भारत में प्रेम पर अत्यधिक बल दिया जाता है। इस प्रेम के बड़े प्रचलित रूप हैं। माँ-बाप का आदर करो। बच्चों के प्रति समर्पित रहो। भाई-बहन से मेल जोल रखो।रिश्तेदारों-पड़ोसियों से सहयोग रखो। इन सबकी मिसालें दी जाती हैं। खुल के प्रदर्शन किया जाता है। पर जहाँ पति पत्नी के प्रेम की बात आयी तो इसे सरस्वती की धारा की तरह, धरती लील जाती है।आम तौर पर भारतीय परिवारों में पति-पत्नी का प्यार एक जलपरी की तरह होता है। जिसके बारे में बात तो हर कोई करता है, पर उसे देखा किसी ने नहीं।हाथी के पास छः नेत्रहीनों की कथा तो आपने सुनी ही होगी। जिसने कान पकड़ा उसने हाथी सूप जैसा बताया, जिसने पैर थामा, उसे खम्भे जैसा प्रतीत हुआ। कुल मिला कर प्रेम भी ऐसा ही है। जिसके पास जैसा साथी हो, प्रेम का वही स्वरूप उसे देखता है। दूसरे के हिस्से क्या आया, वह अनुमान भी नहीं लगा सकता।ये प्रेम दिखाने की ग़लती बिलकुल ना करें। नहीं तो बेसब्र, बेशर्म, बेहया, जोरू के ग़ुलाम, लैला-मजनू जैसे विशेषण, विष बुझे तीरों की तरह दिल पर आ लगेंगे।भारतीय विवाहित प्रेमियों की और भी कई विडंबनायें हैं, यहाँ लोग अपने दुःख से नहीं दूसरे के सुख से दुखी होते हैं। नानी दादी इसीलिए कहती थी अपनी ख़ुशी मत दिखाओ, नज़र लग जाएगी। वैसे ही मिलने के अवसर कम और बिगाड़ के अधिक होते हैं। अगर जोड़े प्रेम प्रदर्शित करते हैं, तो देखने वालों के हृदय पर साँप लोट जाते हैं।पत्नी अपने माएके की सुरक्षा, स्नेह छोड़कर पति के लिए आयी है, तो उससे इन दिलजलों को क्या? घर बदलते ही उसका दिल इस्पात का हो जाना चाहिए।अगर पत्नी पंद्रह दिन बाद माएके से लौट कर आए, तो पति बच्चों को तो गले लगा सकता है पर पत्नी को बस दूर से टुकुर-टुकुर ताके। अरे भई ये बच्चे इसी पति से प्रेम के कारण ही पैदा हुए हैं। थोड़ा सा स्नेह इसीलिए ही मिल पाए? नहीं जी! अछूत कन्या की तरह दूर से बात करें। सम्भवत: इसीलिए, काव्य में चाँद और चकोर की उपमाए चल पड़ी।सारे घर को खाना परोसने वाली बहु ने खाया या नहीं बहुधा पति को या तो पता ही नहीं होता, और पूछ लिया तो ताना सुनता है। अरे भाई खिला देंगे तुम्हारी पत्नी को, भूखा नहीं रखेंगे।इन सब तानो के चलते, पति पूछना ही बंद कर देते हैं।कभी काम से लौटने पर पति ने चैन से पीने के लिए, अपने कमरे में ही चाय माँग ली, तो भाई एकांत तो केवल कमरे में जाने पर होता है। केवल चाय पीने में ही, बाहर बैठे लोगों की कल्पनाओं के घोड़े दौड़ जाते हैं।बाहर से आवाज़ें लगती हैं। दबी ज़ुबान आपत्ति उठती है की, सबके साथ बैठा करो, ये क्या? शाम से ही कमरे में बंद?कभी उपहार ला दे, तो दिलजलों के आलम ही देखने वाले होते हैं। युगल प्रेमियों को चोचले, छिछोरापन जैसे शब्द सुनाए जाते हैं, और फ़िज़ूलख़र्ची का इल्ज़ाम भी लग जाता है।क़िस्सा सरेआम चटखारे ले के सुनाया जाता है।ये बात और है, कि वो उपहार इस्तेमाल सब कर लेते हैं।दिन भर के काम, बच्चों की ज़िद, परिवार की अपेक्षाओं, दिलजलों के तानो की बाधा-दौड़ पार करके ही, पत्नी को पति का सानिध्य प्राप्त होता है। उसमें शिकवे-शिकायतों का कोई समय नहीं। आपके मन में कोई भी अंतर्द्वन्द्व चल रहा हो, तो भी आपको सब भूल, मेनका रम्भा में परिवर्तित होना पड़ेगा। नहीं तो यहाँ भी ताना, “तुम्हारा पिरीयड आ रहा है क्या?”ऐसी अग्निपरीक्षा में, प्रेम कब कपूर की तरह उड़ जाता है, पता ही नहीं देता। या प्रेम शायद केवल ख़ून के रिश्तों में होता है। जो रिश्ते पानी हाथ में ले बने हो, वो सात वचन दे कर भी, प्रेम का बिरवा नहीं उगा पाते। वैवाहिक प्रेम तो जेठ की बोई पौध जैसा हो जाता है, जो कड़ी धूप का सामना करता है और सावन बरसने से पहले ही सूख जाता है।भला हो विदेशी संस्कृति का, जो एक त्योहार वैलेंटायन डे, इन सताए हुए प्रेमियों के नाम भी कर दिया। अब थोड़ा बहुत रिवाज हो गया, तो जोड़े भी अपने मन की निकाल ही लेते हैं। कुछ देना-लेना, बनना-संवरना, नाचना-गाना हो तो इस रिश्ते में भी प्रेम की अदृश्य जलपरी के दर्शन हो ही जाते हैं।भगवान इस संस्कृति को दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ोत्तरी दे। नये परिवार की नींव बनने वाले, इस अनदेखे प्रेम को प्रकट करने की, हमारे देश को अति आवश्यकता है।
सोमवार, 17 अक्टूबर 2022

About दैनिक जनजागरण न्यूज
दैनिक जनजागरण यह एक ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल है, दैनिक जनजागरण पोर्टल के माध्यम से आप सभी प्रकार की खबरें अपने फ़ोन स्क्रीन पर आसानी से पढ़ सकते हैं, लाइव ब्रेकिंग न्यूज़, नेशनल, इन्टरनेशनल न्यूज़, स्पोर्ट्स , क्राइम, पॉलिटिक्स इत्यादि खबरें रोजाना प्राप्त करें..जुडे रहें दैनिक जनजागरण के साथ अपडेटेड रहे सभी प्रकार के ख़बरों से।
आलेख
Tags:
आलेख
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Post Comments