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शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2022

बुंदेलखंड / भगवान शिव ने विष पीकर दी थी काल को मात, कालिंजर का किला में 16 फीटा काल भैरव

वीर भूमि बुंदेलखंड, कालिंजर का भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्थान सांस्कृतिक और धार्मिक गौरव का प्रतीक है। यहां साक्षात प्राचीन नीलकंठ मंदिर है। रणनीतिक रूप से स्थित कालिंजर किले पर प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल में कब्जा करने के लिए कई निर्णायक लड़ाईयां लड़ी गईं, लेकिन केवल सैन्य पहलू ही कालिंजर का महत्व नहीं है। यह स्थान सांस्कृतिक और धार्मिक गौरव का भी प्रतीक है। कालिंजर में प्राचीन नीलकंठ के प्रसिद्ध मंदिर, सबसे ऊंची 'काल भैरव' की छवि और अंदर और आसपास की मूर्तियां इसे खास बनाती हैं। किले में कई मंदिर हैं जो तीसरी -5 वीं शताब्दी के गुप्त वंश के हैं। यह रणनीतिक रूप से विंध्य रेंज के अंत में एक अलग चट्टानी पहाड़ी पर स्थित है, जो बुंदेलखंड के मैदानी इलाकों में है। कालिंजर का उल्लेख प्राचीन हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद, जब भगवान शिव ने विष पिया था, जिससे उनका गला नीला हो गया, तो वे कालिंजर आए और काल को हराकर मृत्यु पर विजय प्राप्त की। यही कारण है कि कालिंजर में शिव मंदिर को नीलकंठ (नीला गले वाला) कहा जाता है। तब से, पहाड़ी को एक पवित्र स्थल माना जाता है। वहीं इस मंदिर में 16 फीट ऊंचे काल भैरव के भी दर्शन होते हैं।

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