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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022

"कलम-दवात" पूजा विशेष: - डिजिटल लेखनी विश्राम, परेवाकाल की एक अनूठी पहल

              ✍️अनिल कुमार श्रीवास्तव
कलम से जी भर लिखे तो कई साल हो गए। प्रतिष्ठित अखबारों को छोड़ने के बाद आई डिजिटल क्रांति के साथ चल पड़ा तो पता ही नही चला कि क़लम से कब नाता छूट गया। अब तो हस्ताक्षर, बच्चों की पढ़ाई, घर का राशन, सब्जी दूध आदि मूलभूत चीजों के हिंसाब जोड़ने आदि मौकों पर यदा कदा कलम उठ जाती है, बाकी लगभग कम सा हो गया है। वैसे हमने निब पेन से लेकर रिफिल वाले पेन से लिखा है। अब तो रिफिल ढूंढने को भी नही मिलती। छात्र जीवन मे निब वाली कलम का अपना अलग जलवा था। स्याही की बोतल आती थी। वह पेन में भरी जाती थी। कुछ पीछे सीट पर बैठने वाले शरारती बच्चे अगली सीट के बच्चों पर निब से स्याही छिड़क दिया करते थे जिससे सफेद ड्रेस खराब हो जाती थी। शायद वह बच्चे अपनी शरारतों की वजह से बैक बेंचर रहा करते थे। हालांकि मैं बैक बेंचर नही रहा मगर ऐसा नही है कि शरारत नही की। मैंने भी यदा कदा यह कारस्तानी की है और सजा भी पायी। खैर डिजिटल क्रांति के दौर में कलम से नाता जरूर छूटा लेकिन कलमकारी से नही। इसके पीछे एक बड़ी वजह है कि मैं कलमकार हूँ सिर्फ पेशे से नही बल्कि कलमकारी हमारे रक्त में है। लेखनी के देवता भगवान चित्रगुप्त का उपासक ही नही बल्कि उनकी संतान हैं कायस्थ। इसे जातिवादी भाव मे लेने।की जरूरत नही यह आस्था का भाव है। क्योंकि भगवान चित्रगुप्त तो समस्त सनातन समाज के भगवान हैं और सृष्टि की रचना के साथ जब तक दुनिया चलेगी तब तक सभी जीवधारियों के कर्मो का लेखा जोखा भगवान चित्रगुप्त के पास ही रहेगा। जिसका पूरी निष्पक्षता के साथ हिंसाब करते हैं। यह लेखनी व न्याय के देवता हैं। कायस्थ समाज से जुड़े लोग, कलमकार दीपावली की भगवान गणेश लक्ष्मी की पूजा के साथ अपनी लेखनी को विराम दे देते हैं। जिसे द्वितीया तिथि पर कलम दवात की पूजा के दिन भगवान चित्रगुप्त की आराधना, स्तुति के बाद कलम को पूज कर उठाते हैं। इसकी भी एक किवदंती है। हालांकि पौराणिक अभिलेखों में कुछ स्पष्ट नही मिलता लेकिन प्रचलित किवदंती के अनुसार जब मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम लंका पर विजय के बाद अयोध्या लौटे तो उनके स्वागत व राजतिलक हेतु समूची अयोध्या हर्षोल्लास से तैयारी में जुट गई। इस राजतिलक समारोह में सभी देवी देवताओं को बुलाने का दायित्व गुरु वशिष्ठ का था। गुरुजी ने अपने शिष्यों को भेजकर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। राजतिलक, स्वागत, अभिनंदन समारोह का समय आ गया, दीपों से सजी समूची अयोध्या दुल्हन की तरह नजर आ रही थी। सभी देवी, देवता आये, मगर भगवान चित्रगुप्त को न देख भगवान और माता जानकी निराश हो गए। बताते चलें त्रेता युग मे सरयू नदी के तट पर तुलसी उद्यान स्थित धर्महरि चित्रगुप्त मन्दिर में भगवान राम और माता जानकी ने विवाहोपरांत सबसे पहले भगवान चित्रगुप्त से आशीर्वाद लेकर अपने दाम्पत्य जीवन की शुरुआत की थी।
भगवान चित्रगुप्त को समारोह में न देख सभी देवी देवता निराश हो गए। पता करने पर पता चला कि गुरु वशिष्ठ ने अपने शिष्य निमंत्रण के लिए भेजे थे वो भूलवश भगवान चित्रगुप्त को आमंत्रित करना भूल गए थे। उधर भगवान चित्रगुप्त इसे अपना अनादर मान कर बहुत दुःखित हुए और उन्होंने अपने दायित्व से मुक्त होने की सोंच, अपना कलम रख दिया। उनके कलम रखते ही दुनिया स्थिर हो गयी। परेवा काल के समापन से पूर्व यह सब देख भगवान राम, गुरु वशिष्ठ व सभी देवी देवता मिलकर भगवान चित्रगुप्त के पास गए और अपनी भूल के बारे में बताते हुए क्षमा मांगी और भगवान चित्रगुप्त से पुनः अपना कार्यभार संभालने की विनती की। कोमलह्र्दयी भगवान चित्रगुप्त ने द्वितीया तिथि में अपनी कलम को पूज कर पुनः अपना कार्यभार संभाल लिया। तब से भगवान चित्रगुप्त के वंशज कलमकार पारंपरिक रूप से दीपावली को लक्ष्मी गणेश पूजन के बाद कलम रखकर अपनी लेखनी को विश्राम दे देते हैं और द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त व कलम दवात पूजन के बाद अपनी कलमकारी की शुरुआत करते हैं। 
