● कल और जीवन बचाने के लिए नगर दशरथ मांझी को पुकार रही है विलुप्त होती नदी
पर्यावरण संपदा धनी लखीमपुर खीरी जिले को राहत देने वाली शहर की एकमात्र नदी उल्ल नदी नगर के दशरथ मांझी की बाट जोहते जोहते विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गयी है। रीवर जंक्शन के नाम से विख्यात तराई जिला पीलीभीत से निकलने वाली यह नदी बहराइच जिले में घाघरा नदी ( शारदा) में विलय होती है। लगभग 175 किलोमीटर के इस सफर में सबसे ज्यादा लखीमपुर खीरी जिले को ही लगभग 100 किलोमीटर तक लाभान्वित करती है, जिसमे मानव के साथ साथ पशु, पक्षियों एवं पेड़ पौधों, खेत खलिहानों को भी जलीय आवश्यकता से तृप्त कर हरा भरा रखती है। हालांकि यह नदी सीतापुर के तराई व गांजरी क्षेत्र में भी हरियाली व खुशहाली की सूत्रधार बनती है। अपने 175 किलोमीटर के इस सफर में यह कहीं उल्ल, कहीं गोबरहिया तो कहीं अन्य नाम से ससम्मान सम्बोधित की जाती है। यह महत्वपूर्ण नदी घाघरा रूपी शारदा फिर सरयू और सरयू नदी गंगा में विलय हो जाती है।
धार्मिक दृष्टि से भी उल्ल नदी का अपना महत्वपूर्ण इतिहास है। कहते हैं लक्ष्मी जी के नाम से बसे इस शहर लक्ष्मीपुर जो धीरे धीरे लखीमपुर पड़ गया की सहायक उल्ल नदी का नाम लक्ष्मी जी के वाहन उल्लू के सम्मान में पड़ा था। शहर किनारे बहने वाली इस नदी पर मौजूद सेठघाट की छटा ही निराली है। इस घाट पर शहर में रह रहे पूर्वांचलवासी सूर्य आराधना का महापर्व छठ बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इसके अलावा सेठघाट मन्दिर पर श्रद्धालु नियमित पूजा अर्चना करते हैं। इस नदी किनारे मुंडन आदि संस्कार भी किये जाते हैं।
सदानीरा कही जाने वाली लखीमपुर की यह उल्ल नदी वर्तमान समय मे प्रसिद्ध सेठघाट पर नाले का रूप अख्तियार करती नजर आ रही है। महेवागंज के पास से शहर में घुसते ही नदी की दुर्दशा शुरू हो जाती है। नदी का स्वागत शहर में धोबी अपने डिटर्जेंट व गंदे कपड़ो के साथ करते हैं। गंदे कपड़ो को साफ करने के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायन युक्त डिटर्जेंट से इसका निर्मल जल प्रदूषित होता है जो जलीय जीवों के लिए बेहद हानिकारक है। इन धोबियों ने सेठघाट को भी धोबीघाट बना दिया है जो सुबह सैर के वक्त आमतौर पर देखे जा सकते हैं। क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि सेठघाट पर यह नदी कभी निर्मल व अविरल हुआ करती थी, मछलियां व अन्य जलीय साफ दिखा करते थे। वर्तमान में आलम यह है कि घाट किनारे पसरी गंदगी व जलकुंभी ने नदी को इतना सकरा कर दिया है कि यह नदी नाले में तब्दील होती जा रही है। नदी का जल इतना गंदा व विषैला हो गया है कि मछलियों के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। यहां पड़ोस में सर्राफ बाबूराम घाट है। उसमें बनी कालोनी में रहने वाले लोग इसकी स्वच्छता के बजाय कालोनी की गंदगी इसी में प्रवाह कर देते हैं। इस घाट कालोनी प्रांगण में एक मन्दिर बना है। कहते हैं इस मंदिर में कभी इतनी रौनक व आस्था थी कि दोपहर व रात्रि में कपाट बंद हो जाते थे। आज इस मंदिर के अंदर लोग सुबह 9 बजे तक गद्दा, तकिया बिछाकर चादर तान कर सोते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक श्रद्धालु ने बताया कि पूछने पर घाट मन्दिर कर गेट बंद कर दिया जाता है।
हर साल सूर्य उपासना के महापर्व छठ के दौरान सेठघाट की तश्वीर बदल जाती है। शासन, प्रशासन और समाज के जिम्मेदारजनों, एवं श्रद्धालुओं की सक्रियता से इस घाट की सुंदरता देखते ही बनती है। महाछठ के दौरान उल्ल नदी की भी साफ सफाई भी होती है। विडंबना यह है कि अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देने के साथ छठ समापन के बाद इस नदी के दुर्दिन शुरू हो जाते हैं। फिर यहां इस नदी को ऐसी स्वच्छता के लिए पूरे एक वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। हालांकि कभी कभी नदी संरक्षण की भावना से प्रेरित कुछ समाजसेवी यदा कदा प्रयास तो करते हैं लेकिन उल्ल नदी के अस्तित्व की सुरक्षा की दृष्टि से यह प्रयास नाकाफी नजर आते हैं।
नदी, संरक्षण के अभाव जिले की दो नदियां और अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही हैं। शहर से लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित चमत्कारी लिलौटीनाथ धाम को स्पर्श करता जुनई नदी एवं कंडवा नदी का संगम है। यह नदियां भी साफ, सफाई एवं रखरखाव के अभाव में अपना अपना वजूद खोती जा रही है। यह संगम विशाल होने की जगह नाले में तब्दील होता जा रहा है।
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