● आलू उठाने आसपास के गांवो से उमड़ी भीड़, बोरे में भरकर ले गए आलू
◆ धर्मवीर गुप्ता
बांकेगंज खीरी। विकासखंड बांकेगंज की ग्राम पंचायत ग्रंट नंबर 10 के एक किसान ने आलू का बेहतर मूल्य न मिलने से आहत होकर एक ट्राली आलू ड्रेन में फेंक दिया। सुबह जब लोगों ने ड्रेन में भारी मात्रा में आलू को पड़े देखा तो धीरे-धीरे वे उसे उठाने के लिए आने लगें। इससे आसपास के गाँव में यह बात तेजी से फैल गयी और आलू उठाने वालों की भीड़ एकत्र हो गई। कोई बाइक लेकर आलू उठाने पहुंचा तो कोई ठेलिया लेकर।
बांकेगंज क्षेत्र की दो ग्राम पंचायत ग्रन्ट नम्बर 10 और 11 की ही बात की जाय तो करीब 1200 एकड़ से अधिक रकबे पर आलू की विभिन्न प्रजातियां बोई गई थी। पिछली बार की तुलना में इस बार आलू का मूल्य काफी कम मिल रहा है। इससे किसानों का नुकसान हो रहा है। विशेषकर उन किसानों को जिन्होंने कुफरी मोहन आलू बो रखा था। इससे सभी आलू कृषक परेशान हैं । लगातार बढ़ते हुए तापमान के कारण आलू स्टोर करना मुश्किल हो रहा है और मण्डी में भी 150 रूपये से लेकर 200 रूपये प्रति बोरी का भाव जा रहा है। जबकि आलू की खुदाई से लेकर उसे मंडी तक पहुंचाने का खर्चा ही लगभग 60 रुपया प्रति पैकेट से अधिक पड़ जाता है। कृषकों को यह चिन्ता भी सता रही है कि खेतों में अब दूसरी फसल भी लगानी है और कोल्ड स्टोरेज में भी जगह नहीं है । ऐसे में आलू कहां ले जाये। यद्यपि आलू की अन्य प्रजातियों का भी मूल्य पिछली बार की अपेक्षा काफी कम है परंतु वह कई दिनों तक ठहर सकता है इसलिए उन किसानों की लागत बमुश्किल निकल जा रही है।
आलू कृषक मनवीर सिंह से जब आलू फेंकने के बारे में चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि आलू से भरा ट्रैक्टर चार-पांच दिन से मंडी में खड़ा था महज चार बोरी आलू उसमें से बिक पाई थी। तापमान बढ़ने के कारण आलू भी गर्म हो गया था। आलू खुदाई और बिनाई की लागत पहले ही 60 रुपया प्रति पैकेट पड़ रही थी यदि उसे पलटवार कर पुनः छंटवाता तो लगभग 40 रुपया प्रति पैकेट और बढ़ जाता है इसके अलावा बारदाना भी लगा हुआ था। ट्राली भी मंडी में खड़ी करनी पड़ रही थी इसलिए मजबूरी में उसे लाकर अपने फार्म के पास ड्रेन में फेंकना पड़ा।
● मंडी जैसा माहौल बन गया, ठेलिया पर लाद कर ले गए आलू :
जो भी ग्रामीण ड्रेन में आलू पड़े होने की खबर सुनता वही बोरी लेकर आलू भरने पहुंच जाता था फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष, बुजुर्ग हो या बच्चे। लगभग 4 घंटे तक मंडी जैसा माहौल बना रहा। बांकेगंज कुकरा मार्ग पर जो भी राहगीर निकलता एक बार अपना वाहन रोककर ड्रेन में खड़ी भीड़ को अवश्य देखता। अन्नदाता किसान की व्यवस्था पर भी दो चार चर्चाएं जरूर करता।
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