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शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

जनजातीय गौरव दिवस : भारत की जनजातीय विरासत और वीरों का उत्सव

जनजातीय गौरव दिवस : भारत की जनजातीय विरासत और वीरों का उत्सव


लेखक : सी. पी. राधाकृष्णन, भारत के उपराष्ट्रपति  
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भारत की सामाजिक और राजनीतिक संरचना को आकार देने में जनजातीय समुदायों ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इतिहास साक्षी है कि जनजातीय नेताओं ने अपने भूमि, संस्कृति और गरिमा की रक्षा के लिए, औपनिवेशिक शोषण और अन्याय के विरुद्ध शक्तिशाली आंदोलनों का नेतृत्व किया। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक, भारत में विभिन्न जनजातीय समुदायों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन, स्थानीय जमींदारों और महाजनों के खिलाफ विद्रोह किया, जिन्होंने उनके पारंपरिक जीवन-प्रणाली को बाधित किया था।

भगवान बिरसा मुंडा द्वारा संचालित उलगुलान आंदोलन से लेकर अल्लूरी सीताराम राजू, टंट्या भील, वीर गुंडाधुर, रानी गाइदिनल्यू, रामजी गोंड, शहीद वीर नारायण सिंह, सिद्धू-कान्हू जैसे वीरों के प्रखर प्रतिरोध तक — यह सिद्ध करता है कि जनजातीय आंदोलन केवल अलग-अलग संग्राम नहीं थे; बल्कि ये औपनिवेशिक अत्याचार के विरुद्ध सशक्त, निरंतर और संगठित प्रतिप्रवाह थे। उनके संघर्षों ने न केवल जनजातीय अधिकारों की रक्षा की, बल्कि स्वतंत्रता और समानता के लिए राष्ट्रव्यापी संघर्ष को भी सुदृढ़ किया।

सन 2021 में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी द्वारा एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था, जिसके तहत भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती (15 नवम्बर) को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई, ताकि इन जनजातीय नेताओं और उनके संघर्षों को सम्मान दिया जा सके। यह निर्णय एक युगांतरकारी कदम था, जिसने आने वाली पीढ़ियों में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की गौरवशाली विरासत और उनके संघर्षों के प्रति गर्व और जागरूकता को स्थापित किया जा सकें।

इस वर्ष का उत्सव विशेष महत्व रखता है, क्योंकि आज हम बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती (जनजातीय गौरव वर्ष) के समापन का समारोह मना रहे हैं, जिसकी शुरुआत 2024 में हुई थी।

मेरा अनुभव

मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैं बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा के दौरान संसद सदस्य रहा, जब श्री अटल बिहारी वाजपेयीजी देश के माननीय प्रधानमंत्री थे। अटलजी के कार्यकाल के दौरान ही जनजातीय कार्य मंत्रालय की स्थापना की गई थी। लोकसभा सदस्य के रूप में, मैंने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड को अलग-अलग राज्यों के रूप में गठित करने के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था। बाद में मुझे झारखंड राज्य का राज्यपाल बनने का सौभाग्य मिला।

राज्यपाल के पद की शपथ लेने के पश्चात्, उसी दिन मैं भगवान बिरसा मुंडा की जन्मभूमि उलिहातु गया, जहाँ जाकर मैंने इस महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि अर्पित की। मुझे स्मरण है कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी उलिहातु जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। उनका यह दौरा मात्र एक श्रद्धांजलि नहीं था, बल्कि एक राष्ट्रीय तीर्थयात्रा के समान था, जिसने जनजातीय समाज के महत्व को पूरे राष्ट्र के समक्ष स्थापित किया।

मैं माननीय प्रधानमंत्री के साथ खूँटी (झारखंड) में भी उपस्थित था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM-JANMAN) योजना की घोषणा की, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समुदायों की सुरक्षा और सशक्तिकरण करना है।

माननीय प्रधानमंत्री ने इस योजना की प्रेरणा का श्रेय भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मूजी को दिया, जिन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण जनजातीय समाज के उत्थान हेतु समर्पित किया है।

कल्याण से सशक्तिकरण की ओर: एक परिवर्तनकारी पहल

मैंने देखा है कि पिछले एक दशक में जनजातीय समुदायों के लिए नीतिनिर्माण के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण परिवर्तन हुआ है — जो पहले केवल कल्याण उन्मुख था, वह अब सशक्तिकरण उन्मुख बन गया है।