बीते दशक से मोबाइल युग मे लगातार बढ़ी डिजिटल क्रांति से धीरे धीरे पेपरलेस इंडिया पर जोर दिया जा रहा है। पहले की अपेक्षा कलम को उपयोगिता कम भी हुई और दवात तो शायद ही देखने को मिल जाय। हालांकि कलम के महत्व को नजरअंदाज नही किया जा सकता है। आज भी तमाम काम ऐसे हैं जो कलम के बिना अधूरे हैं। आधुनिकता की अंधाधुंध दौड़ में जहां हर क्षेत्र में कम्यूटर को बढ़ावा मिला वही लेखन, काव्य व पत्रकारिता का स्वरूप भी बदला। पहले प्रिंट मीडिया का बोलबाला था, फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने धूम मचाई अब डिजिटल व शोषल मीडिया आकर्षण में है। अगर बात करें प्रिंट मीडिया की तो उसके भी तमाम कार्यो में सहायक मोबाइल, कम्प्यूटर होता है। लेखन के बदले इस स्वरूप में पहले कागज पर लिखकर अपने हस्ताक्षर कर संपादक व डेस्क प्रभारी को न्यूज/लेख व्यक्ति या पोस्ट द्वारा भेजा जाता था लेकिन इस मोबाइल युग मे आसानी से मोबाइल पर टाइप कर व्हाट्सएप्प, मैसेंजर, ईमेल आदि माध्यमो से समाचार सेवाओ, पत्र पत्रिकाओं में भेज दिया जाता है।
कम्प्यूटर/मोबाइल युक्त इस डिजिटल युग मे मोबाइल की अहमियत को देखते हुए प्राचीन परंपरा को आधुनिक परिस्थितियों में सहेजते हुए इस बार दीपावली की पूजा के बाद पूर्ण रूप से लेखनी को विश्राम देने का अनूठा प्रयास किया। परंपरा वश भगवान के समक्ष कलम को रखकर लेखनी विश्राम किया था विराम नही। जहां एक तरफ देवी देवताओं के समक्ष अपनी कलम रखी, वहीं परेवा काल मे मोबाइल/कम्प्यूटर से भी लेखनी न करने का संकल्प लिया। इस बीच हमारे आभासी दुनिया के कई मित्रों के फोन/मैसेज आदि भी आये लेकिन महज शुभकामना के अलावा इस विषय पर कोई चर्चा नही की। हालांकि इससे मेरी समाचार सेवा दैनिक जनजागरण न्यूज www.dainikjanjagran.in सहित अन्य समाचार सेवाएं जिन से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़ा हूँ प्रभावित रहीं। डायलिसिस केंद्र पर डायलिसिस तो हुई लेकिन उनके अभिलेखों में स्वयं हस्ताक्षर नही किया। यहां तक कि मूलभूत जरूरतों के लिए भी लेखन से बचता रहा जिन्हें मौखिक रूप से सम्पन्न किया।
आज यम द्वितीया तिथि पर भगवान चित्रगुप्त की आराधना, स्तुति व कलम दवात की पूजा कर मोबाइल की भी पूजा की। उसके बाद मोबाइल लेखनी से निकला यह पहला आलेख है। कुलमिलाकर इन 60 घण्टो में, सामान्य तौर पर यह कलमकार लेखनी विश्राम 36 घण्टे होता है लेकिन इस बार एक दिन की हानि होने की वजह से एक दिन यानी 24 घण्टे बढ़ गए। ढाई दिन के लेखनी विश्राम से व्यवहारिक रूप से शरीर, मनमस्तिष्क व चक्षुओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ, त्योहार में बढ़ी क्रियात्मकता से परिवार व आसपास प्राक्रतिक खुशियों के रंग भरे। इतना ही नही बच्चों संग शरीर जरूर थका लेकिन मन बच्चा हो गया।  आभासी दुनिया की बनावटी ( कुछ लोगो को छोड़कर) खुशी से ऊब चुकी आंखे मोबाइल से दूर रहकर वास्तविक खुशियों से चमक गयीं। मगर लेखनी विश्राम के इस संकल्प की वजह से ढाई दिन आभासी दुनिया के कुछ वास्तविक मित्रों की कमी जरूर आखरी, उन्हें मिस भी किया। लेकिन इस तरह पर्व मनाने का मजा ही कुछ अलग है। परंपरा ही सही इसी बहाने ढाई दिन मोबाइल/कम्प्यूटर से दूर अपनो से नजदीकी से मिलने, आस्था में रमने व त्योहारों में क्रियाशील रहकर खुशियों के रंग भरने का मौका तो मिला।

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