भारत की श्रम संहिताएं और महिला श्रमिक: अपेक्षाकृत अधिक समावेशी और लैंगिक रूप से संवेदनशील अर्थव्यवस्था की ओर
लेखिका :- उमा मेय्यप्पन, अध्यक्ष – नगरत्तर चैंबर ऑफ कॉमर्स, चेन्नई
वैश्विक स्तर पर बढ़ती आर्थिक अनिश्चितता के बीच, भारत की नई श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन घरेलू लचीलेपन को मजबूत करने और समावेशी विकास को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मौका है। दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करना न केवल मैन्यूफैक्चरिंग या तकनीकी क्षमता का विस्तार, बल्कि समावेशी एवं सुदृढ़ संस्थानों के निर्माण पर भी निर्भर करेगा। सच्ची आत्मनिर्भरता एक ऐसी अर्थव्यवस्था के निर्माण में निहित है जहां प्रत्येक नागरिक, विशेषकर महिलाएं, देश की विकास गाथा में सार्थक रूप से भाग ले सकें।
भारत ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2023-24 के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं का श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 2017-18 में 22.0 प्रतिशत से बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गया है। जबकि, इसी अवधि में श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 41.7 प्रतिशत हो गई है। ये आंकड़े श्रम बाजार में भागीदारी के मामले में व्याप्त लैंगिक अंतर में आई उल्लेखनीय कमी को दर्शाते हैं तथा व्यापक आर्थिक समावेशन की दिशा में सकारात्मक बदलाव की ओर भी इशारा करते हैं। फिर भी, महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा श्रमबल से बाहर है और जो महिलाएं कार्यरत हैं भी, उनमें से कई उन अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं जहां उन्हें कम वेतन, नौकरी की सीमित सुरक्षा और न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा की समस्या से जूझना पड़ रहा है। कृषि एवं घरेलू काम से लेकर घर-आधारित उद्यमों और गिग प्लेटफॉर्म तक, अनौपचारिक रोजगार अक्सर नाजुक आर्थिक स्थिति और असमानता को मजबूत करता है।
इस संदर्भ में, भारत के श्रम कानूनों को हाल ही में चार व्यापक संहिताओं में संहिताबद्ध किया जाना इन कमियों को दूर करने का एक अनूठा मौका है। औपचारिकीकरण, संरक्षण और समान पहुंच पर ध्यान केन्द्रित करके, इन सुधारों का उद्देश्य अपेक्षाकृत अधिक समावेशी और सुदृढ़ श्रम बाजार की नींव रखना है। इस प्रयास में भारत अकेला नहीं है। वियतनाम, इंडोनेशिया, मिस्र और मैक्सिको सहित कई विकासशील देशों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से श्रम कानूनों में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इनमें मातृत्व संबंधी लाभ का विस्तार करना तथा स्वैच्छिक सहमति, सुरक्षित परिवहन, पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, महिला पर्यवेक्षण एवं उत्पीड़न-विरोधी ठोस सुरक्षा जैसे सुरक्षात्मक उपायों के तहत महिलाओं को रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देना शामिल है। ऐसे उपाय सिर्फ रोजगार को ही संभव बनाने से जुड़े नहीं हैं, बल्कि इनका जुड़ाव महिलाओं की गरिमा, स्वायत्तता और आर्थिक प्रगति में समान हिस्सेदारी सुनिश्चित करने से भी है।
अब जबकि भारत आत्मनिर्भरता और सतत विकास की दिशा में अपनी यात्रा जारी रखे हुए है, एक सच्ची समावेशी एवं न्यायसंगत अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए महिलाओं को नीति और श्रम सुधार के केन्द्र में रखना अहम होगा। इन संहिताओं में निहित अनेक प्रावधानों में से कई, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी एवं सशक्तिकरण की दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं। इन सुधारों का उद्देश्य कार्यस्थलों को अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित, अधिक लचीला और अधिक न्यायसंगत बनाना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएं पुरुषों के साथ समान स्तर पर अर्थव्यवस्था में भाग लें और उसका लाभ उठा सकें।
वेतन और कामकाज की स्थितियों में लिंग-आधारित भेदभाव की समाप्ति
भारत के श्रम सुधार, विशेष रूप से वेतन संहिता (2019) और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहिता, 2020 का उद्देश्य वेतन तथा कामकाज की स्थितियों में लंबे समय से चले आ रहे और श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी को सीधे प्रभावित करने वाले लिंग-आधारित भेदभाव से निपटना है।
