ज्ञान, दृष्टिकोण और समर्पण का संगम बना ‘‘गुरु’’ प्रशिक्षण आयोजन
लखीमपुर खीरी। नगर के शिक्षा जगत में आज एक अनमोल अध्याय जुड़ गया, जब कपूरथला स्थित प्रतिष्ठित सिटी मॉण्टेसरी इण्टर कॉलेज में आयोजित ‘गुरु’ नामक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन अत्यंत उत्साह, ऊर्जा और नई दृष्टि के साथ हुआ। यह मात्र एक प्रशिक्षण नहीं, बल्कि शिक्षकों के लिए आत्ममंथन और नव निर्माण का अवसर बन गया।
कार्यशाला का संचालन प्रसिद्ध समाजसेवी एवं प्रेरक वक्ता राम मोहन गुप्त "अमर" ने किया, जिन्होंने अपने अनुभवों और सरल प्रस्तुतिकरण से शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण तकनीकों से जोड़ा। उन्होंने कहा एक गुरु केवल पाठ पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि सोच की दिशा देने वाला दीपस्तंभ होता है। कक्षा केवल चारदीवारी नहीं, वह तो भविष्य निर्माण की प्रयोगशाला होनी चाहिए। उन्होंने दृष्टि और दृष्टिकोण के सूक्ष्म अंतर को समझाते हुए बताया कि किस प्रकार एक शिक्षक यदि सही सोच और सही साधन से पढ़ाए, तो साधारण छात्र भी असाधारण बन सकते हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रबंधक विशाल सेठ, संचालिका लेखनी सेठ तथा प्रशिक्षक राम मोहन गुप्त द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस दौरान प्रबंधक विशाल सेठ ने कहा कि जब शिक्षक सीखना बंद कर देता है, तब शिक्षा ठहर जाती है। हम चाहते हैं कि हमारे शिक्षक हमेशा ज्ञानपथ के पथिक बने रहें। संचालिका लेखनी सेठ ने कहा कि शिक्षक ही वह आधारस्तंभ हैं जिन पर बच्चों का सम्पूर्ण विकास निर्भर करता है। इस तरह के प्रशिक्षण उन्हें सशक्त बनाने में सहायक होंगे। इस बीच प्रधानाचार्य धीरेन्द्र सिंह ने भावुक होकर कहा गुरु केवल शिक्षक नहीं, राष्ट्र की नींव हैं। हमारे शिक्षक नवाचार के साथ हर दिन कुछ नया सीखने और सिखाने का प्रयास कर रहे हैं, यही हमारे विद्यालय की आत्मा है। कार्यशाला के दौरान शिक्षकों के मध्य शैक्षणिक गतिविधियों पर आधारित रचनात्मक प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गईं। इसमें अजय दीक्षित, गौरव भट्ट, अश्वनी सक्सेना, माण्डवी मिश्रा और मुकेश को सर्वोत्तम सहभागिता पुरस्कार, ‘एकता एवं विवेकानन्द’ ग्रुप को बेस्ट ग्रुप परफॉर्मर पुरस्कार तथा आर.के. सिंह, रवीन्द्र दीक्षित, आदर्श, अंकित अवस्थी, विशाल सक्सेना, शैली सचान एवं प्रिया को सक्रिय सहभागिता पुरस्कार प्रदान किए गए। कार्यक्रम का समापन शिक्षक समूह की भावभीनी प्रतिक्रिया से हुआ, जिसमें उन्होंने इसे न केवल प्रेरणादायक बल्कि आत्मिक रूप से समृद्ध करने वाला अनुभव बताया। उन्होंने एक स्वर में आग्रह किया कि इस प्रकार की कार्यशालाएं नियमित रूप से होनी चाहिए, जिससे शिक्षण एक मिशन बन जाए, केवल पेशा नहीं। 'गुरु' कार्यशाला ने न केवल शिक्षकों को पढ़ाने की नई तकनीकें सिखाईं, बल्कि उन्हें फिर से याद दिलाया कि वे क्यों बने थे, एक ‘गुरु’, जो दीप जलाता है, दिशा दिखाता है और भविष्य गढ़ता है।
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