प्रयागराज । श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने श्रीमद्ज्ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पीठाधीश्वरों की स्मृति में हो रहे पुण्य प्रतीक ‘आराधना महोत्सव के अवसर पर कहा कि श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी ने सन् 1941ई0 में श्रीज्योतिष्पीठ गद्दी पर जगद्गुरू शंकराचार्य के पद पर प्रतिष्ठित होने के पश्चात् पीठ की बिखरी हुई विभिन्न चल, अचल सम्पत्तियों को समेकित कर श्रीमज्ज्योतिष्पीठ को मूलरूप में विकसित कर मजबूती प्रदान किया। उन्होंने अपनी भी अन्य निजी सम्पदा व आश्रम का भी इसी श्रीमज्ज्योतिष्पीठ में विलय कर दिया।पूज्य शंकराचार्य श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने बताया कि भगवान आदि शंकराचार्य जी के सूत्र व सिद्धान्तों का प्रचार- प्रसार करते हुए पूज्य पीठोद्धारक जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मलीन ब्रह्मानन्द सरस्वती जी ने 08 दिसम्बर, 1952ई0 को एक वसीयत लिखकर श्रीमज्ज्योतिष्पीठ की सम्पूर्ण चल, अचल सम्पत्तियों का विवरण लिखते हुए पीठ के आगामी व्यवस्था व संचालन की विधि-व्यवस्था का भी उल्लेख किया है।
स्वामी जी ने इसी वसीयत में श्रीमज्ज्योतिष्पीठ में अपने उत्तराधिकारियों के क्रम का नाम भी लिखा है, जिसके अनुसार श्री 108 दण्डी स्वामी शान्तानंद सरस्वती, पं0 द्वारिका प्रसाद त्रिपाठी-शास्त्री, श्री 108 स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती जी मेरे समाधिष्ठ होने पर मेरे उत्तराधिकारी होकर आचार्य पद पर अभिषिक्त होकर श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य होंगे।पूज्य श्रीमज्ज्योतिष्पीठोद्धारक शंकराचार्य जी ने अपने वसीयत में यह भी आदेश किया है कि मेरे द्वारा नामित चारों नामों में से अन्तिम शंकराचार्य को अपने पश्चात् उत्तराधिकारी शंकराचार्य बनाने एवं पीठासीन होने के लिए पीठ की शिष्य परम्परा में से ही सबसे सुयोग्य शिष्य को योग्यता पर विशेष लक्ष्य रखकर ही पूर्व आचार्य को चाहिए कि अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दें।
आराधना-महोत्सव में पूज्य श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने बताया कि पूज्य पीठोद्धारक शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी के बाद श्रीमज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी शांतानन्द सरस्वती जी ने भगवान आदि शंकराचार्य के सनातन वैदिक सूत्र और सिद्धान्तों को प्रचारित व प्रसारित करने के लिए पीठोद्धारक शंकराचार्य जी के द्वारा किये गये प्रयासों को मजबूती प्रदान की। उनके आदेश, निर्देश के अनुसार ही विपरीत परिस्थितियों व प्रबल विरोधियों को परास्त करते हुए सफल प्रयास किया आराधना-महोत्सव में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के विभिन्न आयामों की सरल व्याख्या व प्रस्तुति करते हुए पूज्य आचार्य श्री जितेन्द्र नाथ महाराज श्रीनाथ पीठ, श्रीदेवनाथ मठ, सुर्जी, अंजनगाँव, अंजनीग्राम, जनपद-अमरावती ने भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक मायापूर्ण, ईश्वरीय लीलाओं का वर्णन किया। भगवान श्रीकृष्ण की नन्द महाराज के आंगन में बाल-लीला की विभिन्न क्रीड़ाओं का वर्णन भी कियास। कथा में आये हजारों भक्तों ने पूज्य व्यास जी के भक्तिमयी, मनमोहक भजनों, गीतों का रसास्वादन किया।श्रीमज्ज्योतिष्पीठ प्रवक्ता ओंकार नाथ त्रिपाठी ने बताया कि 07 दिसम्बर (आज) को श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शान्तानंद सरस्वती जी महाराज की जयन्ती उत्साहपूर्वक मनायी जायेगी। श्रीमज्ज्योतिष्पीठ विद्यालय के छात्रों के बीच शिखा (चोटी) प्रतियोगिता भी होगी। श्रीरुद्र महायज्ञ प्रतिदिन प्रातः 8.00 से सायं 6.00 बजे तक, सायं 7.00 बजे से मैदानेश्वर बाबा के समक्ष दिव्य रूद्राभिषेक तथा प्रातः 7.00 बजे से 12.00 बजे तक श्री प्यारे मोहन जी की मण्डली द्वारा नवान्ह श्रीरामचरितमानस का सस्वर पाठ (गायन) होगा।
श्री रूद्रमहायज्ञ आचार्य पं छोटे लाल मिश्रा सहित पं उमाकान्त द्विवेदी, पं भगवानदास, पं रामनारायण तिवारी, भाष्कर पाठक, राजेश त्रिपाठी, इन्द्रेश द्विवेदी, सुमित पांडे, गोविन्द शुक्ल आदि 21 विप्रों द्वारा सम्पादित किया जा रहा है। कथा में प्रमुख रूप से दंडी सन्यासी विनोदानंद सरस्वती, दंडी सन्यासी शंकरानंद सरस्वती, आचार्य शिवार्चन उपाध्याय-शास्त्री, आचार्य पं0 विपिन कृष्ण शास्त्री, सत्य प्रकाश त्रिपाठी, आचार्य अभिषेक मिश्रा, आचार्य मनीष जी, वेद प्रकाश शर्मा, राम अधार शर्मा, दिनेश शर्मा, राजेश राय, सीताराम शर्मा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
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