौरान पाया कि हिंदू देवता शिव का मंदिर में बैठकर मेडिटेशन करने से अन्य जगहों की अपेक्षा जल्दी ध्यान एकाग्र होता है। शिव को आदियोगी और परम योग गुरु यूं ही नहीं कहा जाता है। योग के जनक भगवान शिव ही हैं इसलिए यह बात भी स्वाभाविक ही है कि उनके मंदिर में बैठकर ध्यान लगाना ज्यादा आसान है। शिव मंदिर में मेडिटेशन करने से व्यक्ति श्वांस संतुलित होती है.मस्तिष्क को शांत करने वाले रसायनों का उत्सर्जन होता है। इससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शांत प्राप्त होती है।
इसीलिए शिवलिंग की न्यूक्लियर सक्रियता शांत करने के लिए जल, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि रेडियोधर्मिता को अवशोषित करने वाले पदार्थ अर्पित किए जाते हैं।
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