वेतन संहिता (2019) भर्ती और वेतन में लिंग-आधारित भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करके "समान कार्य के लिए समान वेतन" के सिद्धांत को सुदृढ़ करती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह संहिता संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन कवरेज को सार्वभौमिक बनाती है। यह प्रावधान कम वेतन वाले अनौपचारिक पेशों में कार्यरत महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें एक बुनियादी स्तर की आय संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, एक राष्ट्रीय फ्लोर वेज ढांचे की शुरुआत उचित वेतन के लिए मोल-भाव करने की महिला श्रमिकों की क्षमता को मजबूत करती है और साथ ही वेतन के स्तरों में क्षेत्रीय असमानताओं को भी कम करती है। यह लैंगिक आधार पर वेतन में व्यापक अंतर को दूर करने और सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए आय संबंधी सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इसके समानांतर, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहिता, 2020 महिलाओं को पारंपरिक रूप से नियत कामकाज के घंटों से परे काम करने की अनुमति देकर उनकी आर्थिक भागीदारी के नए अवसर खोलती है। पूर्व में 1948 के फैक्ट्री अधिनियम के तहत कारखानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में रात्रि पाली में महिलाओं को काम करने से रोकने संबंधी प्रतिबंध के उलट, इस नए संहिता का उद्देश्य कमाई की क्षमता के संदर्भ में पुरुषों और महिलाओं के बीच समान अवसर प्रदान करना है। इस प्रतिबंध के हटने से महिलाएं पारंपरिक रूप से पुरुषों के प्रभुत्व वाली पाली में काम कर सकेंगी। इससे अपने पुरुष समकक्षों के बराबर वेतन अर्जित करने की उनकी क्षमता बढ़ जाएगी। उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, असम, मेघालय, त्रिपुरा, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों ने पहले ही रात्रि पाली में महिलाओं के काम करने पर प्रतिबंध को हटा लिया है। इसके परिणामस्वरूप पुरुषों के रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव डाले बिना महिलाओं के रोजगार में वृद्धि हुई है, खासकर बड़ी व निर्यात-उन्मुख फर्मों में। इससे पता चलता है कि महिलाओं को रात्रि पाली में शामिल करने से औपचारिक क्षेत्र के रोजगार के अवसरों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
हालांकि रात में काम करना अनूठी, खासकर सुरक्षा से जुड़ी, चुनौतियां पेश करता है। इसे स्वीकार करते हुए, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहितायह सुनिश्चित करती है कि महिलाओं को केवल उनकी स्पष्ट सहमति से ही रात्रि पाली में नियुक्त किया जाए और सुरक्षा के पर्याप्त उपाय लागू हों। नियोक्ताओं द्वारा सुरक्षित परिवहन, अलग शौचालय और यौन उत्पीड़न रोकने के उपायों सहित सुरक्षा संबंधी अन्य व्यवस्थाएं प्रदान करना आवश्यक है। यह बदलाव उस पारंपरिक, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण से दूर हटने का प्रतीक है जो सुरक्षा के नाम पर महिलाओं के काम के घंटों को सीमित करता था। इसके बजाय, यह कदम महिलाओं को उनकी सुरक्षा एवं सम्मान को प्राथमिकता देने वाले ढांचे के भीतर विकल्प और स्वायत्तता प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाता है।
महिलाओं की देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों का ध्यान रखना और व्यावसायिक सुरक्षा, एवं स्वास्थ्य को बेहतर बनाना
श्रम बाजार में महिलाओं की कार्य क्षमता को प्रभावित करने वाला एक अन्य प्रमुख कारक उन पर काम का दोहरा बोझ है। इस बोझ के तहत उन्हें वेतनभोगी काम के साथ-साथ घरेलू एवं बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बिठाना पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमानों के अनुसार, 2023 में, 74.8 करोड़ लोग (15 वर्ष या उससे अधिक आयु के) देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण वैश्विक श्रमबल का हिस्सा बनने में असमर्थ थे। इनमें अधिकांश महिलाएं थीं। इसके अलावा, महिलाओं के अनुकूल एक ऐसे बुनियादी ढांचे की जरूरत है जो कार्यस्थल पर लैंगिक दृष्टि से महिलाओं और पुरुषों की भिन्न भिन्न प्रकार की विशेष जरूरतों को पूरा कर सके।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहिता सभी क्षेत्रों में स्वास्थ्य, स्वच्छता, शौचालय और शिशुगृह संबंधी सुविधाओं के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करती है। यह प्रावधान लंबे समय से चली आ रही बुनियादी ढांचे की उन कमियों को दूर करता है, जिसने महिलाओं को विशेष रूप से मैन्यूफैक्चरिंग, खनन और निर्माण क्षेत्रों में रोजगार पाने से रोका है। खासतौर पर 50 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों में अनिवार्य शिशुगृह सुविधाओं का प्रावधान भले ही नया नहीं है, लेकिन यह संहिताकरण के जरिए कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। यह कामकाजी माताओं का समर्थन करने और साझा देखभाल जिम्मेदारियों को आम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इन प्रावधानों के पूरक के रूप में, औद्योगिक संबंध संहिता (2020) के तहत जारी सेवा क्षेत्र के लिए मॉडल स्थायी आदेश, अब नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच आपसी समझौते के आधार पर घर से काम करने की व्यवस्था की अनुमति देते हैं। यह एक हद तक लचीलापन लाता है जो विशेष रूप से सेवा और ज्ञान-आधारित पेशों में महिलाओं को भुगतान किए गए काम और देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बिठाने में और अधिक सहायता कर सकता है।
इसके अलावा, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहिता मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच को भी अनिवार्य बनाती है और ठेका कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सुविधाएं सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मुख्य नियोक्ताओं पर डालती है। ये उपाय उन महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, जो आउटसोर्स या आकस्मिक पदों पर कार्यरत हैं जहां पेशेगत स्वास्थ्य एवं कल्याण की उपेक्षा की जाती है। इसी प्रकार सुरक्षित परिवहन, अच्छी रोशनी वाले कामकाज के वातावरण और स्वास्थ्यकर सुविधाएं प्रदान करने पर जोर देने से रात्रि पाली या दूर-दराज स्थित कार्यस्थलों पर काम करने की महिलाओं की इच्छा और क्षमता बेहतर हो सकती है। व्यक्तिगत रूप से इन जरूरतों को पूरा करने में कठिनाई महसूस करने वाले छोटे उद्यम आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करने हेतु सामूहिक रूप से सहयोग और संसाधन जुटा सकते हैं।
अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न महिलाओं का ध्यान रखना और सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना
लेकिन भारत के श्रम सुधारों की आधारशिला सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) है, जो खासतौर पर तेजी से बढ़ते गिग और अनौपचारिक क्षेत्रों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करती है। यह मुख्य रूप से औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों पर केन्द्रित और देश के अधिकांश श्रमबल, विशेषकर अनौपचारिक, आकस्मिक या स्व-नियोजित भूमिकाओं में कार्यरत महिलाओं की अनदेखी करने वाले पूर्व के श्रम कानूनों की तुलना में एक बड़ा बदलाव है। पीएलएफएस 2023-24 के अनुसार, गैर-कृषि क्षेत्र में कार्यरत 61 प्रतिशत महिला श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों में संलग्न हैं।
कई महिलाएं कामकाज के लचीले घंटों की वजह से असंगठित क्षेत्र की ओर रुख करती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वेतनभोगी काम और देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना संभव होता है। परिणामस्वरूप महिलाएं कृषि, घरेलू एवं देखभाल संबंधी काम और सूक्ष्म या घर-आधारित उद्यम जैसे अनौपचारिक क्षेत्र में अत्यधिक केन्द्रित हैं, जहां सामाजिक सुरक्षा सीमित रूप से सुलभ है। इसके अलावा, महिलाएं तेजी से बढ़ती गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से घरेलू, देखभाल एवं सौंदर्य सेवाओं में बड़ी संख्या में प्रवेश कर रही हैं, जहां ऐसे लाभ अभी भी दुर्लभ ही हैं।
सामाजिक सुरक्षा, जरूरी आर्थिक सुरक्षा प्रदान करके महिलाओं के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अनियमित रोजगार या बेरोजगारी के दौरान लगने वाले वित्तीय झटकों की वजह से महिलाओं की नाजुक स्थिति में कमी लाती है। उदाहरण के लिए, मातृत्व अवकाश और स्वास्थ्य बीमा यह सुनिश्चित करते हैं कि महिलाएं वित्तीय अस्थिरता का जोखिम उठाए बिना अपनी और अपने परिवार की देखभाल कर सकें। पेंशन दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करती है और यह उन महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिन्हें अक्सर असमान वेतन, करियर ब्रेक और देखभाल करने वाली भूमिकाओं के कारण जीवन भर कम आय की स्थिति से गुजरना पड़ता है।
इन चुनौतियों के जवाब में, सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) असंगठित, गृह-आधारित, स्व-नियोजित, गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों की पहचान और पंजीकरण की शुरुआत करती है। इन समूहों को शामिल करने के उद्देश्य से “श्रमिक” की परिभाषा का विस्तार करके, यह संहिता देश में रोजगार की विकसित प्रकृति को स्वीकार करती है और सामाजिक सुरक्षा में लंबे समय से चली आ रही कमियों को दूर करने का लक्ष्य रखती है। इसके अलावा, यह संहिता मातृत्व लाभ अधिनियम (1961) को अपने ढांचे में समन्वित करती है और “परिवार” की परिभाषा का विस्तार करते हुए आश्रित ससुराल वालों को शामिल करती है, जिससे कई महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली देखभाल की व्यापक जिम्मेदारियों को मान्यता मिलती है। इन प्रावधानों को लागू करते हुए, श्रम और रोजगार मंत्रालय ने असंगठित और प्रवासी श्रमिकों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने के लिए पहले ही कदम उठाए हैं, जो ऐसे श्रमिकों की दृश्यता बढ़ाएगा और अनौपचारिक क्षेत्र में महिला श्रमिकों को अधिक प्रभावी ढंग से सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा।
हालांकि, इस संहिता के तहत प्रस्तावित सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में शामिल करना है। पहले स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में वर्गीकृत, ये श्रमिक अधिकांश श्रम सुरक्षा के दायरे से बाहर थे। यह संहिता अब उनके आर्थिक योगदान को मान्यता देती है और उनके लिए समर्पित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के निर्माण को अनिवार्य बनाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह कि यह संहिता साझा योगदान का एक ऐसा मॉडल पेश करती है, जिसमें न केवल श्रमिकों, बल्कि उन्हें नियुक्त करने वाले प्लेटफ़ॉर्म या एग्रीगेटर्स को भी इन योजनाओं में योगदान करना आवश्यक है। यह कदम प्रणाली को खासकर उन गिग श्रमिकों के लिए अधिक न्यायसंगत और आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाता है, जिनकी आय अक्सर अनियमित या अप्रत्याशित होती है। गिग अर्थव्यवस्था में संलग्न महिलाओं के लिए, यह एक अन्यथा अनियमित क्षेत्र में अधिकारों और लाभों को सुरक्षित करने की दिशा में एक सार्थक कदम है।
संयुक्त रूप से ये प्रावधान महिलाओं के काम को औपचारिक बनाने और देश के श्रम बाजार के ढांचे में लैंगिक रूप से संवेदनशील सुरक्षा व्यवस्था को समाहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। फिर भी, इनकी सफलता उद्योग जगत द्वारा महिलाओं के अनुकूल प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन एवं अपनाने, सुलभ पंजीकरण तंत्र के निर्माण और अनौपचारिक एवं डिजिटल कार्यस्थलों में कार्यरत महिलाओं को अब कानून द्वारा दिए गए अधिकारों का लाभ उठाने के लिए निरंतर पहुंच सुनिश्चित करने पर निर्भर करेगी।
संक्षेप में, ये व्यापक श्रम संहिताएं देश के श्रम बाजार को अधिक समतामूलक, समावेशी और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप तैयार करने का एक परिवर्तनकारी अवसर पेश करती हैं। मातृत्व संबंधी लाभ का विस्तार, महिलाओं के लिए रात्रि पाली में काम करने पर प्रतिबंध हटाना, कार्यस्थलों पर शिशुगृह सुविधाओं को अनिवार्य बनाना और अनौपचारिक एवं गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना जैसे प्रमुख प्रावधान श्रमबल में लंबे समय से चली आ रही लैंगिक और संरचनात्मक असमानताओं को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाते हैं। हालांकि, केवल विधायी मंशा ही अपने-आप में पर्याप्त नहीं है। वास्तविक बदलाव सभी राज्यों में श्रम संहिताओं के समय पर, एक समान तरीके से और प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा। इसके लिए न सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति, बल्कि मजबूत संस्थागत तंत्र, अंतर-राज्यीय समन्वय, एक सक्रिय उद्योग जगत और जमीनी स्तर पर ठोस निगरानी की जरूरत होगी।
आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने हेतु, आत्मनिर्भर महिलाओं के उत्थान को भी बढ़ावा देना होगा और उन्हें एक सशक्त, आत्मनिर्भर एवं प्रगतिशील बनाने वाले श्रम इकोसिस्टम द्वारा संरक्षित करना होगा। चाहे महिलाएं खेतों पर हों, कारखानों में हों, गिग प्लेटफॉर्म पर या छोटे उद्यमों में हों, उन्हें सिर्फ विकास के लाभार्थी के रूप में ही नहीं बल्कि इसके शिल्पी के रूप में भी पहचानना होगा। श्रम संहिताओं को अब पूरी तरह से लागू करना महज सामाजिक न्याय का मामला नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक अनिवार्यता भी है। यह कदम एक ऐसे सुदृढ़, प्रतिस्पर्धी और समावेशी अर्थव्यवस्था की नींव रखेगा जो वास्तव में आत्मनिर्भरता की भावना का प्रसार करेगा और भारत को दीर्घकालिक समृद्धि की ओर अग्रसर करेगा।
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