वर्ष 2023 में प्रारंभ किए गए PM-JANMAN मिशन ने कई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। यह योजना 75 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) को लक्षित करती है, और इसमें 9 मंत्रालयों की समन्वित गतिविधियाँ सम्मिलित हैं। इनका उद्देश्य 11 प्रमुख हस्तक्षेपों के माध्यम से इन समुदायों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है — जिनमें पक्के घर, सड़क, पेयजल, बिजली कनेक्शन, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, आदि जैसी बुनियादी सुविधाएँ तथा वन धन विकास केंद्रों (VDVKs) के माध्यम से आजीविका के अवसर प्रदान करना शामिल है।

यह मिशन तीन वित्तीय वर्षों (2023–2026) में पूरा किए जाने का लक्ष्य रखता है और अपने दो वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण कर चुका है। ₹24,104 करोड़ के बजट के साथ, यह योजना 18 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश के 207 जिलों में कार्यान्वित हो रही है और लगभग 48.18 लाख जनजातीय नागरिकों तक पहुँच रही है।

सरकार का एक अन्य उल्लेखनीय प्रयास है “धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान”, जो भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर संस्थापित किया गया एक परिवर्तनकारी मिशन है। इसका लक्ष्य 63,000 से अधिक जनजातीय बहुल गाँवों में बुनियादी सेवाओं की 100% उपलब्धता और समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है। यह 17 केंद्रीय मंत्रालयों की 25 पहलों के समन्वय के माध्यम से संचालित है।

जनजातीय उत्पादों का जियो-टैगिंग, ट्राइबल बिज़नेस कॉन्क्लेव तथा अन्य पहलें जनजातीय समुदायों के सशक्तिकरण की दिशा में सरकार के सार्थक कदम हैं। इन प्रयासों से जनजातीय समाज अलग-अलग समूहों से राष्ट्रीय मुख्यधारा का अभिन्न हिस्सा बन सका है।

शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में प्रयास

जनजातीय समुदायों के सशक्तिकरण की इस नीति-परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, मैंने झारखंड, तेलंगाना और बाद में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में कार्य करते समय एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMR) के विस्तार पर ज़ोर दिया था, ताकि अधिक से अधिक जनजातीय छात्र इसका लाभ ले सकें।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि सरकार ने 728 एकलव्य विद्यालयों की स्थापना का लक्ष्य रखा है, जिनमें से 479 विद्यालय पहले से ही क्रियाशील हैं, और लगभग 3.5 लाख जनजातीय विद्यार्थी इनसे लाभान्वित हो रहे हैं।


यह भी हर्ष का विषय है कि सरकार ने जनजातीय नेताओं की जीवनियों को अमर बनाने की पहल की है। अब तक 10 राज्यों में 11 अत्याधुनिक जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को स्थापित करने की स्वीकृति दी जा चुकी है, जिनमें से 4 संग्रहालयों का उद्घाटन किया जा चुका है।

मैं उस अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के साथ उपस्थित था, जब उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा स्मारक पार्क-व-स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, रांची का दौरा किया। ये संग्रहालय डिजिटल और इमर्सिव तकनीक का उपयोग करते हुए इतिहास के पन्नों को जीवंत कथा में बदलते हैं, जो जनजातीय वीरों के बलिदान को राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता की प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

निष्कर्ष

जनजातीय नेता और उनके आंदोलन हमें निरंतर यह स्मरण कराते हैं कि स्वतंत्रता और गरिमा की लड़ाई, भारत के जनजातीय अंचलों के जंगलों और पहाड़ियों में गहराई से बसी हुई थी। उनका साहस, त्याग और अटूट जज़्बा आज भी सामाजिक न्याय, पर्यावरण संतुलन और मानवाधिकारों के आंदोलनों को प्रेरित करता है।

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा ने भले ही केवल 25 वर्षों का जीवन जिया, परंतु उन्होंने देशभक्ति की जो ज्वाला प्रज्वलित की है, वह आने वाले 2,500 वर्षों तक भी प्रज्वलित रहेगी। यह कहना उचित होगा कि —  “मनुष्य आएँगे और चले जाएँगे, पर धरती आबा और अन्य जनजातीय वीरों की विरासत सदैव अमर रहेगी।”

जय हिन्द! जय भारत!

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