अनिल कुमार श्रीवास्तव। जब पत्रकारिता मात्र सूचना नहीं, समाज सेवा का माध्यम बन जाए, जब लेखनी सत्ता से नहीं, संवेदना से संचालित हो, तब जन्म लेते हैं सर्वेश शुक्ला जैसे पत्रकार, जो समाज के वंचितों को स्वर, मौन को शब्द और पीड़ा को पहचान देने का काम करते हैं।
ऐसे ही जनसरोकारों के सजग प्रहरी और साहित्यिक चेतना के संवाहक पत्रकार सर्वेश शुक्ला को काव्यस्थली संस्था द्वारा 'उत्कृष्ट रचनाकार सम्मान' से डिजिटल मंच पर विभूषित किया गया। यह सम्मान उनकी "बेटियों" पर आधारित हृदयस्पर्शी काव्य रचना के लिए प्रदान किया गया, जिसे संस्था की संस्थापिका डॉ. सुनीता शर्मा तथा द्वय एडमिन जे.पी. शर्मा एवं सत्यरूपा तिवारी द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किया गया।
यह सम्मान न केवल एक लेखक की साहित्यिक साधना का सम्मान है, बल्कि उन अनगिनत बेटियों की भावनाओं का सश्रद्ध स्पर्श भी है, जिनके लिए श्री सर्वेश की कलम ने संवेदनाओं की भाषा रची। इस उपलब्धि से साहित्यिक, पत्रकारिता एवं सोशल मीडिया जगत में हर्ष की लहर दौड़ गई है। रचनात्मकता के इस सार्वजनिक सम्मान ने सैकड़ों लेखकों को उत्साह और ऊर्जा का संबल दिया है। यह संदेश है कि सच्ची संवेदना और प्रतिबद्ध लेखनी देर सबेर समाज में आदर और मान पाती ही है। समाजसेवा से साहित्य तक
सर्वेश शुक्ला ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत से ही समाजसेवा को अपना धर्म माना। विभिन्न समाजसेवी संगठनों, संस्थाओं एवं जनआंदोलनों से जुड़कर वे निरंतर सामाजिक चेतना की अलख जगाते रहे। हिंदी के कई प्रमुख दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहकर उन्होंने समाज को दिशा देने वाली पत्रकारिता की मिसाल कायम की। वर्तमान में वे एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। साथ ही सोशल मीडिया के साहित्यिक मंचों पर उनकी कविताएं, लेख, लघुकथाएं और संस्मरण पाठकों के दिलों में विशेष स्थान बनाए हुए हैं। यह सम्मान सर्वेश शुक्ला की प्रतिभा, परिश्रम और सामाजिक सरोकारों के प्रति उनके समर्पण का प्रतिफल है। किंतु वे स्वयं इसे एक पड़ाव नहीं, बल्कि प्रेरणा का नया सोपान मानते हैं। साहित्य हो या पत्रकारिता, जब तक संवेदना जीवित है, तब तक शब्दों की मशाल बुझने नहीं दी जाएगी।
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