✍️अनिल कुमार श्रीवास्तव
लक्ष्मी-गणेश पूजन व कलम विश्राम के बाद जमघटकाल मे तमाम परम्पराओं व रिवाजो के साथ हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया जाता है। जो कलम दवात पूजा व भाई द्वीज पूजा तक चलता है।
इस दौरान आतिशबाजी, दीप प्रज्ज्वल, लाइटिंग के साथ कई जगह जुवां भी खेला जाता है। कहते हैं जमघट काल मे जुआ खेल कर भाग्य की परीक्षा लेते हैं। इसलिए कई परिवार आपस मे जुआ खेलते हैं। इसके पीछे जुआ खेलने वालों का तर्क होता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने भी जमघट काल मे जुआ खेला था जिसमे भगवान शिव पराजित हुए थे। हालांकि धार्मिक अभिलेखों में न ही इसका प्रमाण मिलता है न ही उल्लेख।
तामसी गुण धारण किये अब भगवान शिव तो शिव है भोले भंडारी हैं। इस तरह के व्यसनो में उन्हें घसीटना कोई नई बात नही है। अक्सर तामसी प्रवत्ति के लोग अपनी आदतों में उन्हें खींच ही लेते हैं। कोई भांग खाकर अपनी किवदंती अलग बना लेता है तो कोई दारू पीकर। मगर सब यह भूल जाते हैं भगवान शिव ने तो विष भी पिया था इसीलिए वो नीलकंठ कहलाये।
खैर पूजन के बाद जहां एक तरफ बच्चे लाइटिंग व आतिशबाजी में बिजी हो जाते हैं तो दूसरी तरफ यह कथित शिवभक्त फड़ बिछाकर जमघट जगाने को तैयार हो जाते हैं।। इसमे से तो कई लोग दीवाली सेलिब्रेशन कर मतलब सुरा पान कर फड़ पर बैठते हैं। जमघट में ताश के पत्तो से कट, फ्लश, नौ बन्द आदि खेल ज्यादा चलते हैं। हालांकि प्रशासन की पूरी निगरानी रहती है लेकिन यह आंख में धूल झोंक ही देते हैं आखिर त्योहार जो हैं। कई जगह इनके सहारे पुलिस भी अपना त्योहार मना ही लेती होगी।
इसमे सबसे आसान गेम है कट। ताश की गड्डी फेंटने के बाद सामने वाला काट कर पलट कर रख देता है। पलटा हुई गड्डी का पहला, सामने वाला पत्ता ही चुनौती होता है। अब फेंटने वाला बारी बारी से एक पत्ता सामने व एक पत्ता अपनी तरफ डालता है। चुनौती वाले पत्ते जैसा पत्ता माने बादशाह का बादशाह जिसकी तरफ होता है वही विजयी होता है। इस गेम की खाशियत होती है बहुत ही कम समय मे आसानी से फैसला आ जाता है। फ्लैश व नौ बंद पर कभी बाद में बताऊंगा।
इस दौरान जुआड़ियों के अपने मजेदार टोटके भी होते हैं। जुआड़ियों का मानना है कि नोट(रुपए) को पैर के नीचे दबाकर रखने से जीत होती है। उनके हिसाब से नोट को दबाकर रखने से लक्ष्मी जी जल्दी आती हैं और सहेज कर करीने से रखने से जाती है। शायद इसीलिए जुआड़ियों के रुपये टुडे मुड़े, गुँजटे बेतरतीब रहते हैं। कहीं कहीं जुआरी भी बड़े धार्मिक होते हैं उनका मानना होता है कि परेवा के दिन जुए में जीत से पूरे साल जीत होती है। इसलिए दीपावली की रात से चलने वाला जुआ अगले दिन भी चलता है।तीसरे दिन कलम दवात पूजा व भाई द्वीज से यह बंद हो जाता है। माना जाता है दीपावली की रात से कलम रखने से कलम के प्रहरी निष्क्रिय हो जाते हैं जो कलम दवात पूजा में भगवान चित्रगुप्त की आराधना के साथ सक्रिय होते है। इस दौरान होने वाली यह घटनाएं तो छोड़िए और भी घटनाएं लेखनी मुक्त होती हैं।